National Doctors Day: हर साल 1 जुलाई को भारत में नेशनल डॉक्टर्स डे (National Doctors Day ) मनाया जाता है। आज के दिन डॉक्टर्स और उनके काम को सलाम करने का दिन होता है। डॉक्टर्स डे 1 जुलाई को डॉक्टर बीसी रॉय (बिधान चंद्र रॉय) के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं। डॉक्टर बीसी रॉय पश्चिम बंगाल के पहले मुख्यमंत्री से लेकर सरकार के कई अहम पदों पर रहे, लेकिन इस दौरान लोगों का सतत इलाज करते रहे। जिसके चलते वे महात्मा गांधी तक के निजी डॉक्टर रहे। उन्हें साल 1961 में भारत रत्न से नवाजा गया। आज हम यहां डॉक्टर बीसी रॉय को याद करते हुए उनके कुछ रोचक किस्सों की चर्चा कर रहे हैं।
जब डॉक्टर साहब ने अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी को सकते में डाल दिया
साल 1961 में डॉक्टर बीसी रॉय अमेरिका के दौरे पर थे। उस समय वहां के राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी थे। उन्होंने डॉक्टर रॉय को व्हाइट हाउस आमंत्रित किया। मुलाकात के दौरान डॉ. बीसी रॉय ने कैनेडी के एक ऐसे मर्ज को खोल दिया, जिससे वे सकते में आ गए। डॉक्टर साहब ने कैनेडी से कहा कि आप तो ऐडिसन रोग से ग्रस्त हैं। इसके बाद कैनेडी की मेडिकल टीम को ये जानकारी मिली तो फिर राष्ट्रपति का चेकअप कराया गया। जांच में डॉक्टर साहब की बात सही निकली। बाद में अमेरिकी राष्ट्रपति का इलाज कराया गया (National Doctors Day)।
इंग्लैंड से पीजी करने 30 बार अप्लाई किया
डॉ. बीसी रॉय का जन्म 1 जुलाई 1882 को पटना में हुआ। रॉय ने पटना से ही मैथेमेटिक्स से बीएससी की पढ़ाई की। उसके बाद डॉक्टर और इंजीनियर बनने के लिए अप्लाई कर दिया। दोनों जगह से बुलावा भी आ गया, पर एडमिशन कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में लिया। इसके बाद पोस्ट-ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए। वहां के प्रतिष्ठित सेंट बार्थोलोमिव्स मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए 30 बार अप्लाई किया, लेकिन वहां के डीन बीसी रॉय को एडमिशन देना को तैयार नहीं थे, क्योंकि वे एशियाई देश के थे। इस सब के बावजूद बीसी रॉय की कोशिश जारी रही। आखिरकार उन्हें दाखिला (National Doctors Day) मिला। उन्होंने तीन साल का कोर्स 2 साल 3 महीने में ही पूरा कर लिया।
डॉ. रॉय को यूपी में मिला यह नाम
साहल 1947 में बीसी रॉय उत्तर प्रदेश के गवर्नर थे। वहां उन्हें लोग दो प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों चरक (फिजिशन) और सुश्रुत (सर्जन) का मिला-जुला रूप कहते थे। डॉ. साहब अपने जीवनकाल में किसी भी पद पर रहे हों, लेकिन उन्होंने मरीजों को देखना और उनका मुफ्त इलाज करना नहीं छोड़ा। लखनऊ में रहने के दौरान भी वे ऐसा करते थे। इसी के कारण उत्तर प्रदेश के अखबारों ने उन्हें चरक (MRCP) और सुश्रुत (FRCS) का मिला-जुला रूप कहना शुरू कर दिया था। जो बाद में खूब चर्चित हो गया। डॉ. रॉय ने MRCP और FRCS दोनों डिग्रियां एक साथ की थीं। इन्हें असान भाषा में MD और MS कहा जाता है यानी फिजिशन एंड सर्जन।
प्रेमिका से नहीं हुई शादी तो जीवनभर कुंवारे रहे
डॉक्टर साहब की प्रेम कहानी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं थी। जिनमें नायक प्रेमिका से शादी नहीं होने पर आजीवन कुंवारा ही रहता है।
डॉक्टर साहब इंग्लैंड से MRCP और FRCS करने के बाद 1911 में कोलकाता लौट कर मेडिकल कॉलेज में पढ़ाने लगे।
उनके दौर में डॉ. नील रतन सरकार बंगाल के सबसे बड़े फिजिशिन माने जाते (National Doctors Day) थे। उनकी एक बेटी थी। जिसका नाम था कल्याणी।
बाद में ‘कल्याणी’ नाम से उपनगर बसा दिया
बताते हैं, एक नए डॉक्टर या मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर की सैलरी से दोगुना वे अपने मेकअप पर खर्च करती थीं। उनके पिता डॉ. नील रतन सरकार की कमाई इतनी थी कि पैसों की किसी तरह की कमी नहीं थी। प्रसिद्ध कवि रविन्द्रनाथ टैगोर जैसे लोग भी कल्याणी के पिता से इलाज करवाते थे। इन्हीं कल्याणी पर बिधान चंद्र रॉय (डॉक्टर साहब) का दिल आ गया। कल्याणी भी डॉक्टर साहब को पसंद करने लगी थीं, लेकिन डॉक्टर साहब जब कल्याणी से शादी का प्रस्ताव लेकर डॉ. नील रतन सरकार के पास पहुंचे तो उन्हें निराशा ही हाथ लगी। कल्याणी के डॉक्टर पिता ने सीधे मना कर दिया। इसके बाद डॉ. बीसी राय पूरी जिंदगी कुंवारे की गुजार दी। हालांकि, बाद में 50 के दशक में नदिया जिले में एक उपनगर बसाया और उसका नाम ‘कल्याणी’ रख दिया।
डॉक्टर साहब की यह बात सुनकर गांधीजी भी इलाज के लिए तैयार हो गए
साल 1933 में पुणे में आत्मशुद्धि उपवास के दौरान महात्मा गांधी का स्वास्थ्य खराब होने लगा। डॉ. बीसी रॉय उस समय कलकत्ता के मेयर थे।
गांधीजी की तबियत के बारे में सुनकर तत्काल पुणे पहुंचे। डॉ. रॉय ने गांधीजी से दवा लेने का आग्रह किया, लेकिन गांधीजी उनसे बोले,
‘मैं तुम्हारी दवाएं क्यों लूं? क्या तुमने हमारे देश के 40 करोड़ (तब भारत की जनसंख्या इतनी ही थी) लोगों का मुफ्त इलाज किया है?’
इस पर डॉक्टर साहब ने कहा था-
“नहीं बापू, मैं सभी मरीजों का मुफ्त इलाज नहीं कर सकता, लेकिन जरूरतमंदों का मुफ्त इलाज जरूर करता हूं। मैं यहां महात्मा गांधी का नहीं, बल्कि उनका इलाज करने आया हूं जिनसे देश के 40 करोड़ लोगों ने उम्मीदें लगा रखी हैं।”
इस पर गांधीजी ने रॉय से मजाकिया अंदाज में कहा- “तुम थर्ड क्लास वकील की तरह बहस कर रहे हो।” हालांकि, बाद में डॉक्टर साहब की बात मानकर बापू ने दवाएं लेनी शुरू कर दीं।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की बीमारी और डॉ. नील रतन सरकार से फिर सामना
डॉ. बीसी रॉय का डॉ. नील रतन सरकार से एक बार फिर आमना-सामना 1941 में हुआ। संयोग था रवीन्द्रनाथ टैगोर बीमार पड़ना। उन्हें प्रोस्टेट संबंधी परेशानी थी। नामी डॉक्टरों की पूरी टीम लगी हुई थी। बंगाल के बड़े फिजिशिन डॉ. नील रतन सरकार खुद इलाज कर रहे थे। समय बदला था डॉ. रॉय भी प्रसिद्ध हो चुके थे। वे मोतीलाल नेहरू, महात्मा गांधी जैसे देश के बड़े नेताओं के मेडिकल कंसल्टेंट बन चुके थे। लिहाजा टैगोर के इलाज के लिए डॉ. रॉय को भी बुलाया गया। उन्होंने टैगोर से कहा, ‘गुरुदेव, अब एक छोटा ऑपरेशन ही आपकी बीमारी का समाधान है। पूरे प्रोस्टेट का नहीं, बल्कि एक छोटा ऑपरेशन होगा ताकि पेशाब जम ना पाए।’
हालांकि, डॉ. सरकार ऑपरेशन के खिलाफ थे। उनका तर्क था कि गुरुदेव की उम्र बहुत ज्यादा है, ऐसे में ऑपरेशन करना ठीक नहीं होगा। इस दौरान बाकी डॉक्टरों ने डॉ. बीसी रॉय की सलाह से सहमति जताई। फिर ऑपरेशन हुआ और 2 दिन बाद ही रवीन्द्रनाथ टैगोर का निधन हो गया। इसकी वजह प्रोस्टेट की समस्या थी या ऑपरेशन, ये कभी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सका, लेकिन डॉ. नील रतन सरकार को अपनी बात सही साबित करने का मौका जरूर मिल गया था।
जब अपने विरोधी ज्योति बसु को घर ले जाकर खिलाया खाना
बात साल 1957 की है। 1952 के पहले चुनाव के बाद डॉ. बीसी रॉय का बतौर निर्वाचित मुख्यमंत्री पहला कार्यकाल समाप्ति की ओर था। देश के पहले आम चुनाव ऐलान हो चुका था। सभी पार्टियां चुनाव प्रचार में लगी थीं। इसी दौरान एक दिन दोपहर मुख्यमंत्री बीसी रॉय राइटर्स बिल्डिंग से गुजर रहे थे। उन्होंने रास्ते में देखा कि विपक्ष के नेता ज्योति बसु पैदल सड़क पर जा रहे हैं। डॉ. रॉय ने गाड़ी रोक कर ज्योति बसु से पूछा, “इतनी धूप में कहां जा रहे हो?”
ज्योति बसु ने मजाकिया अंदाज में जवाब दिया, “आपको हराने जा रहा हूं।”
ये सुनकर डॉ. बीसी रॉय जोर से हंसे और बोले, “अरे, पहले खाओगे तब तो हराओगे! चलो, गाड़ी में बैठो।”
इसके बाद डॉ. बीसी रॉय, ज्योति बसु को गाड़ी में बिठा कर अपने घर ले गए। दोनों ने साथ खाना खाया और फिर ज्योति बसु को उनके घर पर (National Doctors Day) छुड़वाया।
डॉ. बीसी रॉय के साथ ये भी एक संयोग
डॉ. बीसी रॉय ने जीवनभर मुख्यमंत्री, राज्यपाल और अन्य बड़े पदों पर रहते हुए मरीजों का इलाज करना कभी नहीं छोड़ा। उनके जैसे डॉक्टरों के समर्पण में के कारण डॉक्टरों को ‘भगवान का रूप’ कहा जाने लगा। हालांकि, सबकी तरह वे भी इंसान होते हैं। उन्हें भी जाना होता है। डॉ. बीसी रॉय भी चले गए। 1 जुलाई 1962 को उनका निधन हो गया यानी डाॅ. रॉय का जन्म 1 जुलाई 1882 और मृत्यु 1 जुलाई 1962 को हुई।
यह भी जानें
डॉक्टर्स डे (National Doctors Day) दुनिया भर में अलग-अलग तारीखों में मनाया जाता है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में यह 30 मार्च को मनाते हैं, जबकि कनाडा में 1 मई को देश की पहली महिला डॉक्टर डॉ. एमिली स्टोव के सम्मान में यह दिन मनाया जाता है। ब्राजील में 18 अक्टूबर को सेंट ल्यूक के जन्मदिन पर डॉक्टरों को सम्मानित किया जाता है। वे चर्च परंपरा के अनुसार एक डॉक्टर थे। वहीं चीन में यह हर साल 19 अगस्त को मनाया जाता है और इस दिन चीन में राष्ट्रीय अवकाश रहता है।