पन्ना। करीब 14 साल पहले बांधवगढ़ बाघ अभयारण्य से बाघ पुनर्स्थापना योजना के अंतर्गत मध्यप्रदेश के पन्ना बाघ अभयारण्य में लाई गई पहली बाघिन टी-1 की मौत हो गई। सत्रह वर्षीय इस बाघिन ने पांच बार में 13 शावकों को जन्म दिया था। पन्ना बाघ अभयारण्य के क्षेत्र संचालक बृजेन्द्र झा ने बताया कि एक बाघिन के अवशेष वन गश्ती दल को मंगलवार शाम को पन्ना बाघ अभयारण्य के परिक्षेत्र मड़ला में मिले।
उन्होंने बताया कि बुधवार को अवशेषों का परीक्षण किया गया और इस दौरान अवशेषों के पास निष्क्रिय रेडियो कॉलर पाया गया जो बाघिन टी-1 को 2017 में पहनाया गया था। उन्होंने कहा कि इस बाघिन की मृत्यु प्राकृतिक प्रतीत होती है, क्योंकि क्षेत्र में कुछ भी संदेहास्पद नहीं मिला है। झा ने बताया कि अत: अवशेषों के नमूने सेंट्रल फॉर वाइल्डलाइफ फॉरेंसिक एंड हेल्थ, नानाजी देशमुख बेटेरिनरी कॉलेज, जबलपुर एवं ‘स्टेट फॉरेंसिक लेबोरेट्री’, सागर भेजे गए हैं।
उन्होंने बताया कि रिपोर्ट प्राप्त होने पर मृत्यु का कारण स्पष्ट हो सकेगा। उन्होंने कहा बाघिन टी-1 को चार मार्च 2009 को पन्ना बाघ अभयारण्य में बांधवगढ़ बाघ अभयारण्य से बाघ पुनर्स्थापना योजना के अंतर्गत लाया गया था। उसकी आयु लगभग 17 वर्ष थी। झा ने कहा कि सामान्यत: फ्री रेंजिंग में बाघ/बाघिन की आयु लगभग 14 वर्ष होती है।
उन्होंने कहा बाघिन टी-1 ने पांच बार में 13 बच्चों को जन्म दिया था। बाघिन ने अंतिम बार 20-21 जुलाई 2016 में शावकों को जन्म दिया था। झा ने बताया कि पन्ना बाघ अभयारण्य में यह बाघिन 14 वर्ष से अधिक समय तक स्वछंद विचरण करती रही जो कि अपने आप में उल्लेखनीय है।
उन्होंने कहा कि वृद्ध हो जाने की वजह से बाघिन शिकार न कर पाने के कारण दूसरे बाघों द्वारा किये गये शिकार को खा कर अपना पेट भर रही थी। झा ने बताया कि पन्ना बाघ अभयारण्य में बाघ पुनर्स्थापना योजना में बाघिन टी-1 का अहम योगदान रहा।