/bansal-news/media/post_attachments/PRD_BansalNews/mp-name-shortform-PIL-dismissed-jabalpur-high-court-zvj.webp)
MP Name PIL Dismissed: जबलपुर हाई कोर्ट ने मध्यप्रदेश के नाम को मप्र या एमपी के रूप में लिखने और बोलने पर आपत्ति जताने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि संक्षिप्त नाम लिखने से न तो राज्य की पहचान बदलती है और न ही उसका अस्तित्व। दुनिया भर में यह एक सामान्य और व्यावहारिक तरीका है।
कोर्ट ने कहा- एमपी कहना गलत नहीं
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने अपने निर्णय में स्पष्ट कहा है कि 'मध्य प्रदेश' को 'मप्र' या 'एमपी' लिखने से राज्य का नाम नहीं बदलता, बल्कि इससे उसकी पहचान और भी आसान हो जाती है। अदालत ने कहा कि यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की स्वीकृत परंपरा है—जैसे यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका को 'यूएसए' और यूनाइटेड किंगडम को 'यूके' कहा जाता है। नाम और शब्दों के संक्षिप्त होने से स्पष्टता की सुविधा मिलती है।
'मप्र' या 'एमपी' कहने पर जताई आपत्ति
दरअसल, भोपाल निवासी वीके नस्वा द्वारा हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि मध्य प्रदेश का संवैधानिक नाम बदले बिना लोग उसे एमपी (MP) या मप्र के रूप में लिखते और बोलते हैं, जो गलत है। याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार को इस विषय में दिशा-निर्देश दिए जाएं।
उन्होंने संक्षिप्त नाम पर कानूनी रोक लगाने मांग उठाई थी। अब मामले में सुनवाई करते हुए अदालत ने राज्य के नाम को संक्षिप्त रूप में 'मप्र' या 'एमपी' कहने और लिखने पर आपत्ति जताने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया।
हाई कोर्ट ने याचिका की खारिज
हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संक्षिप्त नामों का उपयोग वैश्विक स्तर पर आम प्रचलन में है और इससे राज्य की पहचान को कोई नुकसान नहीं होता। इस आधार पर याचिका को जनहित से रहित मानते हुए निरस्त कर दिया गया।
जनहित नहीं समझा पाए याचिकाकर्ता
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि देशभर में वाहनों के रजिस्ट्रेशन नंबरों, कर संबंधी प्रक्रियाओं और सरकारी दस्तावेजों में राज्यों के संक्षिप्त नाम (कोड) आमतौर पर उपयोग किए जाते हैं। केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में इस प्रकार के बोलचाल से और पहचान दोनों आसान होती है, जबकि मूल नाम और संवैधानिक स्थिति जस की तस बनी रहती है।
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता यह स्पष्ट नहीं कर सके कि इस मामले में वास्तव में कौन-सा जनहित निहित है। ऐसे में न्यायालय ने इसे जनहित याचिका के योग्य नहीं मानते हुए खारिज कर दिया।
/bansal-news/media/agency_attachments/2025/10/15/2025-10-15t102639676z-logo-bansal-640x480-sunil-shukla-2025-10-15-15-56-39.png)
Follow Us
चैनल से जुड़ें