Advertisment

MP Jahrila Moong:जहरीला हो रहा ‘मूंग’.. तेजी से पकाने के चक्कर में किसान कर रहे खतरनाक रसायन का प्रयोग, सेहत के लिए खतरा

MP Jahrila Moong Dal: मध्यप्रदेश में मूंग की फसल को जल्दी पकाने के लिए प्रतिबंधित पैराक्वाट रसायन का इस्तेमाल हो रहा है। इससे कैंसर, फेफड़े की बीमारी और पार्किंसन जैसे रोगों का खतरा बढ़ गया है। एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है।

author-image
Shashank Kumar
MP Jahrila Moong Dal

MP Jahrila Moong Dal

MP Jahrila Moong Dal: मध्यप्रदेश के खेतों से तैयार होकर मंडियों में पहुंच रही मूंग की फसल अब सेहत के लिए गंभीर खतरे का कारण बन सकती है। प्रदेश के कई जिलों में मूंग को तेजी से पकाने और फसल चक्र में तीसरी फसल लेने के लालच में किसान एक प्रतिबंधित और जहरीले रसायन पैराक्वाट डाइक्लोराइड का बड़े पैमाने पर छिड़काव कर रहे हैं। वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की चेतावनी के अनुसार यह रसायन कैंसर, पार्किंसन, लिवर व किडनी फेलियर, श्वसन और तंत्रिका तंत्र संबंधी बीमारियों का प्रमुख कारण बन सकता है।

Advertisment

तीन फसल लेने की होड़ में जहरीली हो रही जमीन और फसलें

प्रदेश के 36 जिलों में करीब 14.35 लाख हेक्टेयर में मूंग की खेती होती है, जिससे करीब 20.23 लाख टन उत्पादन होता है। रबी और खरीफ फसल के बीच मूंग को तैयार करने के लिए किसान तीन महीने में कटाई चाहते हैं, जिसके लिए वे पैराक्वाट डाइक्लोराइड (Paraquat Dichloride) का उपयोग कर फसल को कृत्रिम रूप से सुखा रहे हैं। यह रसायन केवल खरपतवार नाशक के रूप में अधिकृत है, लेकिन अब इसे स्टैंडिंग क्रॉप यानी खड़ी फसल पर छिड़का जा रहा है, जो न केवल स्वास्थ्य बल्कि जमीन की उर्वरता को भी जहरीला बना रहा है।

[caption id="attachment_839514" align="alignnone" width="1079"]MP Jahrila Moong Dal MP Jahrila Moong Dal[/caption]

मूंग में रह जाते हैं कीटनाशकों के अंश

बता दें, मूंग की पैदावार से प्रदेश में किसानों की आय में वृद्धि हुई है। किसान इसे जल्दी पकाने के लिए कई बार खरपतवार नाशक दवा (पेराक्वाट डायक्लोराइड) का छिड़काव करते हैं। इस दवा के अंश मूंग फसल में कई दिनों तक विद्यमान रहते हैं, जो मानव स्वास्थ्य एवं पशु-पक्षियों के लिए अत्यंत हानिकारक हैं।

Advertisment

कृषि एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञों, पर्यावरणविद् और कृषि सुधार के क्षेत्र में कार्य कर रहे संगठनों ने अनुसंधान रिपोर्ट के आधार पर मूंग फसल में आवश्यकतानुसार ही कीटनाशकों के उपयोग का सुझाव दिया है। राज्य सरकार जैविक खेती को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रोत्साहित कर रही है एवं किसानों को जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।

जहरीले मूंग खाने से हो सकते हैं घातक रोग

डॉक्टरों का कहना है कि इस जहरीले रसायन के अवशेष मूंग की फसल में रह जाते हैं और खाने के बाद ये रसायन शरीर में पहुंचकर लिवर, किडनी, आंखों, और फेफड़ों पर घातक असर डालते हैं। भोपाल के एक गैस्ट्रोलॉजिस्ट के अनुसार, यह केमिकल ऑर्गेनो फॉस्फेट फेमिली का हिस्सा है और कैंसर तक का कारण बन सकता है। वहीं, खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर के प्रधान वैज्ञानिक के मुताबिक, इसका एंटीडोज अब तक नहीं बन पाया है, यानी जहर का कोई तोड़ नहीं है।

[caption id="attachment_839516" align="alignnone" width="1090"]moong moong[/caption]

Advertisment

देश में प्रतिबंधित फिर भी धड़ल्ले से बिक रहा है यह रसायन

भारत में पैराक्वाट डाइक्लोराइड का उपयोग प्रतिबंधित है, लेकिन यह अलग-अलग नामों से बाजार में उपलब्ध है और किसान इसे आसानी से खरीद रहे हैं। इसकी संरचना में कई घातक तत्व हैं जैसे कोकोमाइन इथोक्सिलेट, डाई एसिड ब्ल्यू और सिलिकॉन डिफॉमर जो जमीन को भी विषाक्त बना रहे हैं। नर्मदापुरम, रायसेन, हरदा और नरसिंहपुर जैसे जिलों में मूंग की फसल को जल्दी सुखाने के लिए इसका बेतहाशा उपयोग हो रहा है।

पार्किंसन के लिए भी जिम्मेदार

पैराक्वाट डाइक्लोराइड बहुत ही टॉक्सिक हर्बीसाइड है। इसकी थोड़ी मात्रा ही जानलेवा हो सकती है। श्वास के जरिए विषाक्तता शरीर में जाने से फेफड़े में फाइब्रोसिस हो सकता है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एपिडेमियोलॉजी 2024 के शोध के अनुसार पार्किसंस की बढ़ती समस्या के लिए यह रसायन भी जिम्मेदार है।

इन टॉक्सिक केमिकल्स के चलते खतरनाक है ये रसायन 

क्रमांकरसायन का नामप्रतिशत (%)
1नोनील फिनोल एथिलीन ऑक्साइड कॉनडेंसेट1.0%
2पैराक्वाट डाइक्लोराइड टेक24.0%
3कोकोमाइन इथोक्सिलेट4.0%
4सिलिकॉन डिफॉमर0.10%
5डाई एसिड ब्ल्यू0.05%
6एमेटिक डाई0.05%
Advertisment

14.35 लाख हेक्टेयर में होती है मूंग की खेती

मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम, हरदा, सीहोर, नरसिंहपुर, बैतूल, जबलपुर, विदिशा, देवास और रायसेन सहित कई जिलों में ग्रीष्मकालीन मूंग किसानों के लिए तीसरी फसल का अच्छा विकल्प बन चुकी है। वर्तमान में मूंग की फसल 14.35 लाख हेक्टेयर रकबे में लगाई जा रही है और इसका उत्पादन 20.29 लाख मीट्रिक टन है। प्रदेश में ग्रीष्मकालीन मूंग का औसत उत्पादन 1410 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।

ये भी पढ़ें:  रायपुर ADEO परीक्षा में अव्यवस्था: गलत लोकेशन और लापरवाही ने छीना अभ्यर्थियों का मौका, परीक्षा से वंचित हुए दर्जनों युवा

सरकार और प्रशासन को चेतने की जरूरत

अब वक्त है कि कृषि विभाग और प्रशासन इस ओर गंभीरता से ध्यान दें। किसानों को उचित मार्गदर्शन के साथ जैविक विकल्प सुझाने होंगे ताकि उपभोक्ताओं की सेहत के साथ खिलवाड़ न हो और किसान भी फसल की गुणवत्ता को बरकरार रख सकें। साथ ही मंडियों में बिकने वाली दालों की गुणवत्ता की जांच सुनिश्चित की जाए ताकि जहरीली मूंग बाजार से हटाई जा सके।

ये भी पढ़ें:  CGPSC Mains Exam 2024: 26 जून से छत्तीसगढ़ PSC मेंस परीक्षा, इसी हफ्ते जारी हो सकता है एडमिट कार्ड, देखें पूरा शेड्यूल

ऐसी ही ताजा खबरों के लिए बंसल न्यूज से जुड़े रहें और हमें XFacebookWhatsAppInstagram पर फॉलो करें। हमारे यू-ट्यूब चैनल Bansal News MPCG को सब्सक्राइब करें।
MP news Madhya Pradesh Farmers Toxic Moong Paraquat Dichloride Health Risk Pulses Agriculture Chemical Ban Parkison Risk Chemical मूंग जहरीली फसल पैराक्वाट का खतरा खेती में ज़हर स्वास्थ्य चेतावनी Moong poisonous crop Paraquat danger Poison in farming Health warning MP Jahrila Moong Dal MP Zahreela Moong Dal
Advertisment
WhatsApp Icon चैनल से जुड़ें