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नसरुल्लागंज: वो नर्मदा की लहरों से खेलती थी और नर्मदा मैया ने उसके भीतर ऐसा जज्बा भरा कि आज वो देश के लिए थाईलैंड में अपना जौहर दिखाने जा रही है। ये कहानी है नसरूल्लागंज की कावेरी की, जिसने परिवार की मजबूरी के चलते नाव चलाना सीखा था और आज इंटरनेशनल कैनोइंग खिलाड़ी के रूप में पहचान बना ली है।
पानी की तेज लहरों को अपने हौंसले से पीछे करने वाली ये कावेरी ढीमर अब थाइलैंड में भारत का झंडा लहराएगी। नसरुल्लागंज के छोटे से गांव छोटे मंडी में रहने वाली कावेरी का चयन थाइलैंड के पटाया में होने वाले ओलंपिक क्वालिफायर और एशियन चैंपियनशिप के लिए हुआ है। जहां वो कैनोइंग में भारत का प्रतिनिधित्व करेगी, कावेरी मजबूरी और हुनर का वो बेमिसाल जोड़ है। जिसने अब तक कैनोइंग में 12 स्वर्ण पदक जीते हैं। दरअसल मजबूरी ने ही कावेरी को इस काबिल बनाया है। गरीबी के चलते पिता खंडवा में इंदिरा सागर बांध के बैकवाटर के मछली पकड़ने का काम करते थे। कावेरी ने भी हाथ बंटाया और वहीं से उसका नाव के साथ सफर शुरू हो गया।
परिवार ने कावेरी को यहां तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पत्रकारों और अधिकारियों ने उसे भोपाल की वाटर स्पोर्ट्स अकादमीतक पहुंचाया। तो परिवार ने पेटकाटकर वहां रहने की व्यवस्था की। थाईलैंड में होने वाली प्रतियोगिता के लिए दिसंबर में ट्रायल हुआ जिसमें कावेरी ने 18 खिलाड़ियों को पछाड़कर खुद को देश में नंबर वन खिलाड़ी साबित किया और अब वो मार्च में होने वाले कॉम्पटीशन में परचम लहराने के लिए मेहनत कर रही है।
कभी पिता की गरीबी दूर करने के लिए कावेरी बांध के वैकवॉटर में मछली पकड़ती थी। बचपन से ही नर्मदा की गोद में पली बढ़ी कावेरी कब तैराकी और नाव चलाने में माहिर हुई ये उसे भी नहीं पता, लेकिन आज वो कैनोइंग को ऐसी खिलाड़ी बन गई है कि अब पूरे देश की उम्मीदें उससे जुड़ गई हैं।
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