Neelkantheshwar Mahadev Mandir: भारत में अनगिनत धार्मिक स्थल मौजूद हैं जो लोगों के बीच आस्था का केंद्र हैं।
ऐसा ही एक मंदिर मध्य प्रदेश के विदिशा जिले की गंजबासौदा तहसील के उदयपुर गांव में स्थित है। इस मंदिर को नीलकंठेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
नीलकंठेश्वर महादेव के प्रति लोगों की अटूट आस्था है। ऐसा माना जाता है कि नीकंठेश्वर महादेव के सुबह पट खुलने से पहले ही पूजा हो जाती है। आइए हम आपको इस मंदिर के बारे में बताते हैं।
क्या है इस मंदिर का इतिहास
विदिशा जिले में उदयपुर आज भी एक छोटा सा स्थान (गांव) है। यह नीलकंठेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। परमारा राजा उदयादित्य ने इस मंदिर का निर्माण कराया था।
वह महान राजा भोज (1010-1050 ई) के पुत्र थे। मध्य भारत में, सटीक रूप से दिनांकित मंदिरों को देखना मुश्किल है, लेकिन उदयेश्वर मंदिर उनमें से एक है।
इस मंदिर के निर्माण की तिथि मंदिर पर उत्कीर्ण दो शिलालेखों में दर्ज है। इनके अनुसार 1059 से 1080 के बीच परमारा राजा उदयादित्य के दौरान इस मंदिर का निर्माण कराया गया था।
मंदिर है बेजोड़ शिल्पकला का प्रतीक
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले की गंजबासौदा तहसील से 22 किलोमीटर दूर मौजूद है शिव मंदिर बेजोड़ शिल्प कला का प्रतीक है।
इस मंदिर की बनावट देखकर आपको भोपाल के पास मौजूद भोजपुर महादेव मंदिर की याद आ सकती है। मंदिर का ढांचा अपने आप में अनोखा है।
परमार राजवंश के शासक शिव के उपासक थे और अपने राज में उन्होंने अनगिनत मंदिर छात्रावास और पाठशालाओं का निर्माण किया था।
मान्यताओं के अनुसार मंदिर के पट खुलते ही शिवलिंग पर फूल चढ़ा हुआ मिलता है। यह बात आज तक रहस्य बनी हुई है और स्थानीय लोगों के बीच इस बारे में कई तरह की कहानी भी प्रसिद्ध है।
स्थानीय लोगों के मुताबिक बुंदेलखंड के सेनापति आल्हा और उदल महादेव के अनन्य भक्त थे।
वह रात में आकर यहां पूजा करने के साथ भोलेनाथ को कमल का फूल अर्पित करते हैं। सुबह जब पट खोलते हैं तुम्हारे के चरणों में फूल अर्पित किया हुआ मिलता है।
शिखर पर बना है एक व्यक्ति का आकार
इस मंदिर से जुड़ी एक और कहानी बताती है कि इस मंदिर को एक ही व्यक्ति ने रातों-रात बनाकर तैयार किया था।
उसने मंदिर तैयार भी कर दिया था लेकिन जब वह वापस नीचे आ रहा था तो उसे याद आया कि उसका झूला ऊपर ही रह गया है।
वह अपना झूला लेने के लिए ऊपर चढ़ा और नीचे उतर ही रहा था तभी मुर्गी ने बांग दे दिया। जैसे ही सुबह हुई वह व्यक्ति वही रह गया। मंदिर के शिखर पर आज भी व्यक्ति का आकार दिखाई देता है।
शिवरात्री पर लगता है लाखों भक्तों का मेला
महाशिवरात्रि के पवन पर्व पर ग्राम उदयपुर में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
गांव के प्रचीन प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर में भगवान भोले नाथ के दर्शन करने के लिए सुबह से लेकर देर रात तक लाखों की संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं।
शिवरात्री और सावन के पूरे दिन मंदिर भोले के जयकारों से गूंजता रहता है।
मंदिर आने का रास्ता
बाय एयर- विदिशा मध्य प्रदेश के मध्य में स्थित है और यह राजधानी भोपाल के बहुत पास है, विदिशा सड़क और रेल संपर्क से दोनों ओर से जाने योग्य है।
भोपाल (65 किलोमीटर) निकटतम हवाई अड्डा है, जो दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और उदयपुर से जुड़ा हुआ है। टैक्सी-सवारी में विदिशा से भोपाल पहुंचने में लगभग 1-2 घंटे लगते हैं।
ट्रेन से- विदिशा रेलवे स्टेशन मुख्य रेलवे ट्रैक दिल्ली से मुंबई और दिल्ली से हैदराबाद से जुड़ा हुआ है।
आने और जाने वाली ट्रेन विदिशा से गुजरती हैं। यहां आके आप मंदिर के लिए बस या टैक्सी कर सकते हैं।
सड़क के द्वारा- भोपाल-कानपुर राष्ट्रीय राजमार्ग-146 सांची-विदिशा-सागर से गुजरता हैI विदिशा से भोपाल की दूरी 60 किलो मीटर है।
राज्य उच्च मार्ग 19 विदिशा से अशोक नगर जाता है। इससे होते हुए भी आप मंदिर आ सकते हैं।
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