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MP Atithi Shikshak: मध्यप्रदेश के अतिथि शिक्षकों को बड़ी राहत, हाईकोर्ट ने PHD की अनिवार्यता पर लगाई रोक, जानें क्या कहा

MP Atithi Shikshak PHD: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश के अतिथि शिक्षकों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने अतिथि शिक्षकों के लिए PHD की अनिवार्यता पर रोक लगा दी है।

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Rahul Garhwal
MP Atithi Shikshak PHD High Court order

MP Atithi Shikshak PHD: मध्यप्रदेश के अतिथि शिक्षकों को हाईकोर्ट से राहत मिली है। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अतिथि शिक्षकों के लिए PHD की अनिवार्यता पर रोक लगा दी है। मध्यप्रदेश सरकार ने असिस्टेंट प्रोफेसर्स के लिए जारी नियम अतिथि शिक्षकों पर भी लागू कर दिए थे, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। अब अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति में PHD अनिवार्य नहीं होगी।

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डिवीजन बेंच में सुनवाई

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में ये याचिका अतिथि शिक्षक प्रियंका उपाध्याय, पुष्पा चतुर्वेदी सहित अन्य 13 लोगों ने लगाई थी। हाईकोर्ट चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैथ और जस्टिस विवेक जैन की डिवीजन बेंच ने मामले में सुनवाई की।

मध्यप्रदेश शासन के आदेश को चुनौती

23 अक्टूबर 2023 को मध्यप्रदेश शासन ने अतिथि विद्वानों की नियुक्ति को लेकर नए दिशा-निर्देश कंडिका 10.6 के तहत जारी किए थे। इसे आधार बनाते हुए याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि एक तरफ तो जो अतिथि विद्वान पहले से कार्यरत हैं, उन्हें यथावत रखा जाएगा। लेकिन फेलन आउट अतिथि विद्वानों को बिना PHD के रेगुलर नहीं किया जाएगा।

'रेगुलर न रखना भेदभावपूर्व'

याचिकाकर्ता अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने हाईकोर्ट के सामने पक्ष रखा। कोर्ट को बताया गया कि 2023 के दिशा-निर्देश की कंडिका 10.4 अवैध और भेदभावपूर्ण है। सहायक अध्यापकों के पद पर नियुक्ति के लिए PHD की अनिवार्यता के पहले की है, इसलिए बिना PHD वाले अतिथि विद्वानों को रेगुलर नहीं रखना, न केवल उनके संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ भेदभावपूर्ण है, बल्कि गलत भी है।

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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने क्या कहा ?

[caption id="attachment_761995" align="alignnone" width="592"]MP Atithi Shikshak PHD High Court मध्यप्रदेश हाईकोर्ट[/caption]

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई में कहा कि अब अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति के लिए PHD अनिवार्य नहीं होगी।

'रेगुलर न रखना भेदभावपूर्व'

याचिकाकर्ता अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने हाईकोर्ट के सामने पक्ष रखा। कोर्ट को बताया गया कि 2023 के दिशा-निर्देश की कंडिका 10.4 अवैध और भेदभावपूर्ण है। सहायक अध्यापकों के पद पर नियुक्ति के लिए PHD की अनिवार्यता के पहले की है, इसलिए बिना PHD वाले अतिथि विद्वानों को रेगुलर नहीं रखना, न केवल उनके संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ भेदभावपूर्ण है, बल्कि गलत भी है।

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इसका सीधा मतलब ये है कि जो व्यक्ति बीते 10 सालों से अतिथि शिक्षक के रूप में कार्य कर रहा है, और अगर उसकी PHD नहीं है तो आगे वह कार्य नहीं कर सकता है, इसके बाद दूसरे अतिथि टीचर जो कि PHD डिग्री वाले हैं, उन्हें नियुक्ति दी जाएगी। राज्य सरकार का ये आदेश असंवैधानिक है, और ये हमारा हनन है, क्योंकि कोई भी नियम अचानक से लागू नहीं होते हैं।

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नियुक्ति के वक्त अनिवार्य नहीं थी PHD

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने हाईकोर्ट को बताया कि जब आवेदकों की नियुक्ति हुई थी, उस वक्त PHD की अनिवार्यता नहीं थी। नए नियमों में अगर PHD की अनिवार्यता को लाया गया है तो जो व्यक्ति पहले से कार्य कर रहा है, उन पर ये लागू नहीं होता है।

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ये नोटिफिकेशन सरकार का दोहरा चरित्र बता रहा है। एक तरफ तो जो अतिथि शिक्षक लगातार सेवा में है और PHD होल्डर नहीं है, उनको तो यथावत रखा जा रहा है। दूसरी तरफ जो सेवा से बाहर हो गए हैं। उन्हें नए सत्र में जगह न देते हुए वंचित किया जा रहा है। याचिकाकर्ताओं के तर्क से हाईकोर्ट सहमत हुआ और संशोधित नियम 10.4 पर रोक लगा दी है।

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