रिपोर्ट – कमलेश सारडा
Neemuch Village Panchayat: देश को आज़ादी के 78 साल हो गए हैं, लेकिन आज भी ऐसा देखा जा रहा है कि सामीजिक कुरितियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। आज भी देश में ऐसी स्थिति है जो आपको सोंचने पर मजबूर कर देगी कि क्या हम तरक्की के मामले में इतने पीछे हैं?
दरअसल, नीमच जिले के सिंगोली तहसील के सोडिजर गांव से एक मामला सामने आया है जिसमें एक किसान जिसका नाम प्रभुलाल धाकड़ बताया जा रहा है, उसका जमीनी विवाद में पंचों ने हुक्का-पानी बंद कर दिया है।
यह पंचायत का यह फैसला भले ही असंवैधानिक है, लेकिन अबतक किसी ने इसे लेकर सवाल नहीं उठाया है, जो अंदरुनी तौर पर देश के पिछड़े होने का सबूत देती है।
सरपंच पति ने दिया यह फैसला
जानकारी दे दें, प्रभुलाल धाकड़ और उसके भाई के बीच रास्ते को लेकर विवाद के लिए एक खाप पंचायत बुलाई गई थी, जिसमें किसान प्रभुलाल धाकड़ को पंचायत ने बहिष्कृत कर दिया और साथ ही हुक्का-पानी भी बंद कर दिया।
चौंकाने वाली बात है, ऐसा बताया जा रहा है कि यह फैसला असंवैधानिक रुप से सरपंच पति ने लिया है। गौरतलब है ग्राम पंचायत में पंचायती के निर्णय भाजपा सरपंच जानी बाई के पति प्रकाश धाकड़ ही लेते हैं। यहांतक कि गांव के लोग उन्हें ही सरपंच साहब कहकर भा बुलाते हैं।
गवाहों को दी धमकी
किसान प्रभुलाल के मुताबिक, पंचायत (Neemuch Village Panchayat) ने उसका हुक्का-पानी बंद कर दिया है, जिसके बाद लोग उसके साथ उठते-बैठते या खान-पान नहीं करते हैं।
इतना ही नहीं पंचायत ने यह चेतावनी भी दी है कि जो भी किसान के मामले में गवाही देगा या उसका साथ देगा उसे भी हुक्का-पानी बंद होने के साथ गांव निकासी दे दी जाएगी। बता दें, यह निर्णय लगभग एक महीने पूर्व लिया गया था।
सरपंच पति ने कही ये बात
मामले की जानकारी के लिए जब यह बात सरपंच पति प्रकाश धाकड़ से पूछी गई तो उन्होंने दुहाई देते हुए कहा, इस मामले में ग्राम पंचायत का कोई दखल नहीं है, ये समाज के अंदर की बात है।
एक ही समाज के होने के कारण मैं भी खाप पंचायत में शामिल था, लेकिन किसान को बहिष्कृत करने का आदेश सामूहिक था। उन्होंने आगे बताया कि यह पंचायत (Neemuch Village Panchayat) प्रभुलाल के भाई ने ही बुलाई थी और यह उन दोनों का मामला है।
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क्या हुक्का-पानी बंद करने का फैसला संवैधानिक?
आपको बता दें, भारतीय संविधान किसी को भी हुक्का-पानी बंद करने की अनुमति नहीं देता। जमीनी विवादों का निर्णय संविधान के तहत जन प्रतिनिधियों की और प्रशासनिक अधिकारियों की है, लेकिन कोई समाज इसका निर्णय नहीं ले सकता।
इसके अलावा सरपंत का पति ऐसा कोई भी निर्णय लेता है तो वह अमान्य है, क्योंकि वह भी आम नागरिकों की श्रेणी में ही आता है।
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