Pandhurna Gotmar Mela 2025 Update: मध्यप्रदेश के पांढुर्णा में हर साल पोला पर्व के बाद आयोजित होने वाला विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला इस बार भी परंपरागत जोश और पत्थरबाजी के बीच खेला जा रहा है। यह आयोजन जितना ऐतिहासिक है, उतना ही खतरनाक भी। शनिवार को सुबह से मेले में हो रही पत्थरबाजी में अब तक 934 से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। परंपरा के अनुसार पांढुर्णा और सावरगांव के बीच जाम नदी के दोनों किनारों से चल रही पत्थरबाजी में लोग घायल हो रहे हैं, और कुल्हाड़ी लेकर नदी में उतरे युवाओं ने मेले को और भी उग्र बना दिया है। दोनों तरफ से हो रही पत्थरों की बारिश में किसी का सिर फूटा को किसी का पैर फ्रैक्चर हुआ है। दोनों पक्षों के लोगों का खून बहा है, नदी के दोनों किनारों पर भारी संख्या में लोग जमा हुए हैं।
गोटमार मेले में अब तक 934 से ज्यादा लोग घायल
पांढुर्णा में आयोजित पारंपरिक गोटमार मेले में शनिवार शाम तक 934 से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। पत्थरबाजी की इस परंपरा के दौरान कई लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए, जिनका इलाज मौके पर मौजूद डॉक्टरों द्वारा किया जा रहा है। भीड़ और अफरा-तफरी के बीच घायलों को अस्पताल पहुंचाना चुनौती बन गया है। घायलों को लेकर जा रही एक एम्बुलेंस तक भीड़ में फंस गई, जिससे स्थिति और जटिल हो गई। जिला प्रशासन ने मेले में 6 अस्थायी स्वास्थ्य केंद्र भी बनाए हैं, जहां 58 डॉक्टरों और 200 मेडिकल स्टाफ की तैनाती की गई है।
जिले में धारा 144 लागू, 600 पुलिसकर्मी तैनात
मेले की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाए रखने के लिए 600 पुलिसकर्मी मौके पर तैनात किए गए हैं। छिंदवाड़ा के कलेक्टर अजय देव शर्मा ने स्थिति को संभालते हुए धारा 144 लागू कर दी है, ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके। पुलिस और प्रशासन के अधिकारी लगातार छतों से निगरानी रख रहे हैं, और हर गतिविधि पर पैनी नजर बनाए हुए हैं।
चंडी माता की पूजा के बाद शुरू हुआ मेला
शनिवार सुबह 10 बजे पारंपरिक रूप से चंडी माता की पूजा के साथ गोटमार मेले की शुरुआत हुई। इसके बाद परंपरा के अनुसार पांढुर्णा और सावरगांव के लोगों के बीच झंडे (पलाश का पेड़) को कब्जे में लेने की प्रतिस्पर्धा और पत्थरबाजी का सिलसिला शुरू हो गया।
गोटमार मेले में झंडे पर कब्जे को लेकर जंग तेज
शाम 5 बजे तक के अपडेट के अनुसार, गोटमार मेले की परंपरागत पत्थरबाजी अब भी जारी है। जाम नदी के बीच लगे प्रतीकात्मक झंडे को लेकर दोनों पक्षों के बीच संघर्ष चरम पर है। इस दौरान कुछ युवक कुल्हाड़ी लेकर झंडे पर पहला वार कर चुके हैं, जिससे स्थिति और अधिक तनावपूर्ण हो गई है।
सावरगांव की ओर से लगातार पत्थर फेंके जा रहे हैं, ताकि पांढुर्णा पक्ष झंडे तक न पहुंच सके। वहीं, पांढुर्णा के लोग झंडे को कब्जे में लेने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं।
इस संघर्षपूर्ण माहौल में पांढुर्णा से कांग्रेस विधायक निलेश उईके भी मेले में पहुंचे और परंपरा अनुसार पत्थर फेंकने में हिस्सा लिया। झंडे की रक्षा और कब्जे को लेकर दोनों पक्षों के बीच जबरदस्त संघर्ष देखा जा रहा है। खिलाड़ी झंडे को काटने के लिए नदी में आगे बढ़ रहे हैं, जबकि सावरगांव पक्ष उन्हें रोकने के लिए पत्थरबाजी कर रहा है। इस आयोजन में परंपरा, जुनून और टकराव देखने को मिल रहा है।
गोटमार मेला: परंपरा, प्रेम और पत्थरबाजी की कहानी
मध्यप्रदेश के पांढुर्णा में पोला पर्व के अगले दिन एक अनोखा और खौफनाक मेला आयोजित होता है, जिसे गोटमार मेले के नाम जाना जाता। यहां जाम नदी के किनारे पर एक विश्व प्रसिद्ध मेला लगता है। यह मेला केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि दो गांवों पांढुर्णा और सावरगांव के बीच पीढ़ियों से चल रही एक अनूठी और हिंसक परंपरा है, जिसमें एक दूसरे पर पत्थर फेंके जाते हैं, खून बहता है और कभी-कभी जानें भी चली जाती हैं। यह अनोखी प्रथा आज भी जारी है।
क्यों खास है गोटमार मेला?
पांढुर्णा की जाम नदी के किनारे लगने वाला यह मेला देखने के लिए देशभर से हजारों लोग जुटते हैं। बैलों की पूजा का पर्व पोला के अगले दिन लगने वाले इस मेले में लोग एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं, परंपरा के नाम पर।
यह आयोजन एक विश्वप्रसिद्ध परंपरा बन चुका है, जिसमें खतरा, आस्था और इतिहास, तीनों का संगम दिखाई देता है।
ऐसे होती है गोटमार मेले की शुरुआत
गोटमार मेले की शुरुआत होती है चंडी माता की पूजा से। इस अवसर पर सावरगांव के लोग जंगल से एक पलाश का पेड़ काटकर लाते हैं और उसे नदी के बीच में गाड़ते हैं। यह प्रतीकात्मक झंडा होता है, जिसकी रक्षा सावरगांव वाले करते हैं। इस झंडे को लाने और लगाने की पीढ़ियों पुरानी जिम्मेदारी सावरगांव निवासी सुरेश कावले के परिवार की है। उनके पूर्वजों से यह जिम्मा आज भी निभाया जा रहा है।
आखिर क्यों होती पत्थरबाजी?
सावरगांव के लोग इस झंडे को ‘लड़की’ और पांढुर्णा के लोग ‘लड़का’ मानते हैं। सावरगांव वाले झंडे की रक्षा करते हैं, जबकि पांढुर्णा के लोग उस पर कब्जा करने के लिए पत्थरबाजी करते हैं। यह संघर्ष तब तक चलता है जब तक कि पांढुर्णा पक्ष झंडे को काटकर उसे कब्जे में नहीं ले लेता। इसके बाद दोनों पक्ष चंडी माता की पूजा कर मेले का समापन करते हैं।
पत्थरबाजी की परंपरा के पीछे क्या कहानी है?
इस हिंसक परंपरा के पीछे एक दर्दनाक प्रेम कथा भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि सावरगांव की एक लड़की और पांढुर्णा के एक लड़के के बीच प्रेम हुआ था। दोनों ने चोरी-छिपे विवाह कर लिया और भागने की कोशिश की। जैसे ही सावरगांव के लोगों को इसका पता चला, उन्होंने प्रेमी युगल पर पत्थरों से हमला कर दिया। जवाब में पांढुर्णा के लोगों ने भी पत्थर फेंके। इस हिंसा में दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी में हो गई। इस घटना के बाद, दोनों पक्षों को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने दोनों के अंतिम संस्कार चंडी माता के दरबार में किए। तभी से इस मेला और पत्थरबाजी को परंपरा के रूप में हर साल निभाया जा रहा है।