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Guru Teg Bahadur Shaheedi Diwas Bhopal: राजधानी भोपाल में रविवार को श्री गुरु तेग बहादुर महाराज का 350वां शहीदी दिवस बड़े धार्मिक उत्साह और आस्था के साथ मनाया गया। गुरूनानकपुरा गुरुद्वारे में आयोजित कार्यक्रम में हजारों श्रद्धालुओं ने शामिल होकर गुरु साहिब की शहादत को नमन किया। कीर्तन और कविताओं के माध्यम से गुरु महाराज के बलिदान को याद किया गया। साथ ही शहादत की ऐतिहासिक कथा सुनकर श्रद्धालु भावुक हुए।
भोपाल में मनाया गया 350वां शहीदी दिवस
भोपाल के गुरुनानकपुरा गुरुद्वारा ( रायसेन रोड) में श्री गुरु तेग बहादुर महाराज के 350वें शहीदी दिवस पर भव्य धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। सुबह से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु गुरुद्वारे पहुंचते रहे और गुरु ग्रंथ साहिब के सामने माथा टेककर अरदास की।
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कीर्तन, कविताएं और प्रवचनों से गूंजा गुरुद्वारा
कार्यक्रम में पंथक कवि शुकर गुजार सिंह अमृतसर, कवियित्री तजिंदर कौर आनंदपुर साहिब और रागी जत्थों ने गुरु महाराज की शहादत, त्याग और धर्म रक्षा की गाथा को प्रस्तुत किया। गुरुद्वारे के ग्रंथी भाई कमलजीत सिंह ने भी कीर्तन और प्रवचनों के जरिए संगत को गुरु महाराज की शिक्षाओं से जोड़ते हुए वातावरण को भावपूर्ण बना दिया।
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श्री गुरु तेग बहादुर की शहादत की कथा
कवि शुकर गुजार सिंह ने अपने भावपूर्ण शब्दों में बताया कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के सामने उनके तीन शिष्यों भाई मति दास को आरे से चीरकर, भाई सति दास को रूई में लपेटकर जिंदा जलाकर, भाई दयाला जी को उबलते देग में डालकर शहीद किया।
औरंगजेब का उद्देश्य था कि श्री गुरु तेग बहादुर साहिब भयभीत होकर इस्लाम स्वीकार कर लें। लेकिन गुरु साहिब अपने तीन भक्त शिष्यों की निर्मम शहादत देखने के बाद भी अडिग रहे और धर्म की रक्षा के संकल्प से नहीं डिगे। जब अत्याचारों के बाद भी वे नहीं झुके, तो अंततः उन्हें भी शहीद कर दिया गया। औरंगजेब ने गुरु महाराज को दिल्ली की लाल किला और चांदनी चौक के मार्ग पर बेज्जत कर सिर धड़ से अलग करवा दिया।
आज वही स्थान चांदनी चौक में गुरुद्वारा सीस गंज साहिब के रूप में स्थापित है, जहाँ प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु गुरु तेग बहादुर साहिब की अमर शहादत को नमन करते हैं और अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। गुरु तेग बहादुर साहिब ने हिंदू धर्म और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
कविताओं के जरिए गुरु महाराज को किया नमन
कवियित्री जतिंदर कौर जी ने अपनी कविता में गुरु साहिब की वीरता और शक्ति का भावपूर्ण वर्णन किया। उन्होंने कहा—
“शेर बना दित्ते, चिड़ियां खा गईयां बाजा नूँ,
राठा (राजा) संग रंक लड़ा दिते,
चन्न वांगू नाम तेरे अमृत दी धन
शक्ति ने गिदड़ा को चमकदा है,
तेरे साजे सिंघ सरदारां दा।”
रागी जत्था भाई कुलदीप सिंह अमृतसर से पधारे थे। उन्होंने कीर्तन में गुरु साहिब की महिमा का गायन करते हुए कहा—
“जो नर दुख में दुख नहीं मानै,
सुख सनेहु अर भै नही,
जा के कंचन माटी माने।”
साथ ही उन्होंने यह अमृतमयी पंक्तियाँ भी प्रस्तुत कीं—
“तेग बहादुर सिमरिये,
घर नउ निध आवै धाये,
सब थाई होये सहाये।”
गुरुद्वारा के ग्रंथी भाई कमलजीत सिंह ने अरदास के दौरान संगत को 'गुरमत' की मुख्य वाणी का स्मरण कराया—
“तबै चलाओ पंथ,
सब सिक्खन को हुकुम है—
गुरू मानयो ग्रंथ।
गुरू ग्रंथ जी मानयो प्रगट गुरुआ की देह।
आज्ञा भई अकाल की…”
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हजारों श्रद्धालु हुए भावविभोर
कार्यक्रम में हजारों की संख्या में संगत ने शामिल होकर गुरु तेग बहादुर महाराज को नमन किया। कीर्तन दरबार और कवि दरबार में भक्त पूरी श्रद्धा और भावनाओं के साथ शामिल हुए। गुरुद्वारा परिसर ‘जो बोले सो निहाल’ के जयकारों से गूंज उठा। इस कार्यक्रम में गुरुद्वारा के अध्यक्ष गुलदीप सिंह गुलाटी, सचिव जसबीर सिंह भीमरा, रछपाल सिंह, समाजसेवी गुरुचरण सिंह अरोड़ा सहित हजारों श्रद्धालु उपस्थित रहे और गुरु तेग बहादुर साहिब की शहादत को नमन किया।
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