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Madhya Pradesh High Court: मध्यप्रदेश के भोपाल में विधायकों और मंत्रियों के वीआईपी आवासों के लिए की जा रही पेड़ों की कटाई और शिफ्टिंग के मामले में हाईकोर्ट (MP High Court) ने राज्य सरकार के प्रति कड़ी नाराजगी जाहिर की है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पर्यावरण की अनदेखी कर विकास काम नहीं किए जा सकते। सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से दलील दी गई कि पेड़ों की 'जियो टैगिंग' की गई है और उन्हें दूसरी जगह लगाया जा रहा है। इस पर कोर्ट ने पूछा कि उन स्थानों पर पेड़ लगाने का क्या औचित्य है, जहां पहले से ही घना जंगल मौजूद है?
उल्लंघन पर अधिकारियों पर अवमानना कार्रवाई
कोर्ट ने दोहराया कि पूरे प्रदेश में पेड़ काटने पर प्रतिबंध है। कोई भी पेड़ केवल एनजीटी (NGT) द्वारा गठित समिति या अधिकृत ट्री ऑफिसर की लिखित अनुमति के बाद ही काटा या शिफ्ट किया जा सकता है। कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि यदि इन आदेशों का उल्लंघन हुआ, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाएगी।
सरकार ने कितनी जगह दी पेड़ काटाने की अनुमति
कोर्ट ने कहा कि सरकार को अगली सुनवाई में यह डेटा पेश करना होगा कि अब तक प्रदेश में कुल कितनी जगहों पर पेड़ काटने की अनुमति दी गई है।
सिंगरौली कोल माइन प्रोजेक्ट पर कोर्ट की निगरानी
सिंगरौली के धिरौली कोल माइन प्रोजेक्ट (अदाणी कॉरपोरेट) में हो रही पेड़ों की कटाई का मामला अब और गंभीर हो गया है। कोर्ट ने बैढ़न जनपद अध्यक्ष सविता सिंह की जनहित याचिका को स्वतः संज्ञान में लेते हुए मुख्य याचिका के साथ जोड़ दिया है।
कोर्ट ने निजी कंपनियों को बनाया प्रतिवादी
पेड़ों की निरंतर कटाई की शिकायतों के बाद, पहली बार स्टारटेक मिनरल रिसोर्सेस और अदाणी कॉरपोरेट के मैनेजिंग डायरेक्टरों को इस मामले में प्रतिवादी बनाया गया है।
एनजीटी की मंजूरी के बिना काट नहीं सकते पेड़
याचिकाकर्ता अधिवक्ता मोहित वर्मा ने मामले की गंभीरता को देखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में शिकायत करने के संकेत दिए हैं।कोर्ट ने साफ किया है कि NGT की मंजूरी के बिना एक भी पेड़ नहीं काटा जा सकता। कोल माइन प्रोजेक्ट में कोर्ट के आदेश के बावजूद कटाई जारी रहने पर गंभीर कानूनी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
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