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Maa Kavalka Devi Mandir Ratlam: यहां मदिरा के भोग से प्रसन्न होती हैं मां, प्रसाद में भी बांटी जाती है मदिरा

Maa Kavalka Devi Mandir Ratlam: यहां मदिरा के भोग से प्रसन्न होती हैं मां, प्रसाद में भी बटती है मदिरा

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Preeti Dwivedi
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रतलाम से दिलजीत सिंह मान की रिपोर्ट

Maa Kavalka Devi Mandir Ratlam: शारदीय नवरात्रि चल रहे हैं। एमपी में कई ऐसे देवी केअनोखे प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनके बारे में शायद आपने न सुना है। आज हम आपको देवी मां के ऐसे ही अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां माता को खीर पुड़ी नहीं बल्कि मदिरा का भोग लगाया जाता है। ये मंदिर है रतलाम का कंवलका मंदिर।

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रतलाम में कंवलका मंदिर कहां है

आपको बता दें ये मंदिर Mata Kalika Mandir Ratlam रतलाम जिला मुख्यालय से 32 किलोमीटर दूर स्थित है। जिसे ‘माता कंवलका’ मंदिर नाम से जाना जाता है। ये मंदिर देश-विदेशों में अपनी इस विशेषता के लिए जाना जाता है।

ग्राम सातरूंडा की ऊँची टेकरी पर है ‘माँ कंवलका’

‘माता कंवलका’ नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर रतलाम शहर से लगभग 32 किमी की दूरी पर ग्राम सातरूंडा की ऊँची टेकरी पर स्थित है। माँ की यह चमत्कारी मूर्ति ग्राम सातरूंडा की ऊँची टेकरी पर ‘माँ कवलका’ के रूप में विराजमान हैं। यह मंदिर सालों से भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ माँ के चमत्कारी रूप के दर्शन करने और अपनी मुरादें माँगने आते हैं। इस कंवलका मंदिर में माँ कवलका, माँ काली, काल भैरव और भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा विराजित हैं।

5 हजार साल पुराना मंदिर

मंदिर के पुजारी पंडित राजेशगिरी गोस्वामी के अनुसार ये देवी मंदिर 5000 वर्ष पुराने इस मंदिर पुराना है। यहाँ स्थित माता की मूर्ति बड़ी ही चमत्कारी है।

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पुजारी का दावा है, कि यह मूर्ति मदिरापान करती है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ माँ के चमत्कारी रूप के दर्शन करने और माँ से अपनी मुराद माँगने आते हैं। मंदिर के ऊँची टेकरी पर स्थित होने के कारण यहाँ तक पहुँचने के लिए भक्तों को पैदल ही चढ़ाई करनी पड़ती है। भक्तों की सुविधा के लिए हाल ही में मंदिर मार्ग पर पक्की सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। जिनके माध्यम से आसानी से चढ़ाई की जा सकती है।

मां के होठों से लगते ही मदिरा हो जाती है गायब

इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ स्थित माँ कवलका, माँ काली और काल भैरव की मूर्तियाँ मदिरापान करती हैं। भक्तजन माँ को प्रसन्न करने के लिए मदिरा का भोग लगाते हैं। इन मूर्तियों के होठों से मदिरा का प्याला लगते ही प्याले में से मदिरा गायब हो जाती है और यह सब कुछ भक्तों के सामने ही होता है।

प्रसाद में भी बटती है मदिरा

माता के प्रसाद के रूप में भक्तों को बोतल में शेष रह गई मदिरा दी जाती है। अपनी मनोवांछित मन्नत के पूरी होने पर कुछ भक्त माता की टेकरी पर नंगे पैर चढ़ाई करते हैं, तो कुछ पशुबलि देते हैं।

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भूत—प्रेत की बाधा होती है दूर

हरियाली अमावस्या और नवरात्रि में यहाँ भक्तों की अपार भीड़ माता के दर्शन के लिए जुट जाती है। कुछ लोग बाहरी हवा या भूत-प्रेत से छुटकारा पाने के लिए भी माता के दरबार पर अर्जी लगाते हैं।

मंदिर से जुड़ी हैं रोचक कहानियां

मन्दिर के साथ में कई पौराणिक और रोचक कहानियां भी हैं। कहते हैं इसे इसे पांडव कॉल में बनाया गया था। यह भी कहा जाता है कि भीम ने अपने हाथों से मिट्टी के चार डोंगे भर के रख दिए थे और उसके बाद में उस मिट्टी के टीले पर या मंदिर स्थापित किया गया।

कहा जाता है कि पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान इसी क्षेत्र में आकर रुके थे। वह भी गाय पशुओं को चराया करते थे। समय के साथ-साथ यहां पर परंपराएं भी बदलती जा रही हैं। जहां अब पशु बलि में कमी आई है। वहीं दूसरी हो देश ही नहीं विदेशों से भी सैलानी या दर्शन करने आते हैं।

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दिन के तीन रूप बदलती हैं मां

नवरात्रि के दिनों में 9 दिन ही माता के दर्शन हेतु भक्तों की भीड़ लगी रहती है। वहीं भक्तों का मानना यह भी है, कि माता दिन भर में तीन रूप में दर्शन देती है।

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