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ग्वालियर की इस यूनिवर्सिटी पर HC सख्त: रिटायर्ड कर्मचारी को 50 हजार देने और पेंशन प्रक्रिया शुरू करने का आदेश

MP High Court: हाई कोर्ट ने राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय पर 50 हजार जुर्माना लगाया और रिटायर्ड कर्मचारी को 15 दिन में पेंशन देने का आदेश दिया।

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Wasif Khan
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हाइलाइट्स

  • हाई कोर्ट ने विश्वविद्यालय पर 50 हजार जुर्माना

  • रिटायर्ड कर्मचारी को 15 दिन में मिलेगी पेंशन

  • कोर्ट ने कहा- विश्वविद्यालय का रवैया मनमाना

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MP High Court: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने ग्वालियर स्थित राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय (Rajmata Vijayaraje Scindia Krishi Vishwavidyalaya) के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने विश्वविद्यालय प्रशासन को आदेश दिया है कि वह अपने रिटायर्ड कर्मचारी को 15 दिन के भीतर 50 हजार रुपए की राशि अदा करे और उसकी पेंशन प्रक्रिया तत्काल शुरू करे।

कोर्ट ने विश्वविद्यालय के रवैये को मनमाना और अनुचित करार देते हुए स्पष्ट किया कि किसी सरकारी वित्त पोषित संस्था को अपने ही कर्मचारी के साथ इस तरह का व्यवहार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

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[caption id="attachment_915580" align="alignnone" width="1318"]publive-image MP High Court के आदेश की कॉपी।[/caption]

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हाई कोर्ट ने लगाया 50 हजार का जुर्माना

जस्टिस विवेक जैन की एकलपीठ ने यह आदेश तब दिया जब याचिकाकर्ता डॉ. एसबीएस भदौरिया ने विश्वविद्यालय के खिलाफ याचिका दाखिल की। याचिकाकर्ता ने बताया कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने न केवल उन्हें अपना कर्मचारी मानने से इंकार किया बल्कि पेंशन देने से भी मना कर दिया। इससे भी आगे बढ़कर, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा जारी आदेश को भी विश्वविद्यालय ने नजरअंदाज कर दिया। कोर्ट ने इसे गंभीर लापरवाही मानते हुए 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया और निर्देश दिया कि राशि 15 दिनों के भीतर भुगतान की जाए। साथ ही विश्वविद्यालय को पेंशन लाभ जारी करने का आदेश भी दिया गया।

[caption id="" align="alignnone" width="1092"]publive-image राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय।[/caption]

1988 में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में हुई नियुक्ति

मामले की जड़ राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित तीन कृषि विश्वविद्यालयों के बीच के प्रशासनिक विवाद से जुड़ी है। डॉ. भदौरिया ने अपनी याचिका में बताया कि उन्होंने 1988 में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (JNKVV) में नियुक्ति पाई थी। साल 2009 में मध्य प्रदेश सरकार ने दो नए विश्वविद्यालयों राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय (RVSKVV) और नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना की। इससे पहले तक राज्य के सभी कृषि और पशु चिकित्सा महाविद्यालय जेएनकेवीवी के अधीन थे। 2009 में इन संस्थानों का विभाजन कर दिया गया और नए विश्वविद्यालय अस्तित्व में आए।

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भदौरिया की सेवा RVSKVV को सौंपी गई थी

याचिकाकर्ता की सेवाएं साल 2010 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय को सौंप दी गई थीं। इसके बाद 2012 में विश्वविद्यालय ने उन्हें मध्य प्रदेश राज्य पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम में प्रतिनियुक्ति पर भेजने की अनुमति दी। जब वे रिटायर हुए, तब पेंशन प्रक्रिया शुरू करने की जगह विश्वविद्यालय ने यह कहकर इनकार कर दिया कि वे उसके कर्मचारी नहीं हैं। इस पर डॉ. भदौरिया ने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को अभ्यावेदन प्रस्तुत किया।

[caption id="" align="alignnone" width="3840"]publive-image राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय।[/caption]

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प्रमुख सचिव के आदेश को भी नहीं माना विश्वविद्यालय ने

प्रमुख सचिव ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि डॉ. भदौरिया को पेंशन लाभ दिया जाए। लेकिन विश्वविद्यालय ने इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया। विश्वविद्यालय का तर्क था कि राज्य सरकार का आदेश उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है क्योंकि वह मध्य प्रदेश विधानमंडल द्वारा बनाए गए अधिनियम के तहत एक स्वायत्त संस्था है। विश्वविद्यालय ने इसे सरकार के हस्तक्षेप के रूप में देखा और आदेश को अमान्य घोषित कर दिया।

हाई कोर्ट ने मनमाने रवैये की निंदा की

हाई कोर्ट ने इस रवैये को पूरी तरह अनुचित बताया। जस्टिस विवेक जैन ने अपने आदेश में कहा कि सरकारी निकायों के बीच विवाद अदालत में तभी आना चाहिए जब समाधान सरकारी स्तर पर संभव न हो। विश्वविद्यालय का अस्तित्व राज्य सरकार पर निर्भर है, इसलिए उसका यह कहना कि राज्य सरकार का आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर है, अस्वीकार्य है। कोर्ट ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय ने जानबूझकर सरकारी निर्देशों को अनदेखा किया और एक रिटायर्ड कर्मचारी को पेंशन जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित किया।

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