MP Aaj Ka Mudda: मध्यप्रदेश में चुनावी शोर सुनाई देने लगा है। बगावती नारों और सियासी वादों के बीच चुनाव में इमोशन का जोर भी दिखाई दे रहा है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले दिनों अपने विधानसभा क्षेत्र बुदनी में थे। जहां लाडली बहनों ने उनको चुनाव लड़ने के लिए 25 हजार रुपए इकट्ठा करके दिए।
बहनों से 50 और 100 रुपए जोड़कर ये रकम इकट्ठा की थी। बहनों के इस प्यार को देखकर मुख्यमंत्री भावुक हो गए।
दिग्गज कर रहे भावुक प्रचार
सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा, ‘’हमारी बहने, हमारे भाई चुनाव लड़ने के लिए पैसे इकट्ठा करके भी दे रहे हैं। जो मेरे लिए अद्भुत है।‘’
उन्होने आगे कहा, ‘’जो वोट भी दें, पसीने की कमाई का पैसा चुनाव लड़ने के लिए दें। ये बुदनी अपने आप में एक उदाहरण है, जो प्यार भी देता है, आशीर्वाद भी देता है।‘’
शनिवार को भी बुरहानपुर के धूलकोट में बारेला समाज की बहनों ने मुख्यमंत्री को सभा स्थल पर खाना खिलाया। वहीं मुख्यमंत्री ने भी बहनों को अपने हाथों से खाना खिलाया।
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सीएम ने बहनों के साथ खाई भाजी-रोटी
शिवराज सिंह चौहान ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘’मैं मंच पर आ रहा था, इससे पहले बहनों ने कहा कि भईया घर से मक्के की रोटी,भाजी और चटनी लेकर आए हैं सूखी, वो खाकर जाना पड़ेगा।‘’
‘’मैं यहींं जमीन पर बहनों के साथ बैठा और उनके साथ मक्के की रोटी, भाजी और चटनी खाई। मुझे वो खाके लगा कि स्वर्ग में देवता भी क्या ऐसे भोजन करते होंगे, जो अपनी बहनों ने आज शिवराज को कराया। क्योंकि इस भोजन में मेरी बहनों का प्यार मिला हुआ है।‘’
चुनावी शोर में इमोशन का जोर
पीसीसी चीफ कमलनाथ भी लगातार जनता के बीच सवाल उठाकर इमोशनल कनेक्श स्थापित करने की कोशिश करते नज़र आते हैं। कमलनाथ लगातार कांग्रेस सरकार गिराए जाने को लेकर भावनात्मक रिश्ता जोड़ते हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा, ‘’हमने सौ यूनिट बिजली सौ रूपय में दी है, कौन सी गलती की है, कौनसा पाप किया। मैंने एक हजार गौशाला बनाए, कौनसा पाप किया मैंने।‘’
उन्होने आगे कहा, ‘’कमलनाथ का साथ मत देना, कांग्रेस का साथ मत देना, तस्वीर देख लेना अपने सामने प्रदेश की और सच्चाई का साथ देना। आप सच्चाई का साथ देंगे तो हमारा भविष्य सुरक्षित रहेगा।‘’
क्या भावनात्मक, बुनियादी मुद्दों पर भारी पड़ेंगे?
एक तरफ जहां राजनीति के फेर में रिश्तेदार, भाई, चाचा-भतीजा, गुरु-शिष्य, समधी-समधन चुनावी महाभारत में आमने-सामने हैं।
वहीं सियासत के मैदान में राम मंदिर का मुद्दा, किसानों की कहानी, महिलाओं की योजनाएं, युवाओं को रोजगार जैसे भावनात्मक मुद्दे परवान चढ़ रहे हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इमोशनल अटैचमेंट, हार्डकोर चुनावी मुद्दों पर भारी पड़ता है।
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