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MP Paramedical College Case: मप्र में 21 हजार छात्रों के अवैध दाखिले, पैरामेडिकल काउंसिल पर झूठा हलफनामा देने का आरोप

MP Paramedical College Case: मध्यप्रदेश में पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता और प्रवेश में अनियमितता मामले में पैरामेडिकल काउंसिल के जवाब पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है। काउंसिल ने सु्प्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में विरोधाभाषी शपथ पत्र दिए हैं।

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BP Shrivastava
MP Paramedical College Irregularities Case

MP Paramedical College Irregularities Case

हाइलाइट्स

  • एमपी पैरामेडिकल काउंसिल पर विरोधाभासी शपथ पत्र देने का आरोप
  • काउंसिल ने हाईकोर्ट में कहा-सत्र 2023-24 अभी शुरू नहीं हुआ
  • सुप्रीम कोर्ट में काउंसिल बोला- सत्र 2023-24 पढ़ाई कर रहे छात्र
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MP Paramedical College Recognition-Admission Irregularities: मध्यप्रदेश में पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता और प्रवेश में अनियमितताओं के मामले पैरामेडिकल काउंसिल के जवाब पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है और याचिकाकर्ता लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के आवेदन पर फैसला सुरक्षित रखा है। कोर्ट ने कार्यवाही के दौरान टिप्पणी की कि यह मामला प्रथम दृष्टया दो विरोधाभासी शपथ पत्र देने का है, जिसमें में कोई एक ही सही हो सकता है।

MPPC के विरोधाभासी कथन से HC नाराज

मध्यप्रदेश में पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता और प्रवेश में अनियमितताओं के मामले में लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल की जनहित याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल की युगलपीठ ने एमपी पैरामेडिकल काउंसिल (MPPC) के हाईकोर्ट में पेश किए गए जवाब और सुप्रीम कोर्ट में पेश शपथ पत्र में विरोधाभासी कथन पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की है और याचिकाकर्ता के आवेदन पर फैसला सुरक्षित रखा है। कोर्ट ने टिप्पणी की है कि यह मामला प्रथम दृष्टया दो विरोधाभासी शपथ पत्र देने का है, जिसमें में कोई एक ही सही हो सकता है।

काउंसिल के रजिस्ट्रार पर अवमानना कार्यवाही की मांग

दरअसल, याचिकाकर्ता लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने हाईकोर्ट में एक आवेदन पेश कर पैरामेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार शैलोज जोशी द्वारा हाईकोर्ट में झूंठा शपथ पत्र दाखिल करने के मामले में झूठी गवाही (Perjury) और अदालत की आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग की है।

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हाईकोर्ट और सुप्रीम कार्ट में विरोधाभासी शपथ पत्र

आवेदन में आरोप है कि हाईकोर्ट में 21 जुलाई 2025 को दायर जवाब में पैरामेडिकल काउंसिल ने दावा किया था कि सत्र 2023-24 अभी शुरू नहीं हुआ और बिना मान्यता एवं संबद्धता किसी संस्थान को प्रवेश की अनुमति नहीं है। जबकि, सुप्रीम कोर्ट में 28 जुलाई 2025 को दाखिल विशेष अनुमति याचिका (SLP) में स्वयं काउंसिल ने कहा कि 21,894 छात्र जनवरी से जुलाई के बीच एडमिशन लेकर सत्र 2023-24 में पढ़ाई कर रहे हैं और सत्र भी प्रारंभ हो चुका है।

याचिकाकर्ता के वकील आलोक वागरेचा ने हाईकोर्ट को बताया कि काउंसिल के रजिस्ट्रार द्वारा हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट में पेश शपथ पत्र पूरी तरह विरोधाभासी और भ्रामक हैं, जो अदालत को गुमराह करने, न्याय प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की साजिश का हिस्सा हैं।

कैसे पकड़ा गया झूंठ ?

  • पैरामेडिकल काउंसिल ने हाईकोर्ट में 21 जुलाई 2025 को दायर जवाब में दावा किया था कि सत्र 2023-24 अभी शुरू नहीं हुआ और बिना मान्यता एवं संबद्धता किसी संस्थान को प्रवेश की अनुमति नहीं है।
  • सुप्रीम कोर्ट में 28 जुलाई 2025 को दाखिल विशेष अनुमति याचिका (SLP) में स्वयं काउंसिल ने कहा कि 21,894 छात्र जनवरी से जुलाई के बीच एडमिशन लेकर सत्र 2023-24 में पढ़ाई कर रहे हैं और सत्र भी प्रारंभ हो चुका है।
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क्या कहते हैं नियम...

एमपी पैरामेडिकल काउंसिल के नियमों के हिसाब से डिप्लोमा, डिग्री एवं पीजी पाठ्यक्रमों में किसी भी संस्थान के द्वारा छात्रों के प्रवेश बिना विश्वविद्यालय से संबद्धता प्राप्त किए नहीं दिए जा सकते हैं। दूसरी ओर मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय (Madhya Pradesh Medical University) के परिनियम में भी यही प्रावधान किया गया है ।

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि मध्यप्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी जबलपुर के द्वारा आज तक प्रदेश के किसी भी पैरा मेडिकल कॉलेज को सत्र 2023-24 की संबद्धता प्रदान नहीं की गई है। जिस कारण से नियमानुसार किसी भी संस्थान में छात्रों का प्रवेश कानूनी रूप से संभव ही नहीं था। उसके बावजूद पैरामेडिकल काउंसिल ने एक ओर हाईकोर्ट को यह बताया है कि नियमानुसार प्रवेश बगैर सम्बद्धता के संभव ही नहीं है, लेकिन दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट से कहा की प्रवेश प्रक्रिया सम्पन्न हो चुकी है और छात्रों का सत्र जारी है। उसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के 16 जुलाई के आदेश पर अंतरिम रोक लगाई थी। हाईकोर्ट ने इस बात पर भी कड़ी नाराजगी व्यक्त की थी। 16 जुलाई की सुनवाई में भी पैरामेडिकल काउंसिल के द्वारा छात्रों के प्रवेश से संबंधित सही तथ्य हाईकोर्ट को नहीं बताए गए थे और बार-बार ये दावा किया जा रहा था कि अभी प्रवेश प्रक्रिया एवं शैक्षणिक सत्र शुरू होना बाकी है।

हाईकोर्ट लगा चुका है जुर्माना

पैरामेडिकल काउंसिल के खिलाफ अवैध एडमिशन का यह कोई पहला मामला नहीं है। अक्टूबर 2022 में नर्मदा पैरामेडिकल कॉलेज के मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पाया था कि संस्थान ने विश्वविद्यालय से संबद्धता लिए बिना ही छात्रों का प्रवेश किया और पैरामेडिकल काउंसिल को इसकी जानकारी होने के बावजूद उसने कोई कार्रवाई नहीं की और अपनी जिम्मेदरियों से आंखें फेर लीं। परिणामस्वरूप, कोर्ट ने कॉलेज को 25,000 रुपए प्रति छात्र के हिसाब से हर्जाना देने का आदेश दिया और पैरामेडिकल काउंसिल पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। साथ ही कोर्ट ने कहा था कि बिना संबद्धता प्रवेश अवैध है और परिषद की चुप्पी ने छात्रों का भविष्य खतरे में डाला है।

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काउंसिल का तर्क

सुनवाई के दौरान पैरा मेडिकल काउंसिल की ओर से तर्क दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी में दिए गए कोई भी तथ्य का जिक्र सुप्रीम कोर्ट के सामने ही किया जाना उचित होगा। इस पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि हाइकोर्ट के सामने पेश किए गए शपथपत्र में झूठे तथ्य पेश किए गए, तो इसका संज्ञान हाईकोर्ट के द्वारा भी लिया जा सकता है। हाईकोर्ट ने पैरा मेडिकल काउंसिल को स्पष्ट किया है कि यदि हाईकोर्ट इसमें संज्ञान लेती है तो संबंधित अधिकारी को इस संबंध में जवाब देने के लिए अवसर जरूर दिया जाएगा ।

पूरे मामले में याचिकाकर्ता के आवेदन पर युगलपीठ ने निर्णय सुरक्षित रखते हुए सुनवाई की अगली तारीख 20 अगस्त तय की है।

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