भोपाल। कोरोना संक्रमण और बर्ड फ्लू अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि अब प्रदेशवासियों को एक नई बीमारी की चिंता सताने लगी है। दरअसल, शिवपुरी जिले में 16 साल के एक किशोर की मौत मेलियोइडोसिस (Melioidosis) बैक्टीरिया की वजह से हो गई है। जानकारी के अनुसार तनिष्क जैन 17 जनवरी को सुबह साढे नौ बजे अपने बाथरूम में नहा रहा था। तभी वह बेहोश हो गया और लगभहग 15 मिनट तक बेहोश रहने के बाद जब उसे होश आया तो उसने परिवार वालों को आवाज दी।
ऑक्सीजन लेवल काफी कम हो गया था
परिवार वालों ने आनन फानन में उसे डॉक्टर के पास पहुंचाया। जहां उसका ऑक्सीजन लेवल काफी कम था। डॉक्टरों ने बताया कि गीजर ऑन रहने के कारण और बाथरूम का दरवाजा बंद होने के कारण ऑक्सीजन लेवल कम हो गया होगा। शाम तक हॉस्पीटल ने तनिष्क को छुट्टी भी दे दी। परिवार वालों को भी लगा इसी वजह से शायद उसका ऑक्सीजन लेवल कम हुआ होगा। लेकिन दो दिन बाद फिर से उसकी तबीयत खराब हो गई।
जांच रिपोर्ट ने डॉक्टरों को भी हैरान कर दिया
19 जनवरी को फिर से तबीयत खराब होने पर परिजनों ने उसे ग्वालियर ले जाने का फैसला किया। लेकिन वहां भी तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ। इसके बाद उसे दिल्ली ले जाया गया। रास्ते में ही उसकी तबीयत गंभीर हो गई। दिल्ली पहुंचते ही उसे सरगंगाराम अस्पताल (Sir Gangaram Hospital) में वेंटीलेटर पर रखा गया। जहां डॉक्टरों ने उसके लंग्स में इंफैक्शन की बात कही। लेकिन 27 जनवरी को जब उसकी जांच रिपोर्ट आई तो सर गंगा राम हॉस्पिटल के डॉक्टर भी हैरान हो गए।
ब्रेन तक पहुंच गया था इंफैक्शन
जांच रिपोर्ट में पता चला कि तनिष्क के बॉडी में मेलियोइडोसिस नाम के एक बैक्टीरिया ने अटैक किया है। इसके कारण उसके बॉर्डी में इंफैक्शन बढ़ता गया और वह ब्रेन तक पहुंच गया। हॉस्पिटल के इतिहास में यह दूसरा केस था। इस कारण से डॉक्टरों ने तुरंत उसके ब्रेन का ऑपरेशन करने को कहा। क्योंकि इंफैक्शन के कारण ब्रेन में सुजन बढ़ता जा रहा था और इससे ब्रेन हैमरेज होने का खतरा था। डॉक्टरों ने तनिष्क के ब्रेन का ऑपरेशन किया और फिर हड्डी को काट कर पेट में सुरक्षित रख दिया। लेकिन काफी प्रयास के बाद भी डॉक्टर उसे बचा नहीं पाए और तनिष्क ने 34 दिन बाद दम तोड़ दिया। मप्र के इतिहास में यह पहला मामला है जहां इस इंफैक्शन से किसी की मौत हो गई हो।
क्या है यह बैक्टीरिया
मेलिओडोसिस एक जीवाणु संक्रमण है। जो आमतौर पर मिट्टी और पानी में पाया जाता है। इंसानों में यह रोग दुर्लभ है और खासकर भारत में यह रेयर ही है। वहीं अगर इसके उपचार की बात करें तो इसका इलाज संभव है। लेकिन यह किसी रोगी में कौन से स्टेज में पता चलता है उसी के अनुसार इसका इलाज किया जाता है। इस वैक्टीरिया से बीमार होने वाले लोगों की संख्या खासकर दक्षिण पूर्व एशिया और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज्यादा है। लेकिन अन्य उष्णकटिबंधीय जलवायु (Tropical climate) स्थानों में भी लोग इससे बीमार हो सकते हैं। इस बीमारी का उपचार आमतौर पर दो चरणों में किया जाता है। पहले चरण में एक गहन चिकित्सा शामिल है और दूसरी अवस्था एक उन्मूलन चिकित्सा है। यदि इस बैक्टीरिया से फेफड़े में संक्रमण फैल गया है तो फिर सर्जरी की भी आवश्यकता पड़ सकती है
कैसे फैलता है यह बैक्ट्रीरिया
अगर कोई व्यक्ति या बच्चा दूषित मिट्टी और पानी के संपर्क में आता है तो वो इसका शिकार हो सकता है। इस संक्रमण की अच्छी बात ये है कि अन्य संक्रमण की तरह यह मनुष्य से मनुष्य में नहीं फैलता है। लेकिन जब कोई इंसान दूषित पानी या मिट्टी के संपर्क में आता है तो यह अटैक कर सकता है।