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Story of Mata Sita from Earth to Heaven
Story of Mata Sita from Earth to Heaven:
क्या कभी आपने सोचा है…
धरती की गोद से जन्म लेकर कोई स्त्री युगों की मर्यादा कैसे बन जाती है?
यह कोई साधारण स्त्री नहीं, यह है माता सीता — एक नाम, एक प्रतीक, एक आदर्श।
संघर्ष, त्याग और आत्मसम्मान की ऐसी गाथा, जो हर दिल को झकझोर देती है।
धरती की गोद से जन्म
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धरती की गोद से जन्म[/caption]
किसी खेत में नहीं, किस्मत की मिट्टी में जन्मी थीं वे।
राजा जनक जब हल चला रहे थे, धरती फटी… और वहां से निकली एक दिव्य बालिका।
जनक बोले – “यह तो धरती की पुत्री है!”
और उसका नाम पड़ा — सीता।
वह नन्हीं कन्या साधारण नहीं थी।
उसकी आंखों में तेज था, मुख पर शांति, और चाल में गरिमा।
प्रकृति की सबसे सुंदर रचना — स्वयं धरती की बेटी।
शिवधनुष और स्वयंबर की गूंज
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शिवधनुष और स्वयंबर की गूंज[/caption]
राजा जनक ने सीता के लिए स्वयंबर रचाया।
शर्त थी — जो शिवजी का धनुष उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, वही सीता से विवाह करेगा।
राजा आए, रथ आए, युद्ध कौशल लहराया… लेकिन कोई न सफल हो सका।
तभी आए — अयोध्या के राजकुमार राम।
शांत, विनम्र, आत्मबल से भरपूर।
उन्होंने धनुष उठाया… और पल भर में टूटा!
ध्वनि गूंजी जैसे ब्रह्मांड ने घोषणा कर दी —
"सीता को उनका राम मिल गया।"
वनवास- प्रेम की अग्निपरीक्षा
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वनवास- प्रेम की अग्निपरीक्षा[/caption]
राजसी बिछावन से कंटीले पथ तक।
राम को वनवास मिला… और सीता ने बिना एक पल सोचे साथ चलने का निर्णय लिया।
सीता ने कहा –
"जहां राम हैं, वहीं मेरा घर है।
जंगल हो या महल, मेरे प्रेम को कोई दिशा नहीं चाहिए।"
रावण का छल और अशोक वाटिका की चुप्पी
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रावण का छल और अशोक वाटिका की चुप्पी[/caption]
रावण ने छल किया।
सीता को लंका ले गया — पर सीता टूटी नहीं।
अशोक वाटिका में बैठकर उन्होंने सिर्फ एक ही नाम जपा — राम।
हर प्रलोभन, हर धमकी को ठुकरा दिया।
सीता बोलीं –
"रावण! मैं केवल राम की हूं।
तेरे महल हों या सोने की लंका, मेरा मन सिर्फ राम में है।"
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अग्निपरीक्षा- जब प्रेम को करना पड़ा सिद्ध
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अग्निपरीक्षा- जब प्रेम को करना पड़ा सिद्ध[/caption]
लंका पर विजय मिली…
राम लौटे… पर सवाल उठा।
राम बोले –
“सीता… तुम्हें अग्नि परीक्षा देनी होगी।”
जिन्होंने रावण का विरोध किया, उन्हें अब अपने ही प्रेम के सामने खड़ा होना पड़ा।
सीता ने अग्नि में प्रवेश किया।
और अग्निदेव ने उन्हें पवित्र घोषित किया।
सीता — अग्नि से भी शुद्ध निकलीं।
राजमहल के सवाल और वन का मातृत्व
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राजमहल के सवाल और वन का मातृत्व[/caption]
राम और सीता लौटे अयोध्या।
लेकिन जनता के मन में संशय था।
राजा का धर्म भारी पड़ा… सीता को फिर वन जाना पड़ा।
वो गर्भवती थीं।
अकेली थीं।
पर टूटी नहीं।
वाल्मीकि के आश्रम में उन्होंने लव और कुश को जन्म दिया।
और उन्हें मर्यादा, प्रेम और साहस के संस्कार दिए।
अंतिम न्याय- धरती की गोद में वापसी
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अंतिम न्याय- धरती की गोद में वापसी[/caption]
जब लव-कुश ने सच्चाई उजागर की…
राम को अपनी भूल का एहसास हुआ।
उन्होंने सीता को लौटने को कहा।
लेकिन अब सीता लौटने को तैयार नहीं थीं।
सीता ने हाथ जोड़कर धरती मां से कहा –
“यदि मैंने कभी असत्य नहीं कहा,
तो हे धरती मां… मुझे अपनी गोद में समा लो।”
धरती फटी… और सीता उसमें समा गईं।
न कोई शोर, न कोई शिकायत — बस मौन।
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