हाइलाइट्स
- शहडोल में महिला सिविल जज ने दिया इस्तीफा।
- जज को हाईकोर्ट में पदोन्नत किए जाने का विरोध।
- सीनियर जज पर उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के आरोप।
MP Shahdol Mahila Judge Resignation: मध्य प्रदेश के शहडोल में पदस्थ महिला सिविल जज (जूनियर डिवीजन) ने (Woman Judge resignation) न्यायिक सेवा से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपना इस्तीफा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) को सौंपा। इस्तीफे के साथ उन्होंने एक भावनात्मक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने सिस्टम की चुप्पी, सीनियर जज के उत्पीड़न और न्यायपालिका की निष्क्रियता को उजागर किया। उनका इस्तीफा अब पूरे न्यायिक तंत्र पर सवाल खड़े कर रहा है।
इस्तीफे में झलका महिला जज का दर्द
शहडोल की महिला जूनियर डिवीजन सिविल जज ने 28 जुलाई को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। लेकिन यह केवल एक इस्तीफा नहीं था, बल्कि उस दर्द और निराशा की दास्तान है जो अब न्यायपालिका के गलियारों में गूंज रही है। उन्होंने अपने इस्तीफा पत्र में लिखा, “‘मैं न्यायिक सेवा से इस्तीफा दे रही हूं, क्योंकि मैंने संस्थान को नहीं, बल्कि संस्थान ने मुझे निराश किया।”
जिसने पीड़ा दी, उसे इनाम मिला
महिला जज ने हाल ही में उच्च न्यायालय में नियुक्त एक वरिष्ठ जज पर उत्पीड़न और दुराचार जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि जिस व्यक्ति ने उन्हें सालों तक मानसिक प्रताड़ना दी, उसी को इनाम के रूप में हाईकोर्ट का पद सौंप दिया गया। इसलिए वे संस्थान छोड़ रहीं हैं।
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सच बोलने की कीमत चुकाई है…
महिला जज ने लिखा कि उन्होंने खुद को उस आवाज के रूप में पेश किया, जिसने बेखौफ होकर एक प्रभावशाली और ‘असीमित शक्तियों’ से लैस सीनियर जज के खिलाफ सच बोलने की हिम्मत की।
उन्होंने कहा कि मैंने सालों तक मानसिक उत्पीड़न झेला और हर वैधानिक मंच पर न्याय की गुहार लगाई, लेकिन हर बार उनकी आवाज अनसुनी रही। मैंने न्याय से नहीं, बल्कि उस व्यवस्था से अपना भरोसा खोया है, जो न्याय की रक्षा की शपथ लेकर भी खुद भटक चुकी है।
उनका आरोप है कि.. “मैंने पूरी सच्चाई और सबूतों के साथ अपनी बात रखी, पर न कोई जांच हुई, न कोई नोटिस भेजा गया, और न ही आरोपी जज से जवाब मांगा गया।” उनके मुताबिक, उन्होंने बदले की नहीं, बल्कि न्याय की उम्मीद की थी, जो कभी पूरी नहीं हुई।
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न्यायमूर्ति’ शब्द भी बोझ बन जाता है…
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजे अपने इस्तीफे में महिला जज बेहद तीखे शब्दों में लिखा कि जिस व्यक्ति ने उन्हें सालों तक मानसिक प्रताड़ना दी, उससे कभी कोई सवाल तक नहीं किया गया। उल्टा, उसे जांच के दायरे में लाने के बजाय पुरस्कार, सिफारिश और पदोन्नति दे दी गई। उनके दुखों का कारण बने आरोपी जज को जवाबदेही से बचाया गया।
उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि “यह फैसला संस्थागत विफलता के खिलाफ एक विरोध है, जिसे समन मिलना चाहिए था, उसे सम्मान का मंच मिल गया। जिसे जवाबदेह ठहराया जाना था, उसे जज की कुर्सी दे दी गई।”
“आज उसे ‘न्यायमूर्ति’ कहा जा रहा है, लेकिन यह उस शब्द के साथ एक गहरा और क्रूर मजाक है, जो न्याय के मूल भाव को ही अपमानित करता है। जब अन्याय को सम्मान मिले, तो ‘न्यायमूर्ति’ शब्द भी बोझ बन जाता है।”
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अब मैं जा रही हूं, उन जख्मों के साथ जो कभी नहीं भरेंगे…
अपने इस्तीफा पत्र के अंतिम शब्दों में लिखा कि…
“मैं अब उस व्यवस्था को छोड़ रही हूं जिसने मुझे सबसे गहरे घाव दिए। ये ऐसे घाव हैं जिन्हें न कोई बहाली भर सकती है, न कोई मुआवजा मिटा सकता है और न ही कोई माफी कम कर सकती है। मेरा यह पत्र सिर्फ एक इस्तीफा नहीं, बल्कि एक दस्तावेज है जो हमेशा उन फाइलों में गूंजता रहेगा, जहां न्याय की उम्मीद कभी दर्ज की गई थी।”
“मेरा इस्तीफा इस बात की गवाही रहेगा कि मध्य प्रदेश में एक महिला जज थी, जो न्याय के लिए लड़ी, लेकिन सिस्टम ने ही उसका साथ छोड़ दिया।”
क्या है पूरा मामला?
मध्यप्रदेश की महिला जज का मामला न्यायपालिका के भीतर न्याय और जवाबदेही को लेकर गंभीर सवाल खड़ा करता है। 2023 में पीड़ित महिला जज ने एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी पर यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने इस संबंध में राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को पत्र लिखकर उस अधिकारी की पदोन्नति रोकने की अपील की थी। उनकी शिकायत अकेली नहीं थी, दो अन्य महिला जजों ने भी लिखित शिकायतें दर्ज कराई थीं।
गंभीर आरोपों के बाद भी नहीं हुई कोई जांच
इन आरोपों के बावजूद न तो जांच बैठाई गई, न ही आरोपी अधिकारी से कोई स्पष्टीकरण मांगा गया। इसके उलट, हाईकोर्ट ने उसी अधिकारी की पदोन्नति की सिफारिश कर दी। केंद्र सरकार ने 28 जुलाई 2025 को उनकी नियुक्ति को मंजूरी भी दे दी, हालांकि उन्होंने अभी तक शपथ नहीं ली है।
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पहले हटाई गई थीं सेवा से, सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत
दरअसल, जून 2023 में छह महिला जजों को प्रशिक्षण काल में “असंतोषजनक प्रदर्शन” का हवाला देकर सेवा से बाहर कर दिया गया था। जिसमें इस्तीफा देने वाली शहडोल की पीड़ित महिला जज शामिल थीं।
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान लिया और कहा “महिला अधिकारियों के साथ न्याय होते दिखना भी जरूरी है।” इसके बाद मार्च 2024 में आरोप लगाने वाली महिला जज को फिर से शहडोल में सिविल जज के पद पर बहाल किया गया था।
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