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MP Promotion Policy Update
हाइलाइट्स
- हर विभाग में आरक्षित वर्ग के प्रतिनिधित्व का मांगा चार्ट
- कोर्ट ने कहा यह केवल आंकड़ों का संग्रह नहीं होना चाहिए
- सही नियम और वैज्ञानिक गणना पर आधारित मांगी रिपोर्ट
MP New Promotion Policy 2025 Update: मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर मंगलवार, 28 अक्टूबर को सुनवाई हुई। जिसमें प्रदेश सरकार की ओर से पेश वर्गवार प्रमोशन व आरक्षण की रिपोर्ट से कोर्ट संतुष्ट नहीं दिखी।
प्रदेश सरकार की ओर से प्रतिनिधियों ने वर्गवार कर्मचारियों के प्रमोशन और आरक्षण का जो क्वांटिफिएबल डेटा और सीलबंद लिफाफे में कोर्ट में पेश किया। हाईकोर्ट ने किसी एक विभाग के आंकड़े देखने के बाद आश्चर्य जताते हुए कहा कि इसमें तो सभी पद आरक्षित वर्ग से भरे हैं, ऐसे में समानता का क्या होगा ? कोर्ट ने टिप्पणी की कि कुछ विभागों में पहले से ही आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व अधिक है। कोर्ट ने पदोन्नति नीति (प्रमोशन पॉलिसी) और प्रस्तुत किए गए आंकड़ों पर सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 12 नवंबर को निर्धारित की है।
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दोनों पक्षों की मौजूदगी में ऑडिट रिपोर्ट पेश
मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने की। राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम तो महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने न्यायालय में मौजूद रहकर अपना पक्ष रखा। इस दौरान सरकार ने सीलबंद लिफाफे में विभागों की ऑडिट रिपोर्ट भी पेश की। याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता नरेश कौशिक ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा।
कोर्ट ने मांगा सभी विभागों का एकीकृत चार्ट
कोर्ट ने सरकार को पदोन्नति नीति और एडीकेसी वह रिप्रेसेंटेशन पर दाेबारा कार्य कर स्पष्ट जवाब पेश करने के निर्देश दिए। राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह सभी विभागों का एक एकीकृत चार्ट तैयार कर न्यायालय में पेश करें। इस चार्ट में यह दर्शाया जाना चाहिए कि प्रत्येक विभाग में आरक्षित वर्ग का वर्तमान प्रतिनिधित्व कितना है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कार्य केवल आंकड़ों का संग्रह नहीं होना चाहिए, बल्कि सही नियमों और वैज्ञानिक गणना पर आधारित एक सटीक प्रस्तुति होनी चाहिए।
जानें क्यों लगी थी प्रमोशन पर रोक ?
आरक्षण का प्रावधान: तत्कालीन राज्य सरकार ने साल 2002 में पदोन्नति के नियम बनाते हुए प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी।
परिणाम: इस प्रावधान के चलते आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को पदोन्नति मिलती रही, जबकि अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी पीछे छूट गए।
कोर्ट में चुनौती: जब इस असंतुलन और विवाद ने तूल पकड़ा, तो कर्मचारी अदालत पहुँचे और उन्होंने प्रमोशन में आरक्षण को समाप्त करने की मांग की।
कर्मचारियों का तर्क: कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि पदोन्नति का लाभ केवल एक ही बार दिया जाना चाहिए (न कि हर स्तर पर)।
हाईकोर्ट का निर्णय: इन तर्कों पर विचार करते हुए, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 को अमान्य (खारिज) कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट में अपील: राज्य सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
वर्तमान स्थिति: शीर्ष कोर्ट ने मामले में ‘यथास्थिति बनाए रखने’ का आदेश दिया, जिसके कारण तब से लेकर अब तक (2016 से) प्रदेश में पदोन्नति पर रोक लगी हुई है।
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ये है प्रमोशन की नई पॉलिसी
पदों का वर्गीकरण: उपलब्ध रिक्त पदों को अनुसूचित जाति (SC – 16%), अनुसूचित जनजाति (ST – 20%), और अनारक्षित वर्ग के हिस्सों में आनुपातिक रूप से विभाजित किया जाएगा।
भर्ती प्राथमिकता: पद भरने की प्रक्रिया में सबसे पहले SC और ST वर्ग के पद भरे जाएंगे।
शेष पदों के लिए: इन आरक्षित पदों को भरने के बाद, बचे हुए पदों के लिए सभी वर्गों के दावेदारों को मौका दिया जाएगा।
लिस्ट बनाने का आधार (श्रेणी 1): क्लास-1 स्तर के अधिकारियों (जैसे कि डिप्टी कलेक्टर) के लिए चयन सूची योग्यता (Merit) और वरिष्ठता (Seniority) दोनों के आधार पर तैयार की जाएगी।
लिस्ट बनाने का आधार (श्रेणी 2): क्लास-2 तथा उससे निचले स्तर के पदों के लिए वरिष्ठता (Seniority) को ही एकमात्र आधार बनाकर चयन सूची बनाई जाएगी।
अब तक लिए गए निर्णय और तर्क
- पिछला घटनाक्रम: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने वर्ष 2016 में राज्य सरकार की पिछली पदोन्नति नीति को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया था।
- सुप्रीम कोर्ट में चुनौती: इस निर्णय के विरोध में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, जिसने मामले में यथास्थिति (Status Quo) बनाए रखने का निर्देश दिया।
- नई नीति का आगमन: प्रदेश में नौ वर्षों से प्रमोशन में आरक्षण नहीं मिलने के कारण, राज्य सरकार इसी साल (2025 में) एक नई पदोन्नति नीति लेकर आई।
- नई नीति को चुनौती: सरकार की इस नई नीति को सपाक्स (SAPAKS) सहित कई याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
- याचिकाकर्ताओं का तर्क: याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलीलों में कहा कि पुरानी प्रमोशन पॉलिसी के अदालत में विचाराधीन रहने के दौरान नई पॉलिसी लाना सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करने जैसा है।
- सरकार का आश्वासन: इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार ने मौखिक रूप से यह आश्वासन (Oral Undertaking) दिया था कि वह नई पॉलिसी के तहत फिलहाल कोई प्रमोशन नहीं करेगी।
- वर्तमान स्थिति: सरकार के इस मौखिक आश्वासन के कारण ही नई प्रमोशन पॉलिसी को अभी तक लागू नहीं किया जा सका है।
- पिछली सप्ताह सुनवाई: सरकार ने कोर्ट में कहा था कि नई प्रमोशन पॉलिसी 2016 के बाद के प्रमोशन पर लागू होगी, जबकि 2016 से पहले के प्रमोशन में वर्ष 2002 के नियमों प्रभावी रहेंगे। इसके बाद के प्रमोशन में वर्ष 2025 के नियम प्रभावी होंगे।
- हाईकार्ट: ने राज्य सरकार को नए नियम के अनुसार क्वांटिफायबल डेटा एकत्र करते हुए सील बंद लिफाफे में पेश करने कहा था।
गोपनीय रिपोर्ट कितना जरूरी
गोपनीय रिपोर्ट की अनिवार्यता (ACR): वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) संतोषजनक होने पर ही कर्मचारी पदोन्नति पाने के हकदार होंगे।
पिछले दो वर्षों की रिपोर्ट में से कम से कम एक रिपोर्ट ‘उत्कृष्ट’ (Outstanding) श्रेणी की हो।
या पिछले सात सालों की रिपोर्ट्स में से कम से कम चार रिपोर्ट्स ‘ए+’ (A+) श्रेणी की हों।
ACR नहीं तो प्रमोशन पर रोक
यदि कर्मचारी की गोपनीय रिपोर्ट (ACR) किसी भी कारणवश (विशेषकर कर्मचारी की गलती से) तैयार नहीं हो पाई है, तो वह पदोन्नति के योग्य नहीं माना जाएगा।
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