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Maharashtra Assembly :सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा के12 विधायकों को निलंबित करने का प्रस्ताव असंवैधानिक और तर्कहीन बताया

Maharashtra Assembly :सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा के12 विधायकों को निलंबित करने का प्रस्ताव असंवैधानिक और तर्कहीन बताया Maharashtra Assembly: Supreme Court calls the proposal to suspend 12 BJP MLAs unconstitutional and irrational

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Bansal News
Maharashtra Assembly :सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा के12 विधायकों को निलंबित करने का प्रस्ताव असंवैधानिक और तर्कहीन बताया

नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा के 12 भाजपा विधायकों को जुलाई 2021 में हुए सत्र की शेष अवधि के बाद तक के लिए निलंबित करने का प्रस्ताव ‘‘असंवैधानिक’’ और ‘‘ तर्कहीन’’ है। शीर्ष अदालत ने पीठासीन अधिकारी के साथ कथित दुर्व्यवहार करने पर महाराष्ट्र विधानसभा से एक साल के लिए निलंबित किए गए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 12 विधायकों की याचिकाओं पर यह व्यवस्था दी। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा, ‘‘ हमें इन रिट याचिकाओं को स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है और जुलाई 2021 में हुए संबंधित मानसून सत्र की शेष अवधि के बाद तक के लिए इन सदस्यों को निलंबित करने वाला प्रस्ताव कानून की नजर में असंवैधानिक, काफी हद तक अवैध और तर्कहीन है।’’

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विधायकों ने इस प्रस्ताव को अदालत ने चुनौती दी है

पीठ ने कहा कि अत:, इस प्रस्ताव को कानून में निष्प्रभावी घोषित किया जाता है, क्योंकि यह उस सत्र की अवधि के बाद तक के लिए था, जिसमें यह प्रस्ताव पारित हुआ था। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता जुलाई 2021 में शेष सत्र की अवधि समाप्त होने पर और उसके बाद विधानसभा के सदस्य होने के सभी लाभों को पाने के हकदार हैं। निलंबित किए गए 12 सदस्य संजय कुटे, आशीष शेलार, अभिमन्यु पवार, गिरीश महाजन, अतुल भातखलकर, पराग अलवानी, हरीश पिंपले, योगेश सागर, जय कुमार रावत, नारायण कुचे, राम सतपुते और बंटी भांगड़िया हैं। इन विधायकों ने इस प्रस्ताव को अदालत ने चुनौती दी है।

सदन उसकी सीट को खाली घोषित कर सकता है

राज्य सरकार ने आरोप लगाया था कि विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में पांच जुलाई, 2021 को पीठासीन अधिकारी भास्कर जाधव के साथ इन 12 विधायकों ने कथित रूप से दुर्व्यवहार किया था। इन विधायकों को निलंबित करने का प्रस्ताव राज्य के संसदीय कार्य मंत्री अनिल परब ने पेश किया था और ध्वनि मत से इसे पारित कर दिया गया था। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के दौरान, शीर्ष अदालत ने कहा कि एक साल के लिए विधानसभा से निलंबन निष्कासन से ‘‘बदतर’’ है, क्योंकि इसके परिणाम भयानक हैं और इससे सदन में एक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार प्रभावित होता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि छह महीने के भीतर एक सीट भरना वैधानिक बाध्यता है। पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 190 (4) का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि यदि सदन का कोई सदस्य बिना उसकी अनुमति के 60 दिनों की अवधि के लिए सभी बैठकों से अनुपस्थित रहता है, तो सदन उसकी सीट को खाली घोषित कर सकता है।

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