हाइलाइट्स
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गोविंदपुरा तहसीलदार की माफी खारिज
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8 महीने में नहीं की सरफेसी एक्ट में कार्रवाई
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अब तहसीलदार की संपत्ति की होगी जांच
MP Tehsildar News: भोपाल के गोविंदपुरा तहसीलदार दिलीप चौरसिया ने कलेक्टर के सरफेसी एक्ट में कार्रवाई के आदेश का 8 महीने में पालन नहीं किया, बल्कि हाईकोर्ट से आदेश में माफी आवेदन की अपील कर दी। अब हाईकोर्ट ने अपील खारिज करते हुए तहसीलदार की आय से अधिक संपत्ति की जांच के निर्देश दिए हैं।
हाईकोर्ट ने यह भी आदेश दिया
हाईकोर्ट ने आठ महीने बाद भी सरफेसी एक्ट पर आदेश के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं करने पर साफ कहा कि उन (गोविंदपुरा तहसीलदार दिलीप चौरसिया) पर की गई कार्रवाई और आदेशों का पालन करने में देरी करने वाले ऐसे सभी तहसीलदारों के लिए यह आदेश एक आदर्श स्थापित करेगा।
हाईकोर्ट जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल की बेंच ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि दया का समय बहुत पहले बीत चुका है। अब इसी तरह बदलाव शुरू होगा।
तहसीलदार ने हाईकोर्ट से की थी यह अपील
जानकारी के मुताबिक, तहसीलदार पर आरोप है कि भोपाल कलेक्टर के आदेश के बाद भी आठ महीने तक विभागीय प्रक्रिया को अंजाम नहीं दिया गया। जिसके बाद उन पर लापरवाही के आरोप लगाए गए। उन्होंने कोर्ट से जारी 26 जून 2025 के आदेश में संशोधन की अपील की थी। इस आदेश में हाईकोर्ट ने कलेक्टर भोपाल को तहसीलदार द्वारा कर्तव्य की उपेक्षा की जांच 3 माह में पूरी करने और लोकायुक्त को उनके आय से अधिक संपत्ति की जांच करने के निर्देश दिए थे।
साथ ही हाईकोर्ट ने कहा, तहसीलदार की संपत्ति की जांच की जाए। यदि इसमें अंतर पाया गया तो केस दर्ज किया जाए।
क्या था पूरा मामला ?
मामला भोपाल के इक्विटॉस स्मॉल फाइनेंस बैंक का है। बैंक के वकील रवींद्र नाथ चतुर्वेदी ने बताया कि कुछ लोगों ने बैंक से लोन लिया था। लोन नहीं चुकाने पर उनकी संपत्ति जब्त करने बैंक ने एडीएम को आवेदन दिया था। इसके बाद एडिशनल कलेक्टर ने 23 जुलाई 2024 को सरफेसी एक्ट के तहत ऋणधारकों की संपत्ति जब्त कर बैंक को सौंपने के निर्देश दिए थे। पर तहसीलदार दिलीप चौरसिया ने इसका पालन नहीं किया।
इसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा। जस्टिस अतुल श्रीधरन व जस्टिस डीके पालीवाल की खंडपीठ ने कहा कि प्रथमदृष्टया यह भ्रष्टाचार का मामला है। ऐसा प्रतीत होता है कि तहसीलदार उन ऋणधारकों से मिले गए हैं। जिनकी संपत्ति जब्त कर याचिकाकर्ता बैंक को सौंपने के ऑर्डर हुए थे।
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तहसीलदार ने सरफेसी एक्ट में नहीं की कार्रवाई
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि तहसीलदार ने सरफेसी अधिनियम की धारा 14 के तहत 23 जुलाई 2024 को जारी आदेश का पालन 8 महीने तक नहीं किया। कोर्ट ने यह माना कि अधिकारी ने जानबूझकर भ्रष्टाचार में लिप्त होकर अपने सरकारी कार्यों में लापरवाही की है।
इसके बाद कोर्ट ने दया की मांग वाले आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जब एक लोक सेवक ने सोच-समझकर और भ्रष्ट कारणों से काम में लापरवाही की है, तो उसे जवाबदेह ठहराना ही न्याय है।
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