हाइलाइट्स
- एमपी में तहसीलदार और नायब तहसीलदारों की हड़ताल।
- सरकार के न्यायिक कार्य विभाजन के आदेश से असंतोष।
- प्रदेशभर में राजस्व कामकाज ठप, लोग हो रहे हैं परेशान।
MP Tehsildar and Nayab Tehsildar Protest 2025: मध्यप्रदेश में 6 अगस्त से तहसीलदार और नायब तहसीलदारों ने सामूहिक रूप से काम से दूरी बना ली है। वे न तो आधिकारिक हड़ताल पर हैं, और न ही किसी अवकाश पर, लेकिन उनके इस कदम से पूरे प्रदेश में राजस्व कार्य पूरी तरह से ठप हो गए हैं।
यह विरोध ऐसे समय पर सामने आया है, जब प्रदेश की ‘साइबर तहसील’ पहल को प्रधानमंत्री स्वयं उत्कृष्टता पुरस्कार से सम्मानित कर चुके हैं। साथ ही, ‘फार्मर रजिस्ट्री’ के तहत किसान आईडी बनाने में मध्यप्रदेश ने गुजरात और महाराष्ट्र जैसे विकसित राज्यों को पीछे छोड़ते हुए देश में पहला स्थान हासिल किया है। इन दोनों महत्वपूर्ण उपलब्धियों के पीछे उन्हीं तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों की मेहनत है, जो अब सरकार के नए प्रशासनिक प्रयोगों और नीतिगत फैसलों से बेहद नाराज हैं।
क्यों नाराज हैं एमपी के तहसीलदार?
दरअसल, मध्यप्रदेश में 6 अगस्त से तहसीलदार और नायब तहसीलदारों ने सामूहिक रूप से राजस्व कार्यों का बहिष्कार कर दिया है। विरोध स्वरूप पूरे प्रदेश में तहसील अधिकारियों ने अपने डोंगल और सरकारी वाहन कलेक्टर कार्यालयों में जमा कर दिए हैं। यह सब सरकार से जारी “न्यायिक और गैर-न्यायिक कार्यों के विभाजन” संबंधी आदेश के खिलाफ किया जा रहा है। इस फैसले के चलते प्रदेश के राजस्व कार्यालयों में कामकाज पूरी तरह से ठप हो गया है, जिससे आम जनता को गंभीर असुविधाएं हो रही हैं।
वर्तमान में प्रदेश में कुल 950 तहसीलदार और नायब तहसीलदार पदस्थ हैं, जिनमें से 476 अधिकारियों को गैर-न्यायिक कार्य सौंप दिया गया है। इससे तहसीलों में चल रहे न्यायिक मामलों की सुनवाई प्रभावित हो रही है और प्रकरणों की लंबित संख्या (पेंडेंसी) लगातार बढ़ रही है। राजस्व अधिकारियों का कहना है कि यह निर्णय प्रशासनिक अव्यवस्था को बढ़ावा देगा और प्रभावी न्याय प्रक्रिया में रुकावट डालेगा। यही कारण है कि पूरे प्रदेश में तहसीलदार और नायब तहसीलदार धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। जिससे नामांतरण, बंटवारा और नक्शा तरमीम जैसे राजस्व कार्यों पर ब्रेक लग गया है।
राजस्व अभियानों में सराहनीय योगदान
राजस्व विभाग के महा-अभियानों के तहत नामांतरण, बंटवारा और नक्शा तरमीम जैसे करीब 80 लाख प्रकरणों का निराकरण किया जा चुका है। ये आंकड़े स्पष्ट रूप से बताते हैं कि जमीन पर कार्य कर रहे तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों ने प्रशासनिक क्षमता की नई मिसाल पेश की है। जब इन प्रकरणों के निराकरण का विश्लेषण वरिष्ठ अधिकारियों से तुलना करते हुए किया गया, तो तस्वीर और भी स्पष्ट हो जाती है। आंकड़े बताते हैं…
- तहसीलदार न्यायालयों का प्रकरण निपटान दर: 72.55%
- एसडीएम स्तर पर: 60.27%
- कलेक्टर स्तर पर: महज 32.68%
यह उत्कृष्ट प्रदर्शन उस स्थिति में हासिल हुआ है, जब प्रदेश में राजस्व अधिकारियों की भारी कमी है। आवश्यक 1,626 पदों के मुकाबले सिर्फ 1,456 अधिकारी कार्यरत हैं। इसके बावजूद ये अधिकारी न्यायिक कार्यों के साथ-साथ शव पंचनामा, कानून-व्यवस्था, आपदा प्रबंधन जैसे कई गैर-न्यायिक दायित्व भी निभा रहे हैं। इसके बावजूद, जब इन्हीं अधिकारियों को न्यायिक कार्यों से हटा दिया जाता है, तो न केवल पेंडेंसी बढ़ती है, बल्कि एक कुशल व्यवस्था भी प्रभावित होती है।
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सरकार के फैसले से नाराज तहसीलदार संघ
राजस्व महकमे के रिकॉर्ड प्रदर्शन और राष्ट्रीय स्तर पर मिले सम्मानों के बावजूद, राज्य सरकार द्वारा लागू किए गए न्यायिक और गैर-न्यायिक कार्यों के विभाजन के निर्णय से तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों में गहरा असंतोष है।
राजस्व अधिकारियों ने इस मामले में कई बार उचित मंचों पर ज्ञापन, अपील और अनुरोध किए, लेकिन उनकी वास्तविक चिंताओं को अनसुना कर दिया गया। निराश होकर कनिष्ठ प्रशासनिक सेवा संघ ने अब “आर-पार की लड़ाई” का ऐलान किया है, जिसमें अधिकारी सामूहिक कार्य बहिष्कार जैसे कदम उठा रहे हैं।
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रिकॉर्ड और पुरस्कारों के बावजूद अनदेखी
सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि जब मध्यप्रदेश के तहसीलदार सीमित संसाधनों के बावजूद प्रधानमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार जैसे सम्मानों तक पहुँच रहे हैं और 72% से अधिक मामलों का न्यायिक निपटान कर रहे हैं, तो फिर उनके ऊपर ऐसे अव्यवहारिक प्रशासनिक प्रयोग क्यों थोपे जा रहे हैं?
सरकार की यह नीति ना सिर्फ अच्छे काम को नजरअंदाज कर रही है, बल्कि सबसे मेहनती अधिकारियों का मनोबल भी गिरा रही है। इसका सीधा असर आम लोगों के कामों पर पड़ रहा है, राजस्व से जुड़ी फाइलें अटक रही हैं और विभाग में अव्यवस्था बढ़ रही है।