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हाईवे पर GPS से टोल वसूली शुरू: 20 किमी तक फ्री, जितनी यात्रा उतना टोल के लिए गाड़ी में लगवानी होगी OBU

Toll Tax New Rule: भारत में ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम अब शुरू हो गया है। सड़क, परिवहन और राजमार्ग

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Aman jain
Toll Tax New Rule

Toll Tax New Rule

Toll Tax New Rule: भारत में ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम अब शुरू हो गया है। सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने मंगलवार 10 सितंबर को इसके नए संशोधित नियम जारी किए हैं। नए नियमों की मानें तो GNSS से लैस प्राइवेट गाड़ियों से नेशनल हाईवे पर 20 किमी तक का सफर पूरी तरह से फ्री रहने वाला है। यानी इसके लिए एक भी रुपए नहीं लगने वाला है।

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हालांकि, 20 किमी से अधिक दूरी की यात्रा पर गाड़ी की तय की गई दूरी के अनुसार टोल शुल्क मालिकों से वसूला जाएगा। इस सुविधा का लाभ केवल उन्हीं गाड़ियों को मिलेगा जो GNSS से लैस हैं। चूंकि अभी ऐसी गाड़ियों की संख्या कम है, इसलिए यह प्रणाली फिलहाल हाइब्रिड मोड में काम करेगी। टोल वसूली कैश, फास्टैग और ऑटोमेटिक नंबर प्लेट रिकग्निशन के माध्यम से भी जारी रहेगी।

GPS आधारित टोल है क्या

आपको पता होगा की अभी तक टोल का भुगतान मैन्युअल या FASTag के माध्यम से किया जाता है, जिससे अक्सर ट्रैफिक जाम की स्थिति उत्पन्न होती है। GPS-आधारित टोल संग्रह प्रणाली इस समस्या का समाधान करती है। इस प्रणाली में वाहन की यात्रा की दूरी को सैटेलाइट और इन-कार ट्रैकिंग सिस्टम के माध्यम से मापा जाता है। सरल शब्दों समझा जाए तो यह नई प्रणाली सेटेलाइट ट्रैकिंग और GPS का उपयोग करके वाहन द्वारा तय की गई दूरी के अनुसार टोल वसूल करती है।

इससे टोल नाके पर रुकने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे लंबा ट्रैफिक जाम और समय की बर्बादी भी समाप्त हो जाएगी। इस प्रणाली के लिए वाहनों में ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) या ट्रैकिंग डिवाइस लगाए जाएंगे, जो ऑटो कंपनियों द्वारा आने वाले समय में इंस्टॉल किए जाएंगे।

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फास्टैग से अलग सैटेलाइट-आधारित टोल सिस्टम

आपको बता दें कि फास्टैग की तुलना में, सैटेलाइट-आधारित टोल प्रणाली जीएनएसएस (GNSS) तकनीक पर निर्भर करती है, जो वाहनों की सटीक स्थिति का ट्रैकिंग करती है। इस प्रणाली में अमेरिकी GPS और भारतीय जीईओ ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN) सिस्टम का उपयोग किया जाता है, जो अधिक सटीक दूरी-आधारित टोलिंग की सुविधा प्रदान करता है।

सरकारी पोर्टल से मिलेंगे ओबीयू

फास्टैग की तरह, ओबीयू (ऑन-बोर्ड यूनिट) भी सरकारी पोर्टल के माध्यम से उपलब्ध होंगे और इन्हें वाहनों पर बाहरी तौर पर इंस्टॉल किया जाएगा। वाहन मालिक जल्द ही पहले से इंस्टॉल्ड ओबीयू के साथ नए वाहनों को पेश कर सकते हैं। लागू होने के बाद, यात्रा की गई दूरी के आधार पर टोल शुल्क स्वचालित रूप से लिंक किए गए बैंक खाते से काट लिया जाएगा।

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राजस्व संग्रह में वृद्धि

अभी भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) सालाना लगभग 40,000 करोड़ रुपए का टोल राजस्व एकत्र करता है। नई टोल प्रणाली लागू होने के बाद, अगले 2 से 3 सालों में यह राशि बढ़कर 1.40 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है।

हो चुका है ट्रायल रन

आपको बता दें कि जीएनएसएस आधारित टोल वसूली के लिए बेंगलुरु-मैसूर हाईवे (एनएच-275) और पानीपत-हिसार हाईवे (एनएच-709) पर ट्रायल रन किए गए हैं। हालांकि, वर्तमान में देश में कहीं भी जीएनएसएस के लिए डेडिकेटेड लेन मौजूद नहीं हैं। वाहनों को जीएनएसएस-सक्षम बनाने के लिए ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) या ट्रैकिंग डिवाइस इंस्टॉल करना होगा।

क्‍या होता है GNSS

GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) एक सैटेलाइट आधारित तकनीक है जो सटीक स्थान निर्धारण और ट्रैकिंग प्रदान करती है। इसके विपरीत, फास्टैग एक रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) तकनीक पर आधारित होता है। जीएनएसएस टोल गणना के लिए जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) और भारत के जीपीएस-एडेड जीईओ ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN) सिस्टम का उपयोग करता है, जो सटीक और प्रभावी ट्रैकिंग सुनिश्चित करता है।

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देश के सभी नेशनल हाईवे की जीआईएस (ज्योग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम) मैपिंग पूरी हो चुकी है, जिससे जीएनएसएस आधारित टोल वसूली की प्रक्रिया को सक्षम किया जा सकता है।

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