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जबलपुर नगर निगम।
Jabalpur Nagar Nigam E-Attendance System Exposed Salary Scam: जबलपुर नगर निगम में फेस रिकॉग्निशन आधारित ई-अटेंडेंस सिस्टम लागू होते ही फर्जी कर्मचारियों का पर्दाफाश हुआ है। इस नए सिस्टम से एक ऐसे सैलरी घोटाले का खुलासा किया है, जो सालों से सिस्टम के भीतर फल-फूल रहा था। जांच में सामने आया है कि करीब 600 ऐसे आउटसोर्स कर्मचारी कागजों पर वेतन ले रहे थे, जिनका अस्तित्व में जमीन पर मिला ही नहीं। ये 'भूतिया' कर्मचारी सालों से नगर निगम से हर महीने 15-15 हजार रुपए की सैलरी डकार रहे थे।
इस खुलासे से पता चला है कि अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत से हर महीने सरकारी खजाने को लगभग 1 करोड़ रुपए की चपत लगाई जा रही थी। अब मामले में निगम प्रशासन ने सख्त रुख अपनाते हुए कार्रवाई शुरू कर दी है। कमिश्नर ने कार्रवाई करते हुए 11 नियमित और 600 आउटसोर्स कर्मचारियों की सैलरी रोक दी है।
फेस रिकॉग्निशन से खुली पोल, गायब मिले 600 कर्मचारी
जबलपुर नगर निगम में लंबे समय से आउटसोर्स कर्मचारियों की नियुक्ति और उनके वेतन को लेकर सवाल उठते रहे हैं। निगम में कुल 8400 कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें नियमित, दैनिक वेतनभोगी और आउटसोर्स कर्मचारी शामिल हैं। अक्टूबर माह से निगम कमिश्नर रामप्रकाश अहिरवार ने पारदर्शिता लाने के लिए फेस रिकॉग्निशन आधारित हाजिरी अनिवार्य कर दी थी।
कैसे हुआ घोटाले का पर्दाफाश?
जैसे ही नगर निगम में ई-अटेंडेंस सिस्टम लागू हुआ, 600 से ज्यादा आउटसोर्स कर्मचारी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने ही नहीं पहुंचे। जांच में पाया गया कि ये कर्मचारी केवल फाइलों में मौजूद थे। फेस रिकॉग्निशन सिस्टम में फोटो के मिलान न होने और मौके पर मौजूदगी न मिलने से यह स्पष्ट हो गया कि ठेकेदारों और कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी हाजिरी लगाकर सरकारी खजाने को लूटा जा रहा था।
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हर महीने 1 करोड़ रुपए की चपत
प्रत्येक आउटसोर्स कर्मचारी को करीब 15 हजार रुपए मासिक वेतन दिया जाता था। 600 कर्मचारियों के नाम पर हर महीने लगभग 1 करोड़ रुपए का फर्जी भुगतान किया जा रहा था। ई-अटेंडेंस शुरू होते ही निगम की यह 'चोरी' बंद हो गई है। कमिश्नर ने तत्काल प्रभाव से इन 600 आउटसोर्स कर्मचारियों और 11 अन्य नियमित कर्मचारियों की सैलरी रोक दी है, जो ड्यूटी से नदारद पाए गए।
उठ रही है पुरानी सैलरी रिकवरी की मांग
जबलपुर नगर निगम में ई-अटेंडेंस से बड़े घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद अब सामाजिक संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है। मांग की जा रही है कि अक्टूबर से पहले तक जो करोड़ों रुपए इन फर्जी नामों पर निकाले गए, वे किसकी जेब में गए? संगठनों ने मांग की है कि संबंधित ठेकेदारों और अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर (FIR) दर्ज कर उनसे पुराने पैसों की रिकवरी की जाए।
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