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MP: मेंटल हेल्थ सिर्फ स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी नहीं, सरपंच सहित शिक्षक-पुलिस तक को मिलेगी सुसाइड रोकने की ट्रेनिंग

MP Suicide Prevention मध्यप्रदेश में आत्महत्या रोकने गेटकीपर ट्रेनिंग शुरू, बच्चों और गर्भवती महिलाओं की मानसिक सेहत पर फोकस।

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Wasif Khan
MP: मेंटल हेल्थ सिर्फ स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी नहीं, सरपंच सहित शिक्षक-पुलिस तक को मिलेगी सुसाइड रोकने की ट्रेनिंग

हाइलाइट्स

  • प्रदेश में आत्महत्या रोकने गेटकीपर ट्रेनिंग शुरू

  • भोपाल के 12 स्कूलों से कार्यक्रम की शुरुआत

  • गर्भवती महिलाओं की मानसिक सेहत पर फोकस

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MP Suicide Prevention: मध्यप्रदेश में आत्महत्या के लगातार बढ़ते मामलों ने सरकार को चिंता में डाल दिया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि देशभर में 2023 में दर्ज 1.71 लाख आत्महत्याओं में से 16 हजार से ज्यादा मामले अकेले मध्यप्रदेश से जुड़े थे। आत्महत्या के मामलों में मध्यप्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है। इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने अब बड़ा कदम उठाया है। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जिम्मेदारी केवल स्वास्थ्य विभाग की नहीं होगी, बल्कि समाज के हर स्तर पर लोग इस मिशन से जुड़े होंगे।

भोपाल के 12 स्कूलों से शुरुआत, तीन साल में पूरे प्रदेश में लागू

राज्य सरकार ने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (National Mental Health Programme) के तहत ‘गेटकीपर ट्रेनिंग प्रोग्राम’ (Gatekeeper Training Program) की शुरुआत की है। इसकी पायलट परियोजना भोपाल के 12 सरकारी स्कूलों में शुरू की गई है। इस योजना का मकसद है कि हर स्तर पर लोगों को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को पहचानने और समय रहते आत्महत्या की रोकथाम के लिए प्रशिक्षित किया जाए। अगले तीन सालों में इसे पूरे प्रदेश में लागू किया जाएगा।

[caption id="attachment_899021" align="alignnone" width="1309"]publive-image AI Generated[/caption]

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सरकार का मानना है कि आत्महत्या को रोकने की जमीनी जिम्मेदारी केवल डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों पर नहीं छोड़ी जा सकती। यही कारण है कि अब स्कूल के शिक्षक, गांव के सरपंच और पुलिसकर्मी तक को ट्रेनिंग दी जाएगी। ताकि वे अपनी-अपनी भूमिका में समाज में ऐसे लोगों की पहचान कर सकें जो डिप्रेशन या आत्महत्या की प्रवृत्ति से गुजर रहे हों।

बच्चों और युवाओं की मानसिक सेहत पर विशेष फोकस

मध्यप्रदेश सरकार ने यूनिसेफ (UNICEF) के साथ मिलकर ‘उमंग मॉड्यूल’ तैयार किया है, जिसमें बच्चों और युवाओं की मानसिक सेहत को मजबूत करने पर ध्यान दिया जाएगा। स्कूल और कॉलेज स्तर पर छात्रों को बेसिक ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि वे तनाव, चिंता और डिप्रेशन जैसी समस्याओं से बेहतर तरीके से निपट सकें। उच्च शिक्षा विभाग के 68 कॉलेजों में इसकी शुरुआत की जा रही है।

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मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि युवाओं और किशोरों में आत्महत्या की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है। परीक्षा का दबाव, असफलता का डर, पारिवारिक कलह और रिश्तों में असुरक्षा इसके बड़े कारण हैं। ऐसे में अगर शुरुआती स्तर पर बच्चों की मानसिक स्थिति की पहचान कर ली जाए तो स्थिति बिगड़ने से पहले ही काउंसलिंग और इलाज से उन्हें बचाया जा सकता है।

आशा कार्यकर्ता बनेंगी मददगार

राज्य सरकार ने इस मिशन में आशा और एएनएम कार्यकर्ताओं को भी शामिल किया है। हर आशा कार्यकर्ता औसतन 200 घरों और करीब 1000 लोगों से जुड़ी होती है। उन्हें विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि वे अपने क्षेत्र में ऐसे लोगों की पहचान कर सकें जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य की मदद की जरूरत है। वे लोगों को टेली-मानस सेवा (Tele-Manas Service), ‘मंथित ऐप’ और नजदीकी काउंसलिंग केंद्र से जोड़ने का काम करेंगी।

[caption id="" align="alignnone" width="1024"]publive-image आशा कार्यकर्ता। (AI Generated)[/caption]

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अब तक इस तरह की गेटकीपर ट्रेनिंग ज्योतिष, पुजारी, मौलवी, पादरी और अन्य धार्मिक गुरुओं को दी जा रही थी। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार रोजाना इलाज के लिए आने वाले 40 मानसिक रोगियों में से करीब 4-5 मरीज इन्हीं गेटकीपर्स की मदद से अस्पताल तक पहुंचते हैं।

गर्भवती और नई माताओं की मानसिक सेहत पर नजर

मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम मिलकर ‘कुशल मां अभियान’ (Kushal Maa Abhiyan) की शुरुआत कर रहे हैं। इस पहल का मकसद है कि गर्भवती महिलाओं और नई मां बनने वाली महिलाओं की मानसिक सेहत पर समय रहते ध्यान दिया जा सके।

अक्सर गर्भावस्था और प्रसव के बाद महिलाओं में डिप्रेशन और एंग्जायटी के मामले सामने आते हैं, जिन्हें परिवार और समाज सामान्य थकान या चिड़चिड़ापन समझकर नजरअंदाज कर देता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) की रिपोर्ट बताती है कि हर 10 में से 1 महिला गर्भावस्था या डिलीवरी के बाद मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करती है। डब्ल्यूएचओ (WHO) भी इसे गंभीर चुनौती मानता है।

[caption id="attachment_899024" align="alignnone" width="1501"]publive-image AI Generated[/caption]

अब प्रदेश के स्वास्थ्य तंत्र को इस दिशा में अपडेट किया गया है। आशा और एएनएम कार्यकर्ताओं को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे गर्भवती महिलाओं और नई माताओं में मानसिक बदलावों की पहचान करें। अगर कोई महिला लंबे समय तक उदासी, चिड़चिड़ापन, नींद की कमी या बच्चे से लगाव की कमी महसूस कर रही है तो उसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन की श्रेणी में चिन्हित कर तुरंत टेली-मानस या नजदीकी मानसिक स्वास्थ्य केंद्र से जोड़ा जाएगा।

क्यों जरूरी था यह कदम

प्रसव के बाद महिलाओं की मानसिक समस्याओं को अक्सर घरेलू जिम्मेदारियों या शारीरिक थकान के साथ जोड़कर नजरअंदाज किया जाता रहा है। लेकिन लंबे समय तक यह स्थिति बनी रहने पर मां और शिशु दोनों की सेहत पर गंभीर असर पड़ता है। इसे रोकने के लिए अब गर्भावस्था, प्रसव और प्रसव के छह सप्ताह बाद तक मानसिक स्वास्थ्य की नियमित जांच की जाएगी। जरूरत पड़ने पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) और जिला अस्पतालों के ‘मन कक्ष’ में इलाज उपलब्ध कराया जाएगा।

FAQs

Q. गेटकीपर ट्रेनिंग प्रोग्राम क्या है और इसमें किन्हें शामिल किया जाएगा?
गेटकीपर ट्रेनिंग प्रोग्राम आत्महत्या रोकने की पहल है, जिसमें स्कूल शिक्षक, सरपंच, पुलिसकर्मी, धार्मिक गुरु और आशा कार्यकर्ताओं को मानसिक स्वास्थ्य की ट्रेनिंग दी जाएगी। वे डिप्रेशन या आत्महत्या की प्रवृत्ति वाले लोगों की पहचान कर उन्हें काउंसलिंग और इलाज से जोड़ेंगे।

Q. बच्चों और युवाओं की मानसिक सेहत को लेकर सरकार क्या कदम उठा रही है?
सरकार ने यूनिसेफ के साथ मिलकर ‘उमंग मॉड्यूल’ तैयार किया है। इसके तहत स्कूल और कॉलेजों में छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य की बेसिक ट्रेनिंग दी जाएगी। भोपाल के 12 स्कूलों और उच्च शिक्षा विभाग के 68 कॉलेजों में इसकी शुरुआत हो चुकी है।

Q. कुशल मां अभियान क्या है और इसका लाभ किन्हें मिलेगा?
कुशल मां अभियान गर्भवती और नई माताओं की मानसिक सेहत को ध्यान में रखकर शुरू किया गया है। इसके जरिए पोस्टपार्टम डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी समस्याओं की समय रहते पहचान होगी और महिलाओं को टेली-मानस सेवा व नजदीकी मानसिक स्वास्थ्य केंद्र से जोड़ा जाएगा।

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