Sadhvi Pragya Bhopal: मालेगांव बम धमाका के मामले में बरी होने के बाद, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर भोपाल पहुंचीं, जहां उन्होंने कहा कि मुझसे बहुत बड़े-बड़े नाम जबरदस्ती बोलने के लिए कहा, मैंने वह नहीं बोले, उनके अनुसार मैंने काम नहीं किया, इसलिए उन्होंने मुझे प्रताड़ित किया।
उन्होंने कहा उन बड़े नामों में विशेष तौर पर आरएसएस प्रमुख मोहन भगवत, राम माधव, नरेंद्र मोदी, आदित्यनाथ योगी, इंद्रेश जैसे तमाम बड़े नेताओं के नाम लेने कहा कि उन्होंने कहा और हमने ऐसा किया ऐसा बोलों, मैंने उनकी बात नहीं सुनी और नहीं मानी।
ATS अधिकारियों ने गैरकानूनी काम किए
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने मुझे झूठे मामलों में फंसाया गया था और जांच के दौरान उन्हें प्रताड़ित भी किया गया। आगे कहा कि उन्हें झूठे मामलों में फंसाया गया था। ATS अधिकारियों ने कानून के नाम पर गैरकानूनी काम किए।
कांग्रेस ने गढ़ा हिंदू आतंकवाद जैसा शब्द
उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय को साधने के लिए हिंदू आतंकवाद जैसा शब्द गढ़ा। यह भी कांग्रेस का षड्यंत्र था। कांग्रेस आतंकवादियों के लिए रोती है और हिंदुओं को प्रताड़ित करती है।
झूठे आरोप लगाने वालों पर कार्रवाई हो
प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि जिन लोगों ने उन पर झूठे आरोप लगाए हैं, उनके खिलाफ भी जांच होनी चाहिए और उन्हें सजा मिलनी चाहिए। राजनीति में वापसी के सवाल पर उन्होंने कहा कि वे राष्ट्रनीति करती हैं, राजनीति नहीं।
जानें क्या है मालेगांव बम ब्लास्ट केस
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में बम धमाका हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 101 लोग घायल हुए थे। यह धमाका रात 9:30 बजे मालेगांव के शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट कंपनी के सामने एक व्यस्त चौक पर हुआ था। जांच में सामने आया कि यहां एलएमएल फ्रीडम बाइक में विस्फोटक लगाया गया था।
हमले में इन्हें बनाया गया था आरोपी
इस हमले के तार कथित रूप से हिंदू राइट विंग संगठनों से जुड़े कुछ लोगों से शामिल थे। जिसमें भोपाल की पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी और सुधाकर धर द्विवेदी को आरोपी बनाया गया था।
3 एजेंसियों ने जांच की, 4 जज बदले
केस की प्रारंभिक जांच महाराष्ट्र एटीएस (ATS) ने की थी, लेकिन 2011 में इसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दिया गया। एनआईए ने 2016 में इस मामले में चार्जशीट दायर की थी। बीते 17 साल में इस केस की जांच तीन अलग-अलग एजेंसियों ने की और अदालत में चार बार जज बदले गए।
2 माह 23 दिन फैसला सुरक्षित रहा
पहले यह फैसला 8 मई 2025 को सुनाया जाना था, लेकिन तकनीकी कारणों से इसे स्थगित किया और 31 जुलाई, 2025 को मुंबई की एनआईए कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत में कोई भी चश्मदीद गवाह अपने बयानों पर कायम नहीं रहा, कोर्ट ने सभी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है।
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