Nirmla Sapre Congress Jitu Patwari: मध्यप्रदेश की राजनीति में एक बड़ा मामला सामने आया है, जिसमें कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। दरअसल, निर्मला सप्रे ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था¹। अब कांग्रेस पार्टी ने इस मामले में कोर्ट जाने का फैसला किया है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इस मामले में बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि भाजपा इस्तीफे से क्यों डर रही है? उन्होंने चुनौती दी है कि चुनाव करवाएं और हम फिर से पटकनी देंगे। विजयपुर में जीत के बाद कांग्रेस उ
कोर्ट जाएगी कांग्रेस
कांग्रेस ने बीना विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी नेता निर्मला सप्रे की विधायकी को चुनौती देने का फैसला किया है। पार्टी के पीसीसी अध्यक्ष जीतू पटवारी ने आरोप लगाया कि सप्रे ने चुनावी प्रक्रिया में गड़बड़ी की है और अब इस मामले को कोर्ट में उठाया जाएगा। उन्होंने कहा कि सप्रे ने अब तक विधायक पद नहीं छोड़ा है, इसलिए पार्टी उनके खिलाफ उचित कदम उठाएगी। पटवारी ने यह भी मांग की कि निर्मला सप्रे को हटाकर बीना में उपचुनाव कराया जाए। उनका यह बयान महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
शीतकालीन सत्र में उठ सकता है मुद्दा
दरअसल, मध्य प्रदेश के बीना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने वाली विधायक निर्मला सप्रे को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक सभा में उन्होंने मुख्यमंत्री मोहन के सामने बीजेपी जॉइन की थी, लेकिन न तो उन्होंने औपचारिक रूप से बीजेपी की सदस्यता ली है और न ही विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया है। इस कारण, कागजों और विधानसभा में वह अभी भी कांग्रेस की विधायक मानी जाती हैं, जबकि बाहर वह बीजेपी के कार्यक्रमों में भाग ले रही हैं। अब कांग्रेस उनकी इस स्थिति को लेकर कड़ा रुख अपनाने जा रही है, और शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे पर हंगामा होने की संभावना है।
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क्या है दल बदल कानून
दल बदल कानून (Anti-Defection Law) भारत में 1985 में संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत लागू किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा पार्टी बदलने की प्रवृत्ति को रोकना था। इस कानून के अनुसार, यदि कोई विधायक अपनी पार्टी के निर्देश (व्हिप) का उल्लंघन करता है, पार्टी छोड़ता है, या किसी अन्य दल में शामिल होता है, तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है। यदि कोई स्वतंत्र उम्मीदवार चुनाव जीतने के बाद किसी पार्टी में शामिल होता है, तो यह कानून उस पर भी लागू होता है।
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हालांकि, यदि किसी पार्टी के दो-तिहाई सदस्य किसी अन्य दल में विलय कर लेते हैं, तो इसे दल बदल नहीं माना जाएगा। यह कानून राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने में मदद करता है। लेकिन इसके बारे में कुछ विवाद भी हैं, जैसे कि स्पीकर के निर्णयों पर सवाल और पार्टी नेतृत्व द्वारा जनप्रतिनिधियों की स्वतंत्रता पर लगाई जाने वाली सीमाएं।