हाइलाइट्स
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एमपी के मेडिकल कॉलेज फर्जीवाड़े की खुल रही परतें
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फर्जी तरीके से तैयार की बायोमैट्रिक अटेंडेंस
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रावतपुरा सरकार और भदौरिया के गठजोड़ से चला खेला
MP Medical College Fraud: मध्यप्रदेश के मेडिकल कॉलेज फर्जीवाड़े में आए दिन नए खुलासे हो रहे हैं। सीबीआई जांच में सामने आया है कि मेडिकल कॉलेजों को मान्यता दिलाने और रिन्यू कराने में AI का मिसयूज किया गया। मामले में फर्जी तरीके से फैकल्टीज दर्शाई गई। इसमें मेडिकल कॉलेज में बायोमैट्रिक अटेंडेंस में फर्जी थम्ब इम्प्रेशन बनाए गए और फैकल्टीज को फुलफील किया गया।
एआई से फर्जी थंब इम्प्रेशन बनाए
रिश्वत लेकर मेडिकल कॉलेजों को मान्यता दिलाने के मामले में सीबीआई ने इंदौर के इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन सुरेश भदौरिया और यूजीसी के पूर्व चेयरमैन व देवी अहिल्या विवि के पूर्व कुलपति डीपी सिंह को आरोपी बनाया है। जांच में अब कई लगातार बड़ी गड़बड़ियां सामने आ रही हैं।
पता चला है कि फर्जी तरीके से कॉलेजों को मान्यता दिलाने और रिन्यू कराने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का मिसयूज किया गया है। बताया गया मान्यता के पैरामीटर्स पूरा करने के लिए फैकल्टीज की नियमित अटेंडेंस जरूरी है। ऐसे में इंस्पेक्शन के पहले फर्जी तरीके से फैकल्टीज दर्शाई गई।
इसके लिए बायोमेट्रिक अटेंडेंस लगाने के लिए एआई से फर्जी थंब इम्प्रेशन तैयार किए गए। इसके बाद फैकल्टीज की नियमित उपस्थिति दिखाई गई। सीबीआई की जांच में यह बिंदु प्रमुखता से बताए गए हैं। इसमें भदौरिया की लिप्तता के सूत्र मिले हैं।
उच्च अफसरों से मिलीभगत के सबूत मिले
जांच में यह सामने आया है कि सुरेश भदौरिया के भारत सरकार के एक उच्च अधिकारी से करीबी संबंध हैं। उनके माध्यम से उन्हें यह पता चल जाता था कि इंस्पेक्शन कब होने वाला है। ऐसे में फर्जीवाड़े की योजना पहले से ही बना ली जाती थी। कॉलेजों में फर्जी फैकल्टी और फर्जी मरीजों को रिकॉर्ड में दिखाने जैसी गड़बड़ियां भी हुई हैं।
डीपी सिंह के डायरेक्टर रहते UGC में भी हुआ भ्रष्टाचार
भदौरिया पर आरोप है कि वे कॉलेजों के चेयरमैन और डायरेक्टर से बड़ी रकम लेकर मान्यता दिलवाते थे। भले ही पैरामीटर्स पूरे न हों। इस मामले में देवी अहिल्या विवि के पूर्व कुलपति डीपी सिंह पर भी सीबीआई ने शिकंजा कसा है। डीपी सिंह सागर और बनारस यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रह चुके हैं। इसके अलावा, वे नेशनल असेसमेंट एंड एक्रिडेशन काउंसिल के डायरेक्टर भी रहे हैं।
डीपी सिंह 2018 से 2021 के बीच यूजीसी के चेयरमैन रहे। वे उप्र सरकार में एजुकेशन एडवाइजर भी रहे। सूत्रों के अनुसार, उनके डायरेक्टर रहते यूजीसी में भ्रष्टाचार हुआ, जिसका सीधा लाभ कॉलेजों को मिला।
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रावतपुरा सरकार और भदौरिया के गठजोड़ से होता था बड़ा लेन-देन
रावतपुरा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च के चेयरमैन और स्वयंभू संत रविशंकर महाराज, जिन्हें ‘रावतपुरा सरकार’ के नाम से जाना जाता है, को भी इंस्पेक्शन की तारीख और अधिकारियों की जानकारी अपने खास सोर्स से पहले ही मिल जाती थी। इससे फर्जीवाड़ा करना आसान हो गया। हालांकि, इंस्पेक्शन की तारीख के लिए बड़ी रकम का लेन-देन होता था।
यह लेन-देन अलग तरीके से किया जाता था। यानी किसी बड़े धार्मिक और सामाजिक काम के जरिए। हवाला की रकम भी जांच के दायरे में है। यह पता चला है कि रावतपुरा सरकार और भदौरिया के बीच एक मजबूत लिंक था।
इसमें मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI), राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के कुछ कथित लोग, कॉलेज और एजेंट शामिल होते थे। इंस्पेक्शन के दौरान प्रॉक्सी फैकल्टी और मरीजों की मौजूदगी दिखाई जाती थी।
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