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केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेद्र प्रधान भोपाल में आयोजित कार्यशाला में संबोधित करते हुए।
Dharmendra Pradhan Bhopal: केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि "मैं मित्र रामेश्वर शर्मा से निवेदन करना चाहूंगा कि उनकी विधानसभा में कम से कम हफ्ते में एक बार एक बच्चे को एक अंजीर, दो काजू और एक बेसन का लड्डू मिल जाए। शायद उसके न्यूट्रिशनल इंपैक्ट से कोई अब्दुल कलाम निकल सकता है। ये समाज का दायित्व है।"
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने रविवार, 7 दिसंबर को भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियांवयन चुनौतियां और रणनीति पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित किया।
प्रधान ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने पोषण का अभियान चलाया है। ये सरकारी मिशन नहीं हो सकता। सरकार तो अभियान चला ही रही है। मिड डे मील चल रहा है आंगनवाड़ियों में पोषण पर काम हो रहा है।
कार्यशाला में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, राज्यपाल मंगू भाई पटेल, स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह, उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार, राज्यमंत्री कृष्णा गौर, विधायक रामेश्वर शर्मा, भगवानदास सबनानी और शिक्षा विभागों के अधिकारी मौजूद थे।
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... यह केवल सरकारी मिशन नहीं हो सकता है
धर्मेंद्र प्रधान ने कार्यक्रम में मौजूद विधायक रामेश्वर शर्मा और भगवानदास सबनानी की तरफ देखते हुए कहा कि ये हमारे मित्र रामेश्वर शर्मा बडे़-बडे़ भंडारे करते हैं। हमारे हिंदू नेता हैं।
मैं उनसे निवेदन करता हूं कि इस बार रामेश्वर जी की विधानसभा में कम से कम हफ्ते में एक बार एक बच्चे को एक पीस अंजीर, दो काजू और एक बेसन का लड्डू मिल जाए।
शायद उसके न्यूट्रिशनल इंपैक्ट से कोई अब्दुल कलाम निकल सकता है। ये तो समाज का दायित्व है। प्रधानमंत्री जी ने पोषण का अभियान चलाया है। ये केवल सरकारी मिशन नहीं हो सकता है। सरकार तो अपने स्तर से कर ही रही है
अनेक बच्चों को समय पर एक गिलास दूध नहीं मिलता
प्रधान ने कहा कि मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूं कि मध्य प्रदेश के डेढ़ करोड़ विद्यार्थियों में से 50 लाख बच्चों ने 5वीं क्लास तक एपल (सेब) नहीं देखे होंगे। देखे होंगे तो बाजारों में देखे होंगे। उन्हें सेब खाने का सौभाग्य नहीं है। अंजीर तो उनकी जिंदगी में 10वीं के बाद शायद ही आया हो। अनेक बच्चों को जब एक गिलास दूध चाहिए तब नहीं मिलता हैं। इसको करेगा कौन? ये समाज को सोचने की जरूरत है।
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धर्मेंद्र प्रधान ने कहा- जन आंदोलन का मतलब नारे लगाना नहीं
धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि मैं स्कूलों में जाता हूं तो फूल का गुलदस्ता भेंट में दिया जाता है। उसकी लाइफ 20 सेकंड होती है। सोशल मीडिया पर फोटो पोस्ट करने के लिए कई गुलदस्ते भेंट में मिलते हैं। मैंने एक गुलदस्ते का मूल्य निकाला तो औसतन 500 रुपया है। यानी इतने पैसों में दो किलो सेब आसानी से आ सकते हैं। मैंने गुजरात में देखा था कि गुलदस्ते की जगह फलों की टोकरी देने की शुरुआत हुई थी। यही जनआंदोलन है। जनआंदोलन का मतलब नारे लगाना यह कतई नहीं है।
प्रधान बोले हम शिक्षा आंदोलन की उपज
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि मोहन यादव हों, इंदर सिंह परमार हों या अशोक कड़ेल हों... हम सब भारत के शिक्षा आंदोलन की उपज हैं।
प्रधान ने कहा, एमपी ऐसा राज्य है जो एनईपी (न्यू एजुकेशन पॉलिसी) के क्रियांवयन में अग्रणी राज्य होने के साथ भारतीय सभ्यता को निरंतरता से जोड़े रखने में अग्रसर है। ये भारत का ह्रदय स्थल है
एमपी पर मुगलों का भी इम्पेक्ट
प्रधान ने कहा कि मध्यप्रदेश एक ऐसी प्रयोगशाला है जहां सनातन हिंदू धर्म का व्याख्यान हुआ है। बुद्धिज्म, जैनिज्म का व्याख्यान हुआ है। पूर्ववर्ती व्यवस्था में मुगलों का भी इम्पेक्ट मध्यप्रदेश के ऊपर पड़ा है। सिद्धांतत: यहां सभी तत्व अच्छे अपनाए जाते हैं।
भारतीय शिक्षा नीति को प्रमुखता मिले
प्रधान ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियांवयन का यह पांचवां वर्ष है। मैं ऐसा नहीं मानता कि भारतीय शिक्षा नीति कोई नया मसौदा है। भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय सभ्यता का मूल है। जिसमें वैज्ञानिकता, दार्शनिक स्पष्टता और आध्यात्मिकता का प्रभाव होता है।
भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय शिक्षा व्यवस्था का मूल स्तंभ है। उसी पर विशेषकर 19वीं और 20वीं सदी में कुछ विस्मृति हमारी हुई थी। खासकर 19वीं सदी में मैकाले ने भारत में अंग्रेजों के शासन को लंबे समय तक स्थाई बनाने की रणनीति बनाई। उसमें सबसे पहले भारतीय शिक्षा को डिरेल किया।
आज से 10 साल बाद यानी साल 2035 में मैकाले प्रणाली को 200 साल पूरे हो जाएंगे। हमें शायद अंग्रेजी भाषा से 21वीं सदी में कोई परहेज नहीं है। लेकिन, क्या हमारे विचार की स्पष्टता मैकाले पद्धति पर होगी या भारतीयता पर होगी।
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एमपी जीता-जागता लैबोरेटरी
केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने कहा, एमपी एक जीता जागता लैबोरेटरी है। आप उज्जैन महाकाल जाओ तो काल गणना का आधा बिंदु महाकाल है। ये व्यवस्था वैदिक काल से बनी है। मुझे इंदौर आईआईटी में सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट वालों ने बताया कि सांस्कृतिक मध्य भारत (मालवा रीजन में इंदौर, उज्जैन, भोपाल का कुछ हिस्सा) में मौजूद वॉटर बॉडीज- तालाब बावड़ी की धारण क्षमता पिछले सौ सालों के एवरेज रेनफॉल के हिसाब से है।
प्रधान ने कहा, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सौ साल पहले इंदौर आईआईटी नहीं था। भोपाल इंदौर, उज्जैन में रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं था। तब भी समाज कितना वैज्ञानिक था। ये प्रमाण है कि सौ साल पहले मप्र के तत्कालीन नागरिकों ने जो वाटर बॉडी बनाई थी। वो रेन फॉल की कैलकुलेशन करके निर्माण किए थे।
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