Advertisment

MP: HC के डर से कई बार इंसाफ नहीं कर पाते DJ, बर्खास्त जज के सामाजिक अपमान के लिए बकाया वेतन, 5 लाख मुआवजा के निर्देश

MP High Court Fear On District Courts: भोपाल के पूर्व एससी-एसटी कोर्ट जज जगत मोहन चतुर्वेदी ने दायर किया था। चतुर्वेदी को एक आरोपी को अग्रिम जमानत देने के बाद बर्खास्त कर दिया गया था।

author-image
anjali pandey
MP: HC के डर से कई बार इंसाफ नहीं कर पाते DJ, बर्खास्त जज के सामाजिक अपमान के लिए बकाया वेतन, 5 लाख मुआवजा के निर्देश

MP High Court Fear On District Courts: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने न्यायिक व्यवस्था में व्याप्त असमानता और हीनता के भाव को लेकर तीखी टिप्पणी की है। जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल की बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट और जिला न्यायपालिका के बीच संबंध सामंती व्यवस्था जैसे हैं, जहां हाईकोर्ट खुद को सवर्ण और जिला अदालतों को शूद्र समझता है।

Advertisment

यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आई, जिसे भोपाल के पूर्व एससी-एसटी कोर्ट जज जगत मोहन चतुर्वेदी ने दायर किया था। चतुर्वेदी को एक आरोपी को अग्रिम जमानत देने के बाद बर्खास्त कर दिया गया था।

रीढ़विहीन स्तनधारी जैसे मिलते हैं जिला जज

बेंच ने अपनी टिप्पणी में कहा जब जिला कोर्ट के जज हाईकोर्ट के जजों से मिलते हैं, तो उनकी देहभाषा ऐसी होती है जैसे कोई रीढ़विहीन स्तनधारी गिड़गिड़ा रहा हो। रेलवे स्टेशन पर स्वागत करना और जलपान करवाना अब सामान्य बात बन गई है। रजिस्ट्री में प्रतिनियुक्त जिला जजों को सम्मान से बैठने तक को नहीं कहा जाता।

ये भी पढ़ें : Today Latest: दिल्ली में कांग्रेस का OBC लीडरशिप महासम्मेलन, मणिपुर में 6 महीने के लिए बढ़ा राष्ट्रपति शासन

Advertisment

डर और हीनता की मानसिकता

कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट और जिला न्यायपालिका के बीच संबंध सम्मान पर नहीं हैं, बल्कि डर और हीनता पर आधारित हैं। यही वजह है कि कई बार न्यायिक फैसले प्रभावित होते हैं। सक्षम मामलों में जमानत नहीं दी जाती, सबूतों के अभाव में भी दोष सिद्ध कर दिया जाता है सिर्फ इसलिए कि आदेश ‘गलत’ न मान लिया जाए।

डर के साये में न्याय नहीं, सिर्फ दिखावा होता है

हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य की न्यायिक व्यवस्था की असली स्थिति जिला अदालतों की स्वतंत्रता से समझी जा सकती है, केवल हाईकोर्ट की कार्यप्रणाली से नहीं। लेकिन जब हाईकोर्ट बार-बार छोटी बातों पर कठोर रुख अपनाता है, तो जिला जज डर और असुरक्षा के चलते न्याय नहीं कर पाते बल्कि केवल उसका दिखावा करते हैं।

कोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता जज को अलग सोचने और स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने के कारण दंडित किया गया। कोर्ट ने आदेश दिया कि सेवा समाप्ति की तिथि से सेवानिवृत्ति तक का बकाया वेतन 7% ब्याज सहित दिया जाए। पेंशन और अन्य सेवा लाभ बहाल किए जाएं। मानसिक उत्पीड़न और सामाजिक अपमान के लिए ₹5 लाख का मुआवजा भी दिया जाए। यह फैसला सिर्फ एक व्यक्ति के न्याय की बात नहीं करता, बल्कि न्यायपालिका के भीतर मौजूद डर, दबाव और असमानता की गूंज को उजागर करता है।

Advertisment

ये भी पढ़ें : MP Rajnitik Niyukti 2025: निगम, मंडल और बोर्ड के खाली पदों जल्द होगी राजनीतिक नियुक्तियां, सूची तैयार

madhya pradesh High Court MP High Court judicial discrimination district court vs high court caste mindset in judiciary Jagat Mohan Chaturvedi case court hierarchy India court comment on judges judicial independence service benefit order compensation for judge
Advertisment
WhatsApp Icon चैनल से जुड़ें