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MP OBC Reservation Case Update: मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण और 13 फीसदी होल्ड पदों से जुड़ी दो ट्रांसफर याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी हैं। अब इस मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट को ही फैसला करना होगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में आरक्षण मामलों की सुनवाई पर रोक लगाई थी, लेकिन अब फिर से ओबीसी आरक्षण हाईकोर्ट के पाले में आ गया है।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट को करना होगा फैसला
ओबीसी आरक्षण और 13 फीसदी पद होल्ड करने से जुड़ी 2 ट्रांसफर याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दी हैं। जस्टिस अभय एस ओका एवं जस्टिस अगस्टाइन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा है कि मप्र हाईकोर्ट उन विचाराधीन प्रकरणों का अंतिम निराकरण करे जिनमें शीर्ष अदालत से स्टे नहीं है।
परीक्षाओं में 13 फीसदी पद होल्ड
दरअसल, महाधिवक्ता के अभिमत के आधार पर सामान्य प्रशासन विभाग ने 29 सितंबर 2022 को एक अधिसूचना जारी की थी। इस अधिसूचना के तहत लोक सेवा आयोग द्वारा 2019 से 2023 तक की चयन परीक्षाओं में 13 प्रतिशत सामान्य वर्ग के और 13 फीसदी पद ओबीसी वर्ग के होल्ड कर दिए गए हैं।
सरकार के फैसले को चुनौती
इस निर्णय को चुनौती देते हुए सागर निवासी अभ्यर्थी प्रज्ञा शर्मा, मोना मिश्रा, छतरपुर निवासी मनु सिरोटिया, मंडला निवासी मोना मिश्रा, शाजापुर निवासी पीयूष पाठक, सिंगरौली निवासी सोनम चतुर्वेदी, देवास निवासी स्वाति मिश्रा, अशोकनगर निवासी शिवकुमार रघुवंशी, भोपाल निवासी दीपक राजपूत की ओर से हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कर ओबीसी के 14 प्रतिशत आरक्षण का लाभ देकर 100 प्रतिशत पदों पर चयन करने की मांग की गई थी।
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सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर याचिकाएं
इन प्रकरणों में सुनवाई नहीं होने के कारण उक्त याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर याचिकाएं दाखिल की थीं। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा कि यदि किसी प्रकरण में स्थगन नहीं है, तो हाईकोर्ट विचाराधीन प्रकरणों का निराकरण करे। ओबीसी का पक्ष रखने के लिए शासन द्वारा नियुक्त विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी और EWS आरक्षण के मूल प्रकरण ट्रांसफर हो चुके हैं। मप्र हाईकोर्ट की वेबसाइट पर इन प्रकरणों का स्टेटस डिस्पोज ऑफ बता रहा है। इस कारण इन प्रकरणों में पूर्व में पारित अंतरिम आदेश निष्प्रभावी हो जाते हैं।
ऐसे में शासन को होल्ड किए गए पदों को अनहोल्ड करके नियुक्तियां कर देनी चाहिए। उनका कहना है कि सामान्य प्रशासन विभाग को यह अधिकार नहीं है कि विधानसभा द्वारा बनाए गए कानून के विरुद्ध कोई अधिसूचना या परिपत्र जारी करे।
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