MP Adivasi Bhagoria Haat: होली से एक सप्ताह पहले विशेषकर पश्चिम मध्यप्रदेश में आदिवासी क्षेत्रों में लगने वाले हाट बाजार को ही भगोरिया हाट के नाम से जाना जाता है। ये हाट सामान्यत: आदिवासियों का त्योहारिया हाट ही है। यानी कि होली से पहले जो हाट बाजार लगता है उसमें होली के त्योहार के लिए पूजन सामग्री जैसे, काकड़ी, माजम, चना, ग़ुलाल, नारियल आदि पूजन सामग्री खरीदने बड़ी संख्या में लोग आते हैं और खूब खरीददारी करते हैं। इसलिए इसको त्योहारिया हाट बोलना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
लेकिन अब समय के बदलते परिवेश में इसे भगोरिया हाट के नाम से ही जाना जाने लगा है, इस हाट की तैयारी रबी फसल के पकने के साथ ही शुरू हो जाती है। जैसे-जैसे गेहूं, चने आदि फसल पककर तैयार होती है, वैसे-वैसे इस हाट की तैयारी भी परवान पर होती है। इसे हम फसली उत्सव हाट भी कह सकते हैं। क्योंकि ये हाट आदिवासियों से सीधा लगाव रखता है और आदिवासी प्रकृति से सीधे जोड़े हुए हैं। ये भली भांति प्रकृति की पूजा करते हैं।
हाट में पारंपरिक वेशभूषा में पहुंचते हैं आदिवासी
फसल का जितना अच्छा उत्पादन होता है, उतना इस हाट में उत्साह-उमंग दिखाई देता है। यह आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान का हाट है। इस हाट में दूर-दूर से आदिवासी आते हैं, जो अपने पारंपरिक वेशभूषा व वाद्य यंत्रों जैसे ढोल, मांदल, बांसुरी के साथ शामिल होकर लय ताल ठोक कर उत्साह पूर्वक नाचते गाते हैं कुर्राटी, किलकारी मारते जोश जुनून से हिस्सा लेते हैं। इस हाट की तैयारी एक माह पहले ही शुरू हो जाती है। हर एक गांवों में शाम ढलते ही ढोल, मांदल, बांसुरी की धुन सुनाई देती है। इससे बच्चे, बुजुर्ग, युवा सभी से एक ही बात सुनने को मिलती है कि भगोरिया आने ही वाला है।
शहर में नौकरी करने वाले भी लौट आते हैं गांव
नौकरी पेशा, मजदूर सभी जो शहरों में रहते हैं, होली के उत्सव के दौरान भगोरिया पर्व पर सभी अपने-अपने गांव की ओर लौट आते हैं। बारह महीने भले ही बाहर रहते हों, लेकिन इस भगोरिया हाट को देखने जरूर आते हैं।
आदिवासी संस्कृति की अमूल्य धरोहर
भगोरिया हाट आदिवासी संस्कृति की अमूल्य धरोहर है, इसे देखने व समझने के लिए विदेशी पर्यटक भी आते हैं। इस हाट में ढोल, मांदल, बांसुरी की धुन पर बच्चे, युवा, बुजुर्ग सभी उत्साह, जोश जुनून से थिरकते हैं। इस भगोरिया हाट में दूर-दूर से आए हुए रिश्तेदार, सगे संबंधियों एवं दोस्त आदि मिलते हैं। ये हाट में एक-दूसरे को गले लगाकर बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं। इस मुलाकात को यादगार बनाने के लिए एक दूसरे को पान बीड़ा खिलाकर खुशी मनाते हैं। ये बहुत ही शानदार पुरानी परंपरा है इसके साथ ही कभी-कभी एक दूसरे को गुलाल भी माथे पर लगाते हैं तथा आपसी में हंसी ठिठोली करते हुए देखे जा सकते हैं।
भगोरिया में लड़की भगाकर ले जाने की किंवदंती गलत
भोंगरयु, भगोरिया, हाट का विरोधाभास भी देखने व सुनने को मिलता है। भगोरिया पर्व को लड़की भगाकर ले जाने से भी जोड़कर देखा जाता है, जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता है। यह सिर्फ होली से पहले लगने वाला हाट बाजार का ही बड़ा रूप है। यदाकदा ये भी सुनने में या साहित्य में भी पढ़ने में आता है कि जिस लड़के को जो लड़की पसंद आ जाती है तो उसे पान खिलाया जाता है और लड़की उसे स्वीकार कर लेती है तो शादी पक्की हो जाती है और एक दूसरे से प्रेम विवाह कर लेते हैं।
ये मिथक पूरी तरह से निराधार है। ये एक दूसरे को पान खिलाने की बहुत ही पुरानी परंपरा है। जो आज के समय में एक दूसरे के मिलने पर चाय पीने का चलन जैसा ही है। कहीं-कहीं पर अखबारों में भी लेख पढ़ने में आते हैं कि भगोरिया में लड़का-लड़की एक दूसरे को गुलाल लगाकर प्रेम का इजहार करते हैं। ये धारणा भी गलत साबित होती है, क्योंकि गुलाल लगाने की भी पुरानी परंपरा ही है जो रिश्तेदार एक दूसरे से मिलते हैं तो खुशी में एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं। इसमें युवा, बुजुर्ग, बच्चे किसी भी गुलाल लगाया जा सकता है, इसे किसी प्रेम प्रसंग से जोड़ना कतय भी ठीक नहीं है।
बाजार वाले दिन ही लगता है हाट भगोरिया
इस साल पश्चिम मध्यप्रदेश में आदिवासी बहुल इलाकों में 7 मार्च से 13 मार्च तक भगोरिया हाट लगेगा। जिस क्षेत्र में जिस दिन बाजार लगता है उसी दिन भगोरिया हाट लगता है।
झाबुआ जिले के प्रसिद्ध भगोरिया हाट
7 मार्च: वालपुर, कट्ठीवाड़ा,
8 मार्च: नानपुर, राणापुर,नव मार्च को कुलवट, झाबुआ,
10 मार्च: अलीराजपुर, पेटलावद, ग्यारह मार्च को आम्बुआ, थांदला, बारह मार्च को खट्टाली, बोरी, तरह मार्च को जोबट, सोंडवा,
इसके साथ ही पश्चिम मध्यप्रदेश के धार, बड़वानी खरगोन, और सीहोर जिले के आदिवासी बहुल इलाकों में भी भगोरिया हाट लगता है।
( डॉ. हुकुम सिंह मंडलोई सरदार वल्लभ भाई पटेल शासकीय महाविद्यालय कुक्षी में संस्कृत के सहायक प्राध्यापक हैं )