हाइलाइट्स
- 11 साल के छात्र आरव सिंह के मामले में हाई कोर्ट का फैसला।
- हाई कोर्ट ने कहा- उम्र नहीं, प्रतिभा शिक्षा का सही मापदंड।
- आरव सिंह को 9वीं में प्रोविजनल एडमिशन के निर्देश।
Arav Singh Patel CBSE Admission MP High Court Verdict: क्या उम्र किसी की प्रतिभा पर रोक लगा सकती है? मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस सवाल का जवाब एक ऐतिहासिक फैसले में दिया। जबलपुर के 11 साल के ब्रिलियंट छात्र आरव सिंह पटेल को स्कूल ने सिर्फ उम्र कम होने की वजह से 9वीं कक्षा में एडमिशन देने से मना कर दिया, तब कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए न सिर्फ उसे प्रोविजनल एडमिशन के निर्देश दिए, बल्कि शिक्षा के अधिकार को सर्वोच्च बताया।
उम्र नहीं, प्रतिभा होनी चाहिए शिक्षा का आधार
जबलपुर हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि उम्र किसी की प्रतिभा को रोकने या उसकी प्रगति का मापदंड नहीं हो सकती। कोर्ट ने कहा कि कम उम्र होने के आधार पर प्रतिभा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोई भी यह तय नहीं कर सकता कि कोई छात्र केवल उम्र के आधार पर पढ़ाई कर सकता है या नहीं। कोर्ट ने यह भी माना कि आयु सीमा निर्धारित करके किसी के शिक्षा के अधिकार को बाधित करना अधिकारों के विरुद्ध है।”
जानें क्या है आरव सिंह का मामला
दरअसल, मामला जबलपुर के रहने वाले 11 साल के विलक्षण छात्र आरव सिंह पटेल का है। जबलपुर के सेंट कॉन्वेंट स्कूल, रांझी में पढ़ने वाले आरव सिंह ने 8वीं कक्षा पूरी कर ली है। जन्म 19 मार्च 2014 को हुआ और पढ़ाई में असाधारण प्रदर्शन के बावजूद सीबीएसई की उम्र सीमा नीति के चलते 9वीं में एडमिशन रोक दिया गया। टैलेंटेड होने के बावजूद आरव एडमिशन के लिए जगह भटक रहा है।
कोर्ट में पहुंचा छात्र की उम्र का मामला
सीबीएसई बोर्ड में नौवीं क्लास में एडमिशन नहीं मिलने पर थक हारकर आरव के माता-पिता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिका में कहा गया कि बेटा पढ़ाई में काफी आगे है और सिर्फ उम्र की वजह से उसे आगे बढ़ने से रोका जा रहा है। यह संविधान के तहत मिले शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है।
उम्र नहीं रोक सकती प्रतिभा को
मामले में जस्टिस विशाल मिश्रा की कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि “उम्र किसी की प्रतिभा का मापदंड नहीं हो सकती।” अदालत ने माना कि केवल आयु सीमा लगाकर शिक्षा के अधिकार को बाधित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने सीबीएसई चेयरमैन और स्कूल प्रिंसिपल को आदेश दिया कि आरव को 9वीं कक्षा में प्रोविजनल प्रवेश दिया जाए और उसकी प्रतिभा का मूल्यांकन तीन विशेषज्ञ डॉक्टरों के मेडिकल बोर्ड से कराया जाए।
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आईक्यू टेस्ट और विशेष मूल्यांकन का आदेश
मामले में अदालत ने स्कूल के प्रिंसिपल, सीबीएसई बोर्ड के डायरेक्टर को दिए हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया कि आरव का इंटरव्यू लिया जाए और विशेषज्ञों द्वारा उसका मानसिक, शैक्षणिक और बौद्धिक मूल्यांकन किया जाए। इसके आधार पर ही उसका स्थायी प्रवेश तय होगा।
हर प्रतिभावान छात्र के लिए मिसाल
यह फैसला सिर्फ आरव की जीत नहीं है, बल्कि उन हजारों बच्चों के लिए मिसाल है जो उम्र से पहले ही शिक्षा में आगे बढ़ने की क्षमता रखते हैं।