हाइलाइट्स
- मध्य प्रदेश में परिसीमन आयोग बनाने की सिफारिश।
- राज्य निर्वाचन आयोग ने सरकार को भेजा प्रस्ताव।
- परिसीमन और आरक्षण पर आयोग लेगा फैसला।
Madhya Pradesh (MP) State Delimitation Commission Update: मध्यप्रदेश में 2027 में होने वाले नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों की तैयारियों के तहत एक बड़ा प्रशासनिक सुधार प्रस्तावित किया गया है। राज्य निर्वाचन आयोग (MP Election Commission) ने सरकार से “राज्य परिसीमन आयोग” (State Delimitation Commission) के गठन की सिफारिश की है। अगर यह सिफारिश मंजूर होती है, तो नगरीय निकायों और पंचायतों में वार्डों का निर्धारण और पदों का आरक्षण अब एक स्वतंत्र आयोग के जरिए किया जाएगा।
क्या बदलेगा इस आयोग के बनने से?
अब तक यह काम नगरीय प्रशासन विभाग और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग करते हैं। लेकिन आयोग बनने के बाद नगर निगम के मेयर, नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष, सरपंच-पंच, जनपद व जिला पंचायत अध्यक्ष के आरक्षण और वार्ड परिसीमन की पूरी प्रक्रिया एक ही संस्था के हाथ में होगी, जिससे फैसलों में पारदर्शिता आएगी।
निर्वाचन आयोग ने सरकार को भेजा ड्राफ्ट
राज्य निर्वाचन आयोग ने इस बारे में विस्तृत ड्राफ्ट तैयार कर राज्य सरकार को सौंप दिया है। इसमें वही अधिकार प्रस्तावित किए गए हैं, जो केंद्र के परिसीमन आयोग को मिलते हैं। सबसे खास बात ये है कि आयोग द्वारा किए गए परिसीमन और आरक्षण के फैसलों को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी, जिससे राजनीतिक विवादों और कानूनी उलझनों से बचा जा सकेगा।
आयोग का कार्यक्षेत्र क्या होगा?
ड्राफ्ट में स्पष्ट किया गया है कि राज्य परिसीमन आयोग को तीन प्रमुख अधिकार मिलेंगे:
- पुनर्गठन (Restructuring) – वार्डों और निकायों की सीमाएं फिर से तय करना।
- परिसीमन (Delimitation) – जनसंख्या के आधार पर वार्डों की नए सिरे से सीमा निर्धारण।
- परिमार्जन (Modification) – जरूरत पड़ने पर मौजूदा सीमाओं में बदलाव करना।
प्रमुख कारण जिनसे चुनाव प्रक्रिया में आई देरी
- 1. परिसीमन और ओबीसी आरक्षण पर विवाद: 2019 में प्रस्तावित निकाय चुनाव परिसीमन और ओबीसी आरक्षण को लेकर राजनीतिक खींचतान और कोर्ट केस के चलते 2022 में हुए। कांग्रेस सरकार द्वारा कलेक्टरों से करवाए गए परिसीमन पर बीजेपी ने आपत्ति जताई और मामला कोर्ट में चला गया। बाद में ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के कारण चुनावों में और देरी हुई। तत्कालीन शिवराज सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसके बाद मध्य प्रदेश में 50% ओबीसी आरक्षण के साथ नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव कराए गए।
- 2. कोलार को नगर निगम में शामिल करने पर विरोध: साल 2014 में कोलार नगर पालिका को नगर निगम में शामिल करने के फैसले पर कोर्ट में आपत्ति दर्ज हुई। बाद में 2019 में कांग्रेस सरकार ने इसे फिर नगरपालिका बनाने का प्रस्ताव रखा, जिस पर राजनीतिक बहस छिड़ गई। इससे चुनाव प्रक्रिया फिर से टल गई।
जानिए कैसा होगा राज्य परिसीमन आयोग का ढांचा?
- 1. केंद्रीय आयोग जैसी शक्तियां और जिम्मेदारी: प्रस्तावित ड्राफ्ट के अनुसार, मध्यप्रदेश राज्य परिसीमन आयोग को वैसी ही शक्तियां मिलेंगी जैसी केंद्र सरकार के परिसीमन आयोग को प्राप्त होती हैं। जैसे केंद्रीय आयोग लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का सीमांकन करता है, वैसे ही यह आयोग नगरीय निकायों और पंचायतों के वार्डों की सीमाएं तय करेगा। साथ ही महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष, पंचायत पदाधिकारियों और वार्डों के आरक्षण की जिम्मेदारी भी इसी आयोग की होगी।
- 2. अध्यक्ष और सदस्यों की संरचना: ड्राफ्ट के अनुसार, आयोग का अध्यक्ष किसी मुख्य सचिव रैंक के सेवानिवृत्त अधिकारी को बनाया जाएगा। इसके अलावा सचिव स्तर के तीन सेवानिवृत्त अधिकारी सदस्य होंगे। नगरीय विकास और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव भी आयोग में शामिल रहेंगे। आयोग का कार्यकाल 5 वर्षों का होगा, और इसकी सेवा शर्तें राज्य निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष के समान होंगी।
- 3. आयोग के निर्णयों पर नहीं होगी कोर्ट में चुनौती: ड्राफ्ट में यह स्पष्ट प्रावधान है कि परिसीमन और आरक्षण से जुड़े आयोग के किसी भी निर्णय को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी। ठीक वैसे ही जैसे केंद्रीय परिसीमन आयोग के निर्णय को भी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती।
परिसीमन आयोग के कौन-कौन से प्रमुख अधिकार?
- निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा निर्धारण का अधिकार: आयोग पंचायतों और नगर पालिकाओं के अंतर्गत आने वाले निर्वाचन क्षेत्रों (वार्डों) की सीमाएं तय करेगा।
- जनसंख्या के समान वितरण को सुनिश्चित करना: आयोग का उद्देश्य यह रहेगा कि प्रत्येक वार्ड में लगभग समान संख्या में मतदाता हों, जिससे चुनावी प्रतिनिधित्व संतुलित हो।
- जनता की आपत्तियों व सुझावों पर विचार: आयोग लोगों से प्राप्त आपत्तियों और सुझावों को सुनेगा, संबंधित दस्तावेजों की जांच करेगा और आवश्यक सुनवाई भी आयोजित करेगा।
- आपत्तियों का समाधान और अंतिम आदेश जारी करना: सभी आपत्तियों के निपटारे के बाद आयोग अंतिम परिसीमन आदेश जारी करेगा, जो आगे लागू किया जाएगा।
मध्य प्रदेश परिसीमन आयोग से जुड़े 5 महत्वपूर्ण FAQ
1. राज्य परिसीमन आयोग क्या है और इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
उत्तर: राज्य परिसीमन आयोग एक स्वतंत्र निकाय होगा जो नगर निगम, नगर पालिका, पंचायतों आदि के वार्डों की सीमाएं तय करेगा और पदों का आरक्षण सुनिश्चित करेगा। इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि अभी तक यह कार्य नगरीय प्रशासन विभाग और पंचायत विभाग करते हैं, जिस पर पक्षपात और कोर्ट केस के आरोप लगते रहे हैं। आयोग बनने से पारदर्शिता और निष्पक्षता बढ़ेगी।
2. इस आयोग को क्या-क्या अधिकार मिलेंगे?
उत्तर: वार्डों की सीमा निर्धारण, जनसंख्या के आधार पर संतुलित निर्वाचन क्षेत्र बनाना, जनता से आपत्तियां और सुझाव लेकर सुनवाई करना, अंतिम परिसीमन आदेश जारी करना, आयोग के फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
3. आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति कैसे होगी?
उत्तर: आयोग का अध्यक्ष मुख्य सचिव रैंक के सेवानिवृत्त अधिकारी को बनाया जाएगा। इसके अलावा सचिव स्तर के तीन सेवानिवृत्त अधिकारी और नगरीय विकास व पंचायत विभाग के अपर मुख्य सचिव सदस्य होंगे। आयोग का कार्यकाल 5 वर्षों का होगा।
4. आयोग बनने से चुनाव प्रक्रिया में क्या बदलाव आएंगे?
उत्तर: वार्डों और आरक्षण प्रक्रिया में एकरूपता आएगी, राजनीतिक हस्तक्षेप और विवाद की संभावनाएं घटेंगी, चुनाव समय पर कराने में आसानी होगी, कोर्ट केस और कानूनी देरी से बचा जा सकेगा।
5. क्या आयोग के फैसलों को चुनौती दी जा सकती है?
उत्तर: नहीं। प्रस्तावित ड्राफ्ट के अनुसार, आयोग द्वारा किए गए परिसीमन और आरक्षण के किसी भी निर्णय को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी, ठीक वैसे ही जैसे केंद्रीय परिसीमन आयोग के फैसलों पर चुनौती नहीं दी जा सकती।