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इस गांव में रहते हैं करोड़पति कबूतर, नकदी से लेकर कई बीघा जमीन तक इनके नाम हैं

इस गांव में रहते हैं करोड़पति कबूतर, नकदी से लेकर कई बीघा जमीन तक इनके नाम हैं Millionaire pigeons live in this village, from cash to many bighas of land, their names are nkp

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Bansal Digital Desk
इस गांव में रहते हैं करोड़पति कबूतर, नकदी से लेकर कई बीघा जमीन तक इनके नाम हैं

नई दिल्ली। आपने भारत में कई लोगों के बारे में सुना होगा, जिनके पास करोड़ों की संपत्ति है। लेकिन क्या आपने कभी करोड़पति कबूतरों के बारे में सुना है? अगर नहीं तो आज सुन लीजिए। दरअसल अधिकतर लोग इस बात से अनजान हैं राजस्थान के नागौर स्थित छोटे से कस्बे जसनगर में कुछ कबूतर ऐसे हैं, जो करोड़पति हैं। जी हां आपने सही पढ़ा 'करोड़पति कबूतर'। आगे जानिए इस जगह के कबूतर आखिर कैसे करोड़पति बने।

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क्या-क्या है इन कबूतरों के पास

इन कबूतरों के पास कई दुकानें, कई बीघा जमीन और नकद रुपये भी हैं। कबूतरों के नाम 27 दुकानें, 126 बीघा जमीन और बैंक खाते में करीब 30 लाख रुपये नकद है। इतना ही नहीं इन्हीं कबूतरों की 10 बीघा जमीन पर 470 गायों की गोशाला भी संचालित की जा रही है। 40 साल पहले पूर्व सरपंच रामदीन चोटिया के निर्देशों और अपने गुरु मरुधर केसरी से प्रेरणा लेकर गांव के ग्रामीणों के सहयोग से अप्रवासी उद्योगपति स्वर्गीय सज्जनराज जैन व प्रभुसिंह राजपुरोहित द्वारा कबूतरान ट्रस्ट की स्थापना की गई।

दाने पानी की व्यवस्था ट्रस्ट के माध्यम से

भामाशाहों ने कबूतरों के संरक्षण व नियमित दाने पानी की व्यवस्था के लिए ट्रस्ट के माध्यम से कस्बे में 27 दुकानें बनवाई और इन्हें इनके नाम कर दिया। अब इसी कमाई से ट्रस्ट पिछ्ले 30 सालों से रोजाना 3 बोरी अनाज दे रहा है। कबूतरान ट्रस्ट द्वारा रोजाना करीब चार हजार रुपए से 3 बोरी धान की व्यवस्था की जाती है। ट्रस्ट द्वारा संचालित गोशाला में भी आवश्यकता पड़ने पर 470 गायों के चारे पानी की व्यवस्था की जाती है। इन दुकानों से किराया के रूप में करीब 80 हजार रुपए मासिक आय है।

ट्रस्ट के सिचव क्या कहते हैं?

ट्रस्ट के सचिव प्रभुसिंह राजपुरोहित बताते हैं कि कस्बे के कई लोगों ने कबूतरों के संरक्षण के लिए दिल खोलकर दान दिया था और आज भी दान देते रहते हैं। उन दान के रूपयों का सही उपयोग हो और कभी कबूतरों के दाने पानी में कोई संकट न आए, इसके लिए ग्रामीणों व ट्रस्ट के लोगों ने मिलकर दुकानें बनाईं। आज इन दुकानों से करीब 9 लाख रूपये की सालाना आय होती है, जो कबूतरों के दाने पानी के लिए खर्च की जाती है।

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गरीबों की भी मदद की जाती है

इतना ही नहीं कबूतरों के लिए जमा होने वाले पैसे और अनाज के जरिए गांव के लोग गरीबों में मदद भी करते हैं। गांव के लोग समय-समय पर ब्लड डोनेशन कैंप भी लगाते हैं। दाह संस्कार में किसी भी परिवार को लकड़ी की परेशानी ना हो इससे बचने के लिए गांव के लोग लकड़ी दान भी करते हैं। ताकि अनाथ और बेसहारा लोगों की मदद की जा सके।

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