PESA ACT: देश में राजनीतिक पार्टियां अपने वोट बैंक को साधने के लिए समय-समय पर उनके लिए कोई न कोई योजना या कानून बनाते रहती हैं। इसी कड़ी में अब मध्य प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए मास्टर स्ट्रोक चल दिया है। दरअसल, सीएम ने ऐलान किया है कि जल्द ही एमपी में चरणबद्ध तरीके से पेसा एक्ट को लागू किया जाएगा। आइए जानते हैं क्या है पेसा एक्ट?
1996 में इसे लागू किया गया
बतादें कि पेसा एक्ट के तहत स्थानीय संसाधनों पर अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों की समिति को अधिकार दिया जाता है। साथ ही ग्राम सभाओं को अत्यधिक ताकत दी जाती है। PESA का पूरा नाम पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) विधेयक है। भूरिया समिति की सिफारिशों के आधार पर इस कानून को बनाया गया था। 16 दिसंबर, 1996 को संसद में इस विधेयक को प्रस्तुत किया गया था और दिसंबर, 1996 में यह दोनों सदनों से पारित भी हो गया। 24 दिसंबर को राष्ट्रपति की सहमति के बाद इसे लागू भी कर दिया गया।
इस कानून का उद्देश्य
इसका मूल उद्देश्य यह था कि केंद्रीय कानून में जनजातियों की स्वायत्तता के बिंदु स्पष्ट कर दिये जाएं जिनका उल्लंघन करने की शक्ति राज्यों के पास न हो। वर्तमान में 10 राज्यों (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान) में यह अधिनियम लागू होता है। लेकिन छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड और ओडिशा में इसे पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है। लेकिन मप्र में अब इसे लागू करने की तैयारी है। इस कानून का अन्य उद्देश्य जनजातीय जनसंख्या को स्वशासन प्रदान करना, पारंपरिक परिपाटियों की सुसंगता में उपयुक्त प्रशासनिक ढाँचा विकसित करना तथा ग्राम सभा को सभी गतिविधियों का केंद्र बनाना भी है।
एक्ट से लोगों को मिलेगा अधिकार
कानून के लागू होते ही अनुसूचित जाति और जनजाति वाली ग्राम पंचायतों को सामुदायिक संसाधन जैसे जमीन, खनिज संपदा, लघु वनोपज की सुरक्षा और संरक्षण का अधिकार मिल जाएगा। इतना ही नहीं इस एक्ट के लागू होने के बाद सामुदायिक वन प्रबंधन समितियां वर्किंग प्लान के अनुसार प्रत्येक वर्ष माइक्रो प्लान बनाएंगे और उसे ग्राम सभा से अनुमोदित कराएंगे।