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26 December Veer Baal Diwas।
History and significance of Veer Baal Diwas Guru Gobind Singh Sons Martyrdom: भारत आज 'वीर बाल दिवस' मना रहा है। (Veer Baal Diwas) यह दिन सिखों के दसवें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों—बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी की अदम्य बहादुरी और शहादत को समर्पित है। मात्र 6 और 8 वर्ष की कोमल आयु में, इन वीर योद्धाओं ने मुगल शासकों की क्रूरता के आगे झुकने के बजाय मौत को गले लगाना बेहतर समझा। धर्म और सत्य की रक्षा के लिए उनका यह सर्वोच्च बलिदान आज भी करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणा का सबसे बड़ा स्रोत है।
मुगल क्रूरता के आगे नहीं झुके गुरु के लाल
वीर बाल दिवस भारतीय इतिहास के उस अध्याय को याद दिलाता है, जहाँ बचपन ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों ने मुगलों द्वारा धर्म परिवर्तन के भारी दबाव के बावजूद अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया। वीर बाल दिवस का दिन युवा सिख योद्धाओं के शौर्य और असाधारण बहादुरी का सम्मान करता है।
देश में पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के बाद ही 26 दिसंबर को साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी के साहस को श्रद्धांजलि देने के लिए वीर बाल दिवस पूरे देश-विदेश में मनाया जाता है। यह दिन युवाओं को राष्ट्र और धर्म के प्रति कर्तव्य सिखाता है। वीरों के परिवार की शहादत को आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है।
इतिहास और शहादत का वह काला दिन
सिखों के लिए दिसंबर का महीना केवल कैलेंडर की तारीखें नहीं, बल्कि एक गहरी टीस और गर्व का संगम है। यह वह समय था जब कड़ाके की ठंड में सिखों के 10वें गुरु, साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा परिवार उफनती सरसा नदी के तट पर बिछड़ गया था।
सिख इतिहास के अनुसार सन् 1705 का वो दौर, जब मुगल शासकों का अत्याचार चरम पर था। जब मुगलों ने अचानक आनंदपुर साहिब के किले पर हमला बोला तो सिखों के आग्रह पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित किला छोड़ दिया। एक तरफ गुरु जी और उनके दो बड़े साहिबजादे चमकौर की जंग की ओर बढ़े, तो दूसरी ओर, रसोइए गंगू के विश्वासघात और संघर्ष के बीच माता गुजरी के साथ दो नन्हे साहिबजादे—जोरावर सिंह (Sahibzada Zorawar Singh) और फतेह सिंह (Fateh Singh) दुश्मनों की घेराबंदी में आ गए। उन्हें कैद कर लिया गया।
गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के महान गुरु थे, उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की और अन्याय के खिलाफ खड़े होने का संदेश दिया, उनके चार पुत्र थे- साहिबजादा अजित सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह।
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सरहिंद की वो दीवार और वीरों का अमर बलिदान
विश्वासघात के कारण दोनों छोटे साहिबजादे और माता गुजरी मुगल सेना द्वारा पकड़ लिए गए थे। जिस वक्त मुगलों ने छोटे साहिबजादों जोरावर सिंह और फतेह सिंह को गिरफ्तार किया, उस वक्त दोनों की उम्र काफी कम थी। उन्हें सरहिंद के ठंडे बुर्ज में कैद किया गया, जहाँ कड़ाके की ठंड में उनके पास न तन ढकने को कपड़े थे और न बिछाने को बिस्तर। लेकिन उन मासूमों के भीतर गुरु गोबिंद सिंह जी का लहू दौड़ रहा था।
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धर्म बदलने के बजाय शहादत को चुना
26 दिसंबर 1705 को नन्हे जोरावर सिंह (9 वर्ष) और फतेह सिंह (7 वर्ष) को सरहिंद के सूबेदार वजीर खान की कचहरी में पेश किया गया। वजीर खान ने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने या मृत्यु का विकल्प दिया। साहिबजादों को लालच दिया और डराया। उसने प्रस्ताव रखा—"इस्लाम कबूल कर लो, तो शहंशाह तुम्हें बेशुमार दौलत और जागीरें देंगे।"
लेकिन उन नन्हे योद्धाओं के चेहरे पर डर की एक लकीर तक न थी। उन्होंने सीना तानकर 'जो बोले सो निहाल, सत् श्री अकाल' का जयकारा लगाया और गरजते हुए कहा—"हम उस गुरु के लाल हैं जिसने अन्याय के आगे झुकना नहीं, मर मिटना सिखाया है। हम अपना धर्म और अपनी जड़ें कभी नहीं छोड़ेंगे।"
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साहिबजादों को दीवार में चुनवाने का क्रूर आदेश
साहिबजादों की इस निडरता ने वजीर खान के अहंकार को चोट पहुँचाई। गुस्से से पागल होकर उसने हुक्म सुनाया—"इन मासूमों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया जाए!" इतिहास गवाह है कि जब साहिबजादों को दीवार में चुनवाया जा रहा था, तब भी उनकी आंखों में आंसू नहीं, बल्कि चमक थी। जैसे-जैसे ईंटें ऊपर उठती गईं, उनकी आवाज बुलंद होती गई। अंततः, उन्होंने धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपनी अंतिम सांस उसी दीवार के भीतर ली। शहादत के बाद की खबर सुनते ही माता गुजरी ने भी अपने प्राण त्याग दिए।
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वीर बालकों की शहादत जो अमर हो गई
यह केवल दो बच्चों की हत्या नहीं थी, बल्कि यह जुल्म के खिलाफ सच की जीत थी। चमकौर की जंग में दो बड़े साहिबजादे—अजीत सिंह और जुझार सिंह—भी शहीद हुए। गुरु जी ने अपना सर्वस्व देश और धर्म के लिए न्योछावर कर दिया। आज 'वीर बाल दिवस' उन्हीं नन्हे साहिबजादों की याद दिलाता है, जिन्होंने सिखाया कि उम्र छोटी हो सकती है, पर संकल्प हिमालय से भी ऊंचा होना चाहिए।
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प्रधानमंत्री मोदी ने की थी घोषणा
9 जनवरी 2022 को गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह ऐतिहासिक घोषणा की थी कि हर साल 26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। इसका उद्देश्य आने वाली पीढ़ियों को साहिबजादों की बहादुरी और नैतिकता के प्रति उनके समर्पण से अवगत कराना है।
वीर बालकों की शहादत पर देशभर में कार्यक्रम
आज वीर बाल दिवस पर देश भर के स्कूलों, कॉलेजों और शैक्षणिक संस्थानों में विभिन्न प्रतियोगिताएं और कथा सत्र आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों के जरिए बच्चों को बताया जाता है कि कैसे गुरु गोबिंद सिंह जी के चारों पुत्रों (अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह) ने अधर्म के विरुद्ध लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति दी थी। वीर बाल दिवस हिम्मत, विश्वास और मुश्किल स्थिति में भी सच्चाई के लिए खड़े रहने के लिए प्रेरित करता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. वीर बाल दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?
उत्तर: वीर बाल दिवस हर साल 26 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है।
2. साहिबजादा जोरावर सिंह और फतेह सिंह की आयु क्या थी?
उत्तर: शहादत के समय साहिबजादा जोरावर सिंह जी की आयु 8 वर्ष और बाबा फतेह सिंह जी की आयु मात्र 6 वर्ष थी।
3. देश में वीर बाल दिवस मनाने की शुरुआत किसने की?
उत्तर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 जनवरी 2022 को इस दिन को आधिकारिक रूप से मनाने की घोषणा की थी।
4. साहिबजादों ने शहादत कहाँ प्राप्त की थी?
उत्तर: सरहिंद (पंजाब) में, जहाँ आज गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब स्थित है।
5. वीर बाल दिवस का महत्व क्या है?
उत्तर: यह दिन युवाओं को यह सीख देता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी सच्चाई, धर्म और अपने मूल्यों के लिए अडिग रहना चाहिए।
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