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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट।
Jabalpur High Court Vikram Award Stay: मध्य प्रदेश में साहसिक खेलों के लिए दिए जाने वाले प्रतिष्ठित विक्रम अवार्ड 2023 का आयोजन विवादों में घिर गया है। जबलपुर हाईकोर्ट ने इस अवार्ड वितरण समारोह के आयोजन पर अंतरिम रोक लगा दी है। यह रोक सीहोर निवासी पर्वतारोही मेघा परमार की ओर से दायर याचिका पर लगाई गई है। जिन्होंने दावा किया है कि उन्होंने एवरेस्ट भावना डेहरिया से पहले फतह किया था और वे भी अवार्ड की हकदार हैं। कोर्ट ने दूसरी दावेदार भावना डेहरिया को नोटिस जारी कर 5 जनवरी 2026 को अगली सुनवाई तय की है।
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— Bansal News Digital (@BansalNews_) December 11, 2025
हाईकोर्ट ने लगाई अंतरिम रोक, नोटिस जारी
जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने पर्वतारोही मेघा परमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए विक्रम अवार्ड-2023 के आयोजन पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मामले के अंतिम निराकरण तक अवार्ड किसी अन्य दावेदार को नहीं दिया जाए। कोर्ट ने इस संबंध में दूसरी दावेदार भावना डेहरिया को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है।
एवरेस्ट फतह की टाइमिंग पर विवाद
याचिकाकर्ता मेघा परमार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तन्खा ने दलीलें पेश की। उनके साथ अधिवक्ता अतुल जैन ने भी पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि सीहोर निवासी पर्वतारोही मेघा परमार भी विक्रम अवार्ड की सही दावेदार हैं। विवाद का मुख्य केंद्र माउंट एवरेस्ट फतह करने का समय है।
याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि छिंदवाड़ा निवासी पर्वतारोही भावना डेहरिया का चयन किया गया है, लेकिन अवार्ड पर उनका भी समान रूप से हक है, क्योंकि एवरेस्ट फतह करने में वे भावना डेहरिया से आगे थीं।
वरिष्ठ अधिवक्ता तन्खा ने बताया
- मेघा परमार ने 22 मई 2019 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया था।
- मेघा परमार सुबह 5 बजे चोटी पर पहुँच गई थीं, जबकि भावना डेहरिया पौने 10 बजे (9:45 AM) पहुँची थीं।
- इस हिसाब से दोनों के बीच पांच घंटे का अंतराल था और मेघा पहले चोटी पर पहुंची थीं।
- इस आधार पर, मेघा परमार ने दलील दी है कि भावना डेहरिया की तरह वह भी विक्रम अवार्ड पाने की हकदार हैं।
नियमों में शिथिलता पर हुई जोरदार बहस
वरिष्ठ अधिवक्ता तन्खा ने कोर्ट में दलील दी कि अवार्ड के चयन के नियमों में पहले भी शिथिलता (ढील) बरती जा चुकी है। उन्होंने 2022 के विक्रम अवार्ड चयन प्रक्रिया का उदाहरण दिया, जहाँ नियमों को शिथिल करते हुए दो पुरुष पर्वतारोहियों— भगवान सिंह और रत्नेश— के नामों पर मुहर लगाई गई थी, जबकि उनके लक्ष्य हासिल करने में केवल एक घंटे का अंतर था।
चूँकि एक वर्ष में केवल एक ही खिलाड़ी को अवार्ड देने का नियम है, इसलिए उन्होंने तर्क दिया कि जब पुरुषों के मामले में यह नियम बदला गया, तो मेघा परमार को भी अवार्ड के लिए विचार करने हेतु नियमों में शिथिलता क्यों नहीं दी जा सकती। उन्होंने यह भी बताया कि नामांकन प्रक्रिया के अनुसार, यह मेघा परमार के लिए विक्रम अवार्ड पाने का अंतिम अवसर है।
कोर्ट को यह भी बताया गया कि मेघा परमार को प्रदेश में संचालित 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान के लिए ब्रांड एम्बेसडर भी नियुक्त किया गया था, जबकि भावना को यह अवसर बाद में मिला।
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