MP Datiya Ratangar Mandir: शारदीय नवरात्रि पर यदि आप भी मध्यप्रदेश के सिद्ध देवी मंदिरों के दर्शन करने की सोच रहे हैं तो चलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं दतिया के रतनगढ़ माता मंदिर के बारे में।
इसे लेकर कहा जाता है कि यहां पर फूलन देवी, मान सिंह, जगन गुर्जर जैसे डाकू माथा टेकते थे। यहां पर देश का सबसे वजनी पीतल का घंटा चढ़ा है। आइए जानते हैं कि दतिया के रतनगढ़ मंदिर (MP Datiya Ratangar Mandir in Hindi) पर तक कैसे जाया जा सकता है, इस मंदिर की खासियत है।
कुंवर बाबा के दर्शन से सर्पदंश का इलाज
इस मंदिर में मां रतनगढ़ के साथ कुंवर बाबा की मूर्ति स्थापित है। ऐसा माना जाता है कि जब वे जंगल में शिकार करते थे, तो तब सारे जहरीले जानवर अपना विष बाहर निकाल देते थे, यही कारण है कि जब किसी इंसान को कोई विषैला जीव (सांप, बिच्छु) काट लेता है, तो उसके घाव पर कुंवर महाराज के नाम का बंधन लगाया जाता है। इसके लिए ऐसे लोग जो जहर से पीड़ित होते हैं वे दिवाली की भाई दूज पर कुंवर महाराज के मंदिर में दर्शन (Sarp ke jahar ke elaj wala mandir) के लिए जाते हैं।
छत्रपति शिवाजी ने कराया था मंदिर का निर्माण
ऐसी मान्यता है कि रतनगढ़ मंदिर का निर्माण छत्रपति शिवाजी (Chhatrapati Shivaji wala mandir) ने कराया था। मंदिर विंध्याचल पर्वत (Vindhyachal Parvat Mandir) पर स्थिति है। इसे मुगल साम्राज्य पर विजय की निशानी माना जाता है। कहा जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगलों के बीच युद्ध के समय जब शिवाजी को हार मिली थी।
तो रतनगढ़ वाली माता और कुंवर बाबा ने शिवाजी महाराज के गुरु रामदास को देवगढ़ के किले में दर्शन दिए। ऐसे में शिवाजी ने मां के आशीर्वाद के बाद ही मुगल सेना से युद्ध करके मुगल साम्राज्य को हराया था। जिसके बाद शिवाजी ने मंदिर का निर्माण कराया था।
डाकुओं की आराध्य देवी हैं मां रतनगढ़ माता
पहले के समय में डाकुओं की देवियों में बड़ी आस्था थी। रतनगढ़ वाली माता वीरों और शक्ति की प्रतिमूर्ति हैं। बीहड़, बागी के चर्चित ग्वालियर-चंबल का डकैतों से जुड़ाव सैकड़ों साल पुराना है। ऐसी मान्यता है कि यहां कई कुख्यात डकैत रहते थे।
पुलिस को चुनौती देकर चढ़ाते थे घंटा
ऐसी मान्यता है किनवरात्र में चंबल के सभी डकैत यहां रतनगढ़ वाली माता मंदिर में पुलिस को चुनौती देते हुए घंटा चढ़ाते थे। कई बार तो ऐसा हुआ कि पुलिस पहरा देती रही और डकैत मंदिर में घंटा चढ़ाकर निकल भी लिए। डकैतों को मानना था कि रतनगढ़ देवी मां उनकी रक्षा करती हैं। इन बड़े डकैतों में फूलन देवी, मान सिंह, जगन गुर्जर, माधव सिंह, मोहर सिंह, मलखान सिंह तक शामिल हैं। जो यहां पर माता रानी के चरणों में माथा टेक कर घंटा चढ़ाते थे।
कैसे पहुंचते हैं रतनगढ़ माता मंदिर
अगर आप सड़क मार्ग से रतनगढ़ देवी मंदिर जाना चाहते हैं तो इसके लिए आप इंदरगढ़ सेनगवां होते हुए मंदिर जा सकते हैं। दूसरा रास्ता ग्वालियर से उटीलाा, बेहट और रनगंवा होते हुए दतिया पहुंचा जा सकता है। आपको बता दें यहां से मंदिर की दूरी करीब 75 किलोमीटर है।
रतनगढ़ मंदिर में चढ़ाए घंटों का क्या होता था
मंदिर की खासियत है कि यहां मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु हर साल हजारों घंटे मां के दरबार में चढ़ाते हैं। ऐसे में यहां मंदिर में बड़ी संख्या में घंटे जमा हो जाते हैं। इसलिए यहां जमा हुए घंटों की पहले नीलामी की जाती थी।
लेकिन इसके बाद साल 2015 में प्रशासन की पहल पर यहां अभी तक इकट्ठे सभी घंटों को एक गलवाकर एक विशाल घंटा बनावा लिया गया। जिसे रतनगढ़ माता मंदिर पर नवरात्र में 16 अक्टूबर 2015 को चढ़ाया गया था।
जानकारों की मानें तो ये देश कर सबसे वजनी पीतल का घंटा है। जिसे तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने चढ़ाया था।
रतनगढ़ मंदिर के घंटे की खासियत
कहते हैं रतनगढ़ मंदिर में चढ़े नौ धातुओं वाले इस विशाल घंटे की गोलाई 13 फीट और ऊंचाई 6 फीट है। सबसे बड़ी बात इस विशालकाय वजनी घंटे को 4 साल के बच्चे से लेकर 80 साल का बुजुर्ग भी बेहद सरल और आसान तरीके से बजा सकते हैं।
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