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हाइलाइट्स
- पांढुर्णा के गोटमार मेले में फिर बहा खून, 1000 से ज्यादा घायल।
- पलाश रूपी झंडा नदी में गिरते के साथ मोटमार का खेल खत्म।
- पांढुर्णा और सावरगांव के लोगों के बीच जमकर पत्थरबाजी।
Pandhurna Gotmar Mela 2025 Update: मध्यप्रदेश के पांढुर्णा में हर साल पोला पर्व के बाद आयोजित होने वाले विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले में इस बार भी परंपरागत जोश और पत्थरबाजी के बीच खेला गया। यह आयोजन जितना ऐतिहासिक है, उतना ही खतरनाक भी। शनिवार को सुबह से मेले में शुरू पत्थरबाजी में देर शाम तक चली। जिसमें एक हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। आखिर में पलाश रूपी झंडा नदी में गिरते के साथ मोटमार का यह खेल खत्म हो गया।
सालों पुरानी परंपरा के अनुसार पांढुर्णा और सावरगांव के बीच जाम नदी के दोनों किनारों से जमकर पत्थरबाजी की गई। जिसमें लगातार लोग घायल होते रहे, और कुल्हाड़ी लेकर नदी में उतरे युवाओं ने मेले को और भी उग्र बना दिया। दोनों तरफ से पत्थरों की बारिश में किसी का सिर फूटा तो किसी का गंभीर चोटें आई है। दोनों पक्षों के लोगों का खून बहा है, इस दौरान नदी के दोनों किनारों पर भारी संख्या में लोगों का जमावड़ा रहा।
गोटमार मेले में 1000 से ज्यादा लोग घायल
पांढुर्णा में आयोजित पारंपरिक गोटमार मेले में शनिवार शाम तक 1000 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। पत्थरबाजी की इस परंपरा के दौरान कई लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए, जिनका इलाज मौके पर मौजूद डॉक्टरों द्वारा किया जा रहा है। घायलों में 2 लोगों की हालत बेहद गंभीर बताई जा रही है। जिन्हें नागपुर के अस्पताल में भर्ती किया गया है।
गोटमार मेले में पत्थर फेंके जाने के दौरान भीड़ और अफरा-तफरी के बीच घायलों को अस्पताल पहुंचाना चुनौती बन गया है। घायलों को लेकर जा रही एक एम्बुलेंस तक भीड़ में फंस गई, जिससे स्थिति और जटिल हो गई। जिला प्रशासन ने मेले में 6 अस्थायी स्वास्थ्य केंद्र भी बनाए हैं, जहां 58 डॉक्टरों और 200 मेडिकल स्टाफ की तैनाती की गई है।
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जिले में धारा 144 लागू, 600 पुलिसकर्मी तैनात
मेले की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाए रखने के लिए 600 पुलिसकर्मी मौके पर तैनात किए गए हैं। छिंदवाड़ा के कलेक्टर अजय देव शर्मा ने स्थिति को संभालते हुए धारा 144 लागू कर दी है, ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके। लेकिन धारा 144 बेअसर रही और लोगों की भीड़ पत्थरबाजी करते रही। पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों ने लगातार छतों से निगरानी रखी और हर गतिविधि पर पैनी नजर बनाए रखी हैं।
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चंडी माता की पूजा के बाद शुरू हुआ मेला
शनिवार सुबह 10 बजे पारंपरिक रूप से चंडी माता की पूजा के साथ गोटमार मेले की शुरुआत हुई। इसके बाद परंपरा के अनुसार पांढुर्णा और सावरगांव के लोगों के बीच झंडे (पलाश का पेड़) को कब्जे में लेने की प्रतिस्पर्धा और पत्थरबाजी का सिलसिला शुरू हो गया।
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गोटमार मेले में झंडे पर कब्जे को लेकर जंग
देर शाम के अपडेट के अनुसार, गोटमार मेले की परंपरागत पत्थरबाजी पलाश रूपी झंडा नदी में गिरते ही खत्म हो गई। पांढुर्णा और सावरगांव दोनों गांव के लोगों में समझौता हो गया है। नदी से झंडा निकाला गया और चंडी माता के मंदिर में लाया गया। जहां पूजा अर्चना की गई। इससे पहले जाम नदी के बीच लगे प्रतीकात्मक झंडे को लेकर दोनों पक्षों के बीच संघर्ष चरम पर देखा गया, इस दौरान कुछ युवक कुल्हाड़ी लेकर झंडे पर पहला वार कर चुके हैं, जिससे स्थिति और अधिक तनावपूर्ण हो गई है।
सावरगांव की ओर से लगातार पत्थर फेंक रहे थे ताकि पांढुर्णा पक्ष झंडे तक न पहुंच सके। वहीं, पांढुर्णा के लोग झंडे को कब्जे में लेने के लिए लगातार प्रयास कर रहे थे।
इस संघर्षपूर्ण माहौल में पांढुर्णा से कांग्रेस विधायक निलेश उईके भी मेले में पहुंचे और परंपरा अनुसार पत्थर फेंकने में हिस्सा लिया। झंडे की रक्षा और कब्जे को लेकर दोनों पक्षों के बीच जबरदस्त संघर्ष देखा गया। खिलाड़ी झंडे को काटने के लिए नदी में आगे बढ़े, जबकि सावरगांव पक्ष उन्हें रोकने के लिए पत्थरबाजी की। इस आयोजन में परंपरा, जुनून और टकराव देखने को मिल रहा है।
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गोटमार मेला: परंपरा, प्रेम और पत्थरबाजी की कहानी
मध्यप्रदेश के पांढुर्णा में पोला पर्व के अगले दिन एक अनोखा और खौफनाक मेला आयोजित होता है, जिसे गोटमार मेले के नाम जाना जाता। यहां जाम नदी के किनारे पर एक विश्व प्रसिद्ध मेला लगता है। यह मेला केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि दो गांवों पांढुर्णा और सावरगांव के बीच पीढ़ियों से चल रही एक अनूठी और हिंसक परंपरा है, जिसमें एक दूसरे पर पत्थर फेंके जाते हैं, खून बहता है और कभी-कभी जानें भी चली जाती हैं। यह अनोखी प्रथा आज भी जारी है।
पांढुर्णा पुलिस के अनुसार इतने सालों में किसी भी मौत या गंभीर चोट को लेकर कोई पुलिस शिकायत दर्ज नहीं की गई है, जिसके चलते अब तक गोटमार मेले से जुड़ा कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं हो सका है।
क्यों खास है गोटमार मेला?
पांढुर्णा की जाम नदी के किनारे लगने वाला यह मेला देखने के लिए देशभर से हजारों लोग जुटते हैं। बैलों की पूजा का पर्व पोला के अगले दिन लगने वाले इस मेले में लोग एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं, परंपरा के नाम पर। यह आयोजन एक विश्वप्रसिद्ध परंपरा बन चुका है, जिसमें खतरा, आस्था और इतिहास, तीनों का संगम दिखाई देता है।
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ऐसे होती है गोटमार मेले की शुरुआत
गोटमार मेले की शुरुआत होती है चंडी माता की पूजा से। इस अवसर पर सावरगांव के लोग जंगल से एक पलाश का पेड़ काटकर लाते हैं और उसे नदी के बीच में गाड़ते हैं। यह प्रतीकात्मक झंडा होता है, जिसकी रक्षा सावरगांव वाले करते हैं। इस झंडे को लाने और लगाने की पीढ़ियों पुरानी जिम्मेदारी सावरगांव निवासी सुरेश कावले के परिवार की है। उनके पूर्वजों से यह जिम्मा आज भी निभाया जा रहा है।
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आखिर क्यों होती पत्थरबाजी?
सावरगांव के लोग इस झंडे को 'लड़की' और पांढुर्णा के लोग 'लड़का' मानते हैं। सावरगांव वाले झंडे की रक्षा करते हैं, जबकि पांढुर्णा के लोग उस पर कब्जा करने के लिए पत्थरबाजी करते हैं। यह संघर्ष तब तक चलता है जब तक कि पांढुर्णा पक्ष झंडे को काटकर उसे कब्जे में नहीं ले लेता। इसके बाद दोनों पक्ष चंडी माता की पूजा कर मेले का समापन करते हैं।
पत्थरबाजी की परंपरा के पीछे क्या कहानी है?
इस हिंसक परंपरा के पीछे एक दर्दनाक प्रेम कथा भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि सावरगांव की एक लड़की और पांढुर्णा के एक लड़के के बीच प्रेम हुआ था। दोनों ने चोरी-छिपे विवाह कर लिया और भागने की कोशिश की। जैसे ही सावरगांव के लोगों को इसका पता चला, उन्होंने प्रेमी युगल पर पत्थरों से हमला कर दिया। जवाब में पांढुर्णा के लोगों ने भी पत्थर फेंके। इस हिंसा में दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी में हो गई। इस घटना के बाद, दोनों पक्षों को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने दोनों के अंतिम संस्कार चंडी माता के दरबार में किए। तभी से इस मेला और पत्थरबाजी को परंपरा के रूप में हर साल निभाया जा रहा है।
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अब तक कितनें लोगों की हुई मौत
गोटमार की शुरुआत को लेकर ठोस ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन सावरगांव के वरिष्ठ निवासी सुरेश कावले का मानना है कि यह परंपरा करीब 400 साल पहले शुरू हुई थी। सबसे पहले 1955 में इस खेल के दौरान एक व्यक्ति की मौत दर्ज की गई थी। इसके बाद 2023 तक कुल 13 लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें से तीन एक ही परिवार से थे।
इस हिंसात्मक परंपरा में हर साल कई लोग गंभीर रूप से घायल होते हैं, कुछ ने अपनी आंखें, हाथ या पैर तक खो दिए हैं। बावजूद इसके, बड़ी संख्या में लोग इस आयोजन में हर साल दोगुने जोश और उत्साह के साथ भाग लेते हैं। वहीं, जिन परिवारों ने अपने अपनों को खोया है, वे इस दिन को परंपरा की जगह शोक दिवस के रूप में मनाते हैं।
इस खबर से जुड़े 5 FAQ
1. गोटमार मेला क्या है और यह कहां लगता है?
उत्तर: गोटमार मेला मध्यप्रदेश के पांढुर्णा में पोला पर्व के अगले दिन आयोजित किया जाता है। यह एक पारंपरिक और हिंसक आयोजन है, जिसमें पांढुर्णा और सावरगांव के लोग जाम नदी के दोनों किनारों से एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं।
2. गोटमार मेले की शुरुआत कैसे होती है?
उत्तर: मेले की शुरुआत चंडी माता की पूजा के बाद होती है। इसके बाद सावरगांव के लोग जंगल से लाया गया पलाश का पेड़ (प्रतीकात्मक झंडा) नदी के बीच में गाड़ते हैं, जिसे पांढुर्णा के लोग कब्जे में लेने के लिए प्रयास करते हैं, और इसी प्रक्रिया में पत्थरबाजी होती है।
3. गोटमार मेला क्यों विवादास्पद और खतरनाक माना जाता है?
उत्तर: इस मेले में परंपरा के नाम पर हिंसक पत्थरबाजी होती है, जिससे हर साल सैकड़ों लोग घायल होते हैं। इस साल के आयोजन में भी 1000 से अधिक लोग घायल हुए, जिनमें से कई की हालत गंभीर बताई गई है। जिससे यह आयोजन विवादास्पद बना हुआ है।
4. क्या प्रशासन इस मेले को नियंत्रित करता है?
उत्तर: जी हां, प्रशासन हर साल सुरक्षा के लिए धारा 144 लागू करता है और बड़ी संख्या में पुलिस बल और मेडिकल टीमों को तैनात करता है। 2025 में 600 पुलिसकर्मी, 58 डॉक्टर और 200 मेडिकल स्टाफ मेले में तैनात किए गए थे। फिर भी पत्थरबाजी और भीड़ नियंत्रण एक बड़ी चुनौती बनी रहती है।
5. गोटमार मेला किस ऐतिहासिक कहानी से जुड़ा है?
उत्तर: यह परंपरा एक प्रेम कथा से जुड़ी है। कहा जाता है कि पांढुर्णा के युवक और सावरगांव की युवती के बीच प्रेम था। जब दोनों भागने लगे तो दोनों गांवों के लोगों में हिंसक झड़प हुई, जिसमें पत्थरबाजी में दोनों की मौत हो गई। उसी घटना की याद में यह मेला आज भी परंपरा के रूप में मनाया जाता है।
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