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हाइलाइट्स
- लाड़ली बहना योजना के नाम पर ठगी का मामला।
- नेम प्लेट लगाने के बहाने अवैध वसूली का आरोप।
- बेदुआ ग्राम पंचायत में कर्मचारियों पर लगे आरोप।
Ladli Behna Yojana Nameplate illegal Collection Fraud: मध्य प्रदेश में लाड़ली बहना योजना के नाम पर ठगी का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। आरोप है कि ‘लाड़ली बहना’ योजना के नाम पर ग्रामीणों से ‘स्वच्छ भारत-लाड़ली बहना’ नेम प्लेट लगाने के बहाने पैसे वसूले जा रहे हैं। बेदुआ ग्राम पंचायत में कर्मचारियों ने स्वच्छता-नेम प्लेट और बैज का दिखावा कर घर-घर पहुंचकर 50-50 रुपए की डिमांड की, आरोप है कि कर्मचारियों ने घर-घर यह कहकर पैसे लिए कि यह सरकार का आदेश है और अनिवार्य है। स्थानीय लोगों ने इसे अवैध वसूली करार दिया है। अब मामले में प्रशासन ने जांच शुरू कर दी है। वहीं मामले में कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर हमला बोला है।
योजना नाम पर अवैध वसूली का आरोप
पूरा मामला सीधी जिले की बेदुआ ग्राम पंचायत से सामने आया है। ग्रामीणों का आरोप है कि कर्मचारियों ने घर-घर जाकर प्रत्येक मकान पर ‘स्वच्छ भारत-लाड़ली बहना’ की नेम प्लेट लगाने का प्रस्ताव रखा। इस काम के बदले ग्रामीणों से 50-50 रुपए की वसूली की जा रही थी। ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें बताया गया कि यह सरकार का आदेश है और यह काम करना अनिवार्य है।
आदेश में क्या दिखाया था...
जब ग्रामीणों ने पूछताछ की, तो कर्मचारियों ने एक आदेश दिखाया जिसमें कथित तौर पर जिला पंचायत के सीईओ द्वारा हस्ताक्षरित था। उसमें कहा गया था कि स्वच्छता, पेड़ लगाओ, बेटी बचाओ-नशा छोड़ो जैसे उद्देश्य से स्वेच्छा से पैसे लिए जा सकते हैं। हालांकि, ग्रामीणों का दावा है कि यह ‘स्वेच्छा’ नहीं बल्कि वसूली थी, नेम प्लेट या बैज के नाम पर पैसे लिए जा रहे थे। इस आदेश में कलेक्टर कार्यालय, जिला पंचायत सीईओ कार्यालय, उपखण्ड अधिकारी कार्यालय समेत अन्य कार्यालयों के नाम दर्ज है।
कांग्रेस ने सरकार पर साधा निशाना
यह मामला चर्चा में आने के बाद सियासत तेज हो गई है। मामले को लेकर कांग्रेस ने सरकार पर तीखा हमला बोला है। सीनियर नेता और चुरहट से कांग्रेस विधायक अजय सिंह ने सोशल मीडिया पोस्ट कर इस वसूली को भ्रष्टाचार बताया है, और सरकार से जवाब मांगा है। मीडिया प्रभारी शिल्पी अग्रवाल ने वीडियो जारी कर इसे जनता के साथ ठगी करार दिया। इस मामले में कांग्रेस ने बीजेपी पर आरोप लगाए हैं।
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अनिवार्य नहीं था 50 रुपए देना
प्रारंभिक जांच में पता चला कि जनपद सीईओ का मूल आदेश स्वच्छता से संबंधित नेम प्लेटों के लिए था, जांच में यह बात सामने आई है कि कर्मचारियों ने सरकारी मुहर लगवाकर आदेश तैयार किया था जिसमें नेम प्लेट लगाने के लिए 50 रुपए अनिवार्य बताए गए थे। लेकिन मूल सरकारी आदेश में यह स्पष्ट था कि राशि सिर्फ स्वेच्छा आधारित है और अनिवार्य नहीं। फिलहाल, जिला प्रशासन ने मामले को संज्ञान में लेते हुए जांच शुरू कर दी है। जिला पंचायत सीईओ शैलेंद्र सिंह सोलंकी ने मामले में गहराई से जांच शुरू कर दी है। साथ ही संबंधित जनपद सीईओ से जवाब मांगा है।
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