नई दिल्ली। दुनिया भर में म्यांमार में हुए तख्तापलट की आलोचना हो रही है। वहां की सेना ने सोमवार को नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी (National League for Democracy) की सर्वोच्च नेता आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi) और कई अन्य नेताओं को हिरासत में लेने के बाद देश में तख्तापलट कर दिया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि म्यांमार की सेना ने तख्तापलट कर दिया।
इस घटना के बाद देश में तनाव
मालूम हो कि म्यांमार में इस घटना के बाद तनाव बढ़ गया है। भारत समेत कई देशों ने इस तख्तापलट पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। भारत ने कहा कि हम म्यांमार में लोकतांत्रिक व्यवस्था का समर्थन करते हैं। वहीं अमेरिका ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर इस तरह के कदम को वापस नहीं लिया जाता है तो जो लोग इसके जिम्मेदार हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। भारत ने भी कहा है कि देश में लोकतंत्र बने रहना चाहिए। साथ ही हिरासत में लिए गए नेताओं की रिहाई की भी मांग की गई है।
सेना ने देश में लगाया आपातकाल
वहीं इस पूरे मामले पर म्यांमार की सेना का कहना है कि हमने देश में एक साल के लिए आपातकाल (Emergency) लगा दिया है। अब एक साल तक देश सेना के हाथों में है। मालूम हो कि कुछ दिनों पहले ही सेना ने देश में तख्तापलट के संकेत दिए थे। सरकार और सेना के बीच करीब 5 हफ्तों से तनाव बना हुआ था। सेना का कहना है कि पिछले साल नवंबर में हुए चुनाव में धोखाधड़ी हुई है। इस कारण से वहां फिर से चुनाव होना चाहिए।
इस कारण से हुआ तख्तापलट
वहीं अगर तख्तापलट के मुख्य कारण चुनावी नतीजों की बात करें तो म्यांमार में 8 नवंबर को हुए चुनाव में एनएलडी ने यानी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने 83 फीसदी वोट हासिल किए थे। इस कारण से पार्टी ने 476 में से 396 सीटों पर कब्जा जमा लिया था। वहीं चुनाव में सेना के समर्थन वाली पार्टी यूनियन सॉलिडेरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी महज 33 सीटों पर ही जीत पाई थी। जिसके बाद ये तय हो गया कि देश में एनएलडी की दोबारा सरकार बनेगी। लेकिन सेना ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता। चुनाव में धांधली की गई है। अगर एनएलडी सरकार बनाएंगी तो देश में तख्तापलट कर देंगे।
सेना ने चुनाव आयोग पर भी लगाए कई आरोप
बतादें कि पहले भी म्यांमार में सेना ही राज करती थी। लेकिन साल 2011 में सैन्य शासन को समाप्त कर दिया गया था और वहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराकर सरकार बनाई गई थी। लेकिन जब देश में दूसरा चुनाव हुआ तो सेना अपने आप को सत्ता से बाहर होते हुए नहीं देख पाई और उसने तख्तापलट कर दिया। बतादें कि म्यांमार में सेना ने 49 सालों तक शासन किया है। चुनाव के बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति और चुनाव आयोग के खिलाफ शिकायत भी की थी। वहीं चुनाव आयोग सेना के आरोपों को पहले ही खारिज कर चुका है।
तख्तापलट की पहले से थी आशंका
सेना ने पहले ही कहा था कि वो देश का 2008 का संविधान निरस्त कर देगा। सेना के सबसे ताकतवर शख्त माने जाने वाले मलिट्री चीफ जनरल मिन आंग हलांग (General Min Aung Hlaing) ने चुनाव आयोग को वोटर लिस्ट जारी करने को कहा था। ताकि उसकी जांच की जा सकें। लेकिन आयोग ने ऐसा करने से मना कर दिया था। इसके बाद हलांग ने चेतावनी देते हुए कहा था कि देश में उपजे इन परिस्थितियों के कारण संविधान निरस्त हो सकता है। जिसके बाद से ही ये अंदाजा लगाया जा रहा था कि म्यांमार में सेना एक बार फिर से सत्ता पर काबिज होने जा रही है।
तख्तापलट कोई नई बात नहीं है
म्यांमार में तख्तापलट कोई नई बात नहीं है। यहां दो बार पहले भी तख्तापलट हो चुका है। एक बार 1962 में और दूसरी बार 1988 में। गौरतलब है कि पहले यहां लोकतंत्र का जो भी समर्थन करता था उसे वहां कि सेना गिरफ्तार कर लेती थी। आन सान सू की को भी सेना ने 2010 में रिहा किया था। इससे पहले वो म्यामांर में विपक्ष की नेता के तौर पर 20 साल नजरबंद थीं।
सू की को नोबेल से नवाजा गया है
आन सान सू की के पिता म्यांमार की आजादी के लिए लड़े थे। उनका नाम जनरल आंग सान था। सू की जब दो साल की थीं, तभी उनके पिता की हत्या कर दी गई थी। तब म्यामांर आजाद भी नहीं हुआ था। उनके जाने के बाद आन सान सू की ने देश में लोकतंत्र की लड़ाई लड़ी और उन्हें इसके लिए कई सालों तक जेल में रहना पड़ा। आन सान सू की को 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार से भी नावाजा गया है। जब उन्हें ये पुरस्कार दिया जा रहा था तब भी वो नजरबंद ही थीं।