ग्वालियर। MP NEWS: अभी भी डाकू हैं क्या यहाँ…? जब मध्य प्रदेश में ग्वालियर के डीएसपी, एसडीओपी संतोष पटेल ने ग्रामीणों से यह सवाल पूछा तो वह ग्रामीण खिलखिलाकर हंस पड़े। बीच जंगल में ग्रामीणों के साथ खूबसूरत वादियों का आनंद लेते हुए एसडीओपी संतोष पटेल ने एक वीडियो जारी किया है। जानिए डीएसपी के डाकू वाले सवाल क्यों खिलखिलाकर हंसे ग्रामीण…
डाकुओं के अतंक से थर्राता था घाटीगांव
दरअसल, किसी जमाने में डाकुओं के अतंक से थर्राने वाला घाटीगांव में में अब शांति है। बुरे काम और बुराई का अंत हो चुका है। घाटीगांव ग्वालियर के ग्रामीणों ने डीएसपी संतोष पटेल को बताया कि एक जमाने यहां डाकू घूमा करते थे। जब एसडीओपी ने ग्रामीणों से सवाल किया कि क्या अभी भी यहां डाकू हैं, तो ग्रामीणों ने कहा कि अभी कहां और खिलखिलाकर हंसने लगे।
डकैतों का अंत कर दिया गया
बता दें कि घाटीगांव ग्वालियर क्षेत्र में पुलिस की मुश्तैदी और सरकार के अभियानों के चलते क्षेत्र में डकैतों का अंत कर दिया गया है। इस बीच एक वीडियो जारी करते हुए मध्य प्रदेश में घाटीगांव ग्वालियर के डीएसपी, एसडीओपी संतोष पटेल ने एक वीडियो जारी करते हुए संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि- गुंडागर्दी में तीन गए धन, वैभव और वंश। ना मानो तो देख लो, रावण, कौरव, कंस। अच्छाई हमेशा बनी रहती है। वहीं बुराई धीरे-धीरे घिसकर खत्म हो जाती है।
अभी भी डाकू हैं क्या?इस प्रश्न पर लोग हंसने लगे।जंगल में ख़ाकी व डकैतों की मुठभेड़ होती थी झरना कह रहा कि ये सुकून के लिए हैं न कि छिपकर आतंक फैलाने लिए डकैतों को खाकी ने ख़ाक में मिला दिया अब जिओ ज़िंदगी सुकून से-जमीन सींची है खाकी ने खून से।बुराई का अंत होता है सच्चाई का अंनत। pic.twitter.com/t39GPtpsV2
— Santosh Patel DSP (@Santoshpateldsp) July 27, 2023
DSP संतोष पटेल का वीडियो
डीएसपी संतोष पटेल ने फेसबुक पर एक वीडियो जारी करते हुए लिखा कि- “अभी भी डाकू हैं क्या यहाँ?..इस सवाल पर ग्रामीण खिलखिलाकर हंसने लगे तो मुझे समझ आया कि बुराई का अंत होता है सच्चाई का अनन्त। एक समय था जब घाटीगाँव के जंगल में ख़ाकी और डकैतों की मुठभेड़ होती है। यहाँ के लोगों को 20 साल पहले के पुलिस अधिकारियों के मोबाइल नम्बर मौखिक याद हैं। मैंने एक नम्बर डायल किया तो सीधे नीरज पांडेय सर को लगा जो यह बता रहा था कि उस समय पुलिस पर लोग कितना भरोसा करते थे। आज झरने में बैठकर जीवन का एक नया आनंद लिया जो हमें सन्देश दे रहा था कि ऐसे प्राकृतिक स्थान प्रकृति प्रेमियों को सुकून देने के लिए हैं न कि छिपकर आतंक फैलाने के लिए। पुलिस सैकड़ों किलोमीटर पैदल चला करती थी अनेकों खाकी शहीद भी हुई होगी इन जंगलों में तब जाके यहाँ पक्षियों की चहक, झरनों की कल-कल और सुकून की हवा बह रही है। खूबसूरत झरनों,आदिवासी भाईयों की हाय लगी और डकैतों को खाकी ने ख़ाक में मिला दिया। अब जंगल में सिर्फ खरपतवार रह गयी है खतरनाक चीजें खतम हो चुकी हैं। जिओ ज़िंदगी सुकून से-जमीन सींची है पुलिस के खून से। अब सिर्फ जिंदा है तो सच और झूठ इन झरनों में सड़े गले पत्तों की तरह बह गया।”
वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें।
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