Mahakumbh 2025: प्रयागराज में आगामी महाकुंभ मेले की तैयारियां जोरों पर हैं, जहां देश-विदेश से श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने के लिए उमड़ेंगे। प्राचीन हिंदू ग्रंथों के अनुसार, इस महापर्व का आयोजन लगभग 2,000 वर्षों से हो रहा है। हालांकि, इसके धार्मिक महत्व के साथ-साथ इसके पीछे वैज्ञानिक पहलू भी हैं, जो इसे और अधिक विशेष बनाते हैं।
महाकुंभ की पौराणिक शुरुआत
महाकुंभ (Mahakumbh 2025) का उद्गम समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ा है, जिसमें देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया। अमृत कलश से गिरा अमृत प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरा, जो कुंभ मेले के प्रमुख आयोजन स्थल बने। ‘कुंभ’ शब्द अमृत कलश का प्रतीक है, जो अमरता और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है।
खगोलीय घटनाओं का महत्व
कुंभ मेले का आयोजन खगोलीय घटनाओं पर आधारित होता है। यह मेला तब आयोजित होता है जब गुरु ग्रह, सूर्य और चंद्रमा विशेष संयोग में होते हैं। गुरु का 12-वर्षीय परिक्रमा चक्र और इसकी विशेष स्थिति इस आयोजन को शुभ बनाती है। 2025 में, ग्रहों की विशेष स्थिति इस मेले को और भी खास बनाएगी, जिसमें गुरु, शुक्र, शनि और मंगल की खगोलीय घटनाएं प्रमुख होंगी।
प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान
महापर्व का आयोजन प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान की गहरी समझ को दर्शाता है। मेले का स्थान और समय पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रों और ग्रहों की स्थिति के आधार पर निर्धारित किया गया है। इससे पता चलता है कि हमारे पूर्वजों को खगोल विज्ञान और जैविक प्रभावों की गहरी जानकारी थी।
भू-चुंबकीय महत्व
कुंभ आयोजन स्थलों का चयन भू-चुंबकीय ऊर्जा के आधार पर किया गया है। इन स्थानों, विशेषकर नदी संगम क्षेत्रों को आध्यात्मिक विकास के लिए उपयुक्त माना गया है। प्राचीन ऋषियों ने इन स्थानों पर ध्यान, योग और आत्मिक उन्नति के लिए उपयुक्त ऊर्जा प्रवाह का अनुभव किया और इन्हें पवित्र घोषित किया।
कुंभ में स्नान का वैज्ञानिक पहलू
कुंभ मेला मानव शरीर पर ग्रहों और चुंबकीय क्षेत्रों के प्रभाव को समझने का एक बेहतरीन अवसर है। बायो-मैग्नेटिज्म के अनुसार, मानव शरीर चुंबकीय क्षेत्रों का उत्सर्जन करता है और बाहरी ऊर्जा क्षेत्रों से प्रभावित होता है। कुंभ में स्नान और ध्यान के दौरान अनुभव की जाने वाली शांति और सकारात्मकता इन्हीं ऊर्जा प्रवाहों का परिणाम है।
ये भी पढ़ें: Shiksha Mahakumbh: ‘अटल शिक्षा रत्न’ से सम्मानित हुए लगभग 1000 शिक्षक, ग्रामीण शिक्षकों को मिलेगी राष्ट्रीय पहचान
आध्यात्मिकता और विज्ञान का संगम
ग्रहों की स्थिति का धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से गहरा महत्व है। गुरु, सूर्य और चंद्रमा का विशेष संयोग पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को प्रभावित करता है। इन खगोलीय संयोगों के दौरान कुंभ में स्नान अध्यात्म और विज्ञान का मेल है, जो मानवता के ब्रह्मांडीय संबंधों को समझने का अवसर प्रदान करता है।
साल 2025 का महाकुंभ (Mahakumbh 2025), 13 जनवरी से शुरू होकर, करोड़ों श्रद्धालुओं को प्रयागराज में एकत्रित करेगा। यह आयोजन न केवल धार्मिक पर्व है, बल्कि विज्ञान और संस्कृति का अद्वितीय संगम भी है। महाकुंभ मानवता के लिए यह संदेश देता है कि आस्था और विज्ञान के बीच कोई भेद नहीं है, बल्कि ये दोनों साथ मिलकर जीवन का मार्गदर्शन करते हैं।
ये भी पढ़ें: Mahakumbh 2025: श्री पंचायती निरंजनी अखाड़े का धूमधाम से छावनी प्रवेश, सांधु-संतों का पुष्प वर्षा कर भव्य स्वागत