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अब दो साल तक आपकी कॉल डिटेल्स रखेगी टेलीकॉम कंपनियां, जानिए इससे आपको क्या होगा नफा-नुकसान?

अब दो साल तक आपकी कॉल डिटेल्स रखेगी टेलीकॉम कंपनियां, जानिए इससे आपको क्या होगा नफा-नुकसान? Now telecom companies will archive your call details for two years, know what will be the profit and loss for you? nkp

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Bansal Digital Desk
अब दो साल तक आपकी कॉल डिटेल्स रखेगी टेलीकॉम कंपनियां, जानिए इससे आपको क्या होगा नफा-नुकसान?

नई दिल्ली। टेलीकॉम कंपनियां अब आपके कॉल डिटेल को कम से कम दो साल तक अपने पास रखेगी। दरअसल, दूरसंचार विभाग ने यूनिफाइड लाइसेंस एग्रीमेंट में संशोधन किया हैष। नए बदलाव में कहा गया है कि टेलीकॉम, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स और सभी अन्य टेलीकॉम लाइसेंस धारकों को कम से कम 2 साल के कमर्शियल और कॉल डिटेल रिकॉर्ड रखने ही होंगे।

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पहले एक साल तक रखा जाता था

बतादें कि सुरक्षा एजेंसियों ने विभाग से अनुरोध किया था कि कॉल डिटेल को कम से कम दो साल तक आर्काइव करके रखा जाए। फिलहाल ये अवधि एक साल की है। लेकिन अब इंटरनेट प्रोवाइडर्स को भी आईपी डिटेल के साथ इंटरनेट टेलीफोनी की जानकारी दो साल तक रखना होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सरकार के इस फैसले से आपको क्या नफा-नुकसान होगा? आइए विस्तार से जानते हैं।

क्या होता है CDR?

CDR यानी 'कॉल डाटा रिकॉर्ड'। इसके तहत किस नंबर से कॉल किया गया, किस नंबर पर कॉल किया गया, बात कितनी देर हुई, कितने बजे किस नंबर पर कॉल किया गया, एक ही नंबर पर कितने बार कॉल किया गया, किस नेटवर्क पर कॉल किया गया, कॉल को किसी दूसरे नंबर पर फॉरवर्ड तो नहीं किया गया, यदी हां तो किसी नंबर पर फॉरवर्ड किया गया, किस जगह से कॉल की गई जैसी जानकारियां इसमें होती हैं। इसमें आपके कॉल की वॉयस रिकॉर्डिंग नहीं होती है। इसे टेक्स्ट फॉर्मेट में रखा जाता है।

क्या सभी CDR को एक्सेस कर पाते हैं?

इस सवाल का जवाब है नहीं। CDR के एक्सेस को लेकर एक कानून है। नियम के मुताबिक एसपी और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी ही दूरसंचार ऑपरेटर से CDR ले सकते हैं। वो भी किसी जांच के मामले में। व्यक्तिगत तौर पर वो इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते। क्योंकि हर महीने इसकी जानकारी डीएम को देनी होती है।

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CDR को क्यों किया जाता है स्टोर?

CDR को भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी आर्काइव करके रखा जाता है। कई बार किसी जांच के मामले में कॉल डिटेल की जरूरत होती है। इसी कारण से CDR को स्टोर करके रखा जाता है। इसमें यूजर्स के प्राइवेसी का पूरा ख्याल रखा जाता है। टेलीकॉम कंपनियां एक तय अविधि के लिए CDR डाटा रखती हैं जिसकी जानकारी दूरसंचार विभाग को भी रहती है।

सरकार के इस फैसले पर विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

विशेषज्ञों की मानें तो सरकार का यह फैसला उचित है। जांच एजेंसियों को किसी जांच को दुबारा शुरू करने के दौरान पुराने डाटा की काफी जरूरत होती है। इससे बिहैवियर एनालिसिस में भी काफी मदद मिलती है। किसी क्राइम से पहले यूजर का बिहैवियर क्या रहा था, वह किससे बातें करता था, किस तरह की वेबसाइट पर विजिट करता था। इस तरह की जानकारियों के मिलने के बाद मामलों को जल्दी सुलझाया जा सकता है।

इसके अलावा कई बार विदेश संबंधित मामलों में भी पुराने डाटा की जरूरत होती है। किसी जांच के मामले में विदेश से डेटा लेने में आमतौर पर एक साल से अधिक का समय लग जाता है और फिर जांच में भी देरी होती है ऐसे में इस फैसले से जांच एजेंसियों को काफी मदद मिलेगी।

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