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भोपाल में Women के अंडरगारमेंट्स चुराकर पहनता था आरोपी: मौके से मिले श्रमिक कार्ड ने खोला राज, साइकेट्रिस्ट से जानें ऐसा क्यों करता था आरोपी

भोपाल के कोलार इलाके से एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है। कोलार पुलिस ने चोरी के आरोप में एक ऐसे युवक को गिरफ्तार कर लिया है, जो महिलाओं के अंडरगारमेंट्स चोरी करता और खुद पहनता था।

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sanjay warude
Bhopal Women Undergarments Thief

Bhopal Women Undergarments Thief: भोपाल के कोलार इलाके से एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है।

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कोलार पुलिस ने चोरी के आरोप में एक ऐसे युवक को गिरफ्तार कर लिया है, जो महिलाओं के अंडरगारमेंट्स चोरी करता और खुद पहनता था। बताया जा रहा है कि आरोपी ने इससे पहले मंदाकिनी कॉलोनी में भी इसी तरह की चोरी की थी, जहां भागते समय वह चोरी का माल डेयरी संचालक के घर ही छोड़ गया था। इस कार्ड पर लिखे नाम के आधार पर पुलिस ने बुधवार दोपहर आरोपी को उसके घर से दबोच लिया।

पुलिस पहुंची, तब आरोपी घर में सो रहा था

जब पुलिस आरोपी के घर पहुंची, तब वह सो रहा था। तलाशी के दौरान पुलिस यह देखकर दंग रह गई कि आरोपी ने चोरी किए हुए अंडरगारमेंट्स खुद पहन रखे थे। पकड़े गए आरोपी की पहचान दीपेश के रूप में हुई है। 

घटनास्थल पर गिरा था चोर का श्रमिक कार्ड

घटना मंगलवार रात करीब 12:30 बजे की है। अमरनाथ कॉलोनी निवासी एक डेयरी संचालक ने अपने घर की बालकनी में किसी अज्ञात व्यक्ति की परछाई देखी। शोर मचाने पर आरोपी वहां से भाग निकला, लेकिन हड़बड़ाहट में उसका श्रमिक कार्ड घटनास्थल पर ही गिर गया। 

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पुरानी चोरियों का भी पता लगा रही पुलिस

कोलार पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है और उससे पुरानी वारदातों के संबंध में पूछताछ की जा रही है। पुलिस यह भी पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या वह किसी अन्य असामाजिक गतिविधियों में भी शामिल रहा है।

इसके पीछे फेटिशिस्टिक व्यवहार बड़ी वजह

साइकेट्रिस्ट डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं इस तरह की घटनाओं के पीछे सिर्फ चोरी नहीं, कई मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं। कुछ लोगों में यौन-जिज्ञासा, अपराध-बोध और छुपे हुए आवेग मिलकर फेटिशिस्टिक व्यवहार बना देते हैं, जिसमें व्यक्ति कपड़ों जैसी चीजों के प्रति असामान्य आकर्षण महसूस करता है। यह व्यवहार धीरे-धीरे कंपल्सिव बन सकता है। 

साइकेट्रिक मूल्यांकन और काउंसलिंग जरूरी

साइकेट्रिस्ट डॉ सत्यकांत त्रिवेदी के मुताबिक, ऐसे मामलों में कानूनी कार्रवाई के साथ मनोचिकित्सकीय मूल्यांकन (Psychiatric Evaluation) और काउंसलिंग जरूरी है, ताकि व्यक्ति की सोच-भावनाओं को समझकर रिलेप्स रोका जा सके। समाज को चाहिए कि इसे केवल मजाक या शर्मिंदगी के रूप में न देखें, बल्कि इसे उपचार-योग्य मानसिक-व्यवहारिक समस्या की तरह समझें।

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