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MP Reservation: SC ने एमपी सरकार से मांगा सरकारी वकीलों का आरक्षण डाटा, दो हफ्तों में देना होगा जवाब

MP Reservation: सुप्रीम कोर्ट ने एमपी सरकार से पूछा कि महाधिवक्ता कार्यालयों में ओबीसी, एससी, एसटी और महिलाओं को कितना आरक्षण मिला।

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Wasif Khan
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हाइलाइट्स

  • सुप्रीम कोर्ट ने एमपी सरकार से मांगा डाटा

  • दो हफ्तों में देना होगा आरक्षण का विवरण

  • महाधिवक्ता कार्यालयों में प्रतिनिधित्व पर सवाल

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MP Reservation: सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार से कहा है कि वह दो हफ्तों में बताए कि महाधिवक्ता कार्यालयों (Advocate General Offices) में ओबीसी, एससी, एसटी और महिलाओं को कितनी जगह दी गई है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि मध्य प्रदेश आरक्षण अधिनियम 1994 को इन दफ्तरों में लागू क्यों नहीं किया गया। यह आदेश जस्टिस एम. सुंद्रेश और जस्टिस सतीष शर्मा की बेंच ने दिया।

ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई

यह मामला ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका से जुड़ा है। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार (03 नवंबर) को सुनवाई हुई। एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, वरुण ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग की आबादी करीब 88% है और राज्य में महिलाओं की आबादी लगभग 49.8% है। इसके बावजूद महाधिवक्ता कार्यालयों में इन वर्गों के अधिवक्ताओं को बहुत कम अवसर दिए जा रहे हैं।

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वकीलों ने कहा कि इस वजह से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी इन वर्गों से जज बनना बहुत मुश्किल हो गया है। उनका कहना था कि आरक्षण कानून 1994 की धाराओं में साफ लिखा है कि सरकारी वकीलों और विधि अधिकारियों की नियुक्तियों में आरक्षण लागू होना चाहिए क्योंकि उन्हें सरकार द्वारा वेतन दिया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार से मांगा जवाब

याचिका में बताया गया कि जबलपुर, इंदौर, ग्वालियर और सर्वोच्च अदालत में महाधिवक्ता कार्यालयों में 150 से ज्यादा सरकारी वकीलों के पद स्वीकृत हैं। इसके अलावा करीब 500 पैनल वकील (Panel Advocates) और राज्य के जिलों में लगभग 1000 से ज्यादा पद हैं। अगर निगम, मंडल और बैंक के कानूनी पदों को जोड़ा जाए, तो यह संख्या 1800 से भी ज्यादा होती है।

एसोसिएशन का कहना है कि इन सभी पदों पर सरकारी फंड (Public Fund) से सैलरी दी जाती है, इसलिए आरक्षण का पालन जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को गंभीरता से लेते हुए कहा कि मध्य प्रदेश सरकार दो हफ्तों के अंदर ओबीसी, एससी, एसटी और महिलाओं का प्रतिनिधित्व बताने वाला डाटा कोर्ट में पेश करे। अब इस मामले की अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी।

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