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Lunar Eclipse 2021: इस बार पड़ेगा उपछाया चंद्र ग्रहण, नहीं होगा सूतक काल के नियमों का पालन।

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Preeti Dwivedi
Lunar Eclipse 2021: इस बार पड़ेगा उपछाया चंद्र ग्रहण, नहीं होगा सूतक काल के नियमों का पालन।

नई दिल्ली। ग्रहण का नाम सुनते ही Lunar Eclipse 2021 लोगों के मन में नकारात्मक विचार आने लगते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहण का विशेष महत्व है। ज्योतिषाचार्य पंडित सनत कुमार खम्परिया के अनुसार चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। पौराणिक ग्रंथों में भी चंद्रमा का वर्णन मिलता है। पंडित रामगोविन्द शास्त्री के अनुसार वेद—पुराण में भी इसका वर्णन मिलता है। भगवान शिव के भक्त चंद्रमा को सोम भी कहते हैं। इन्हें भगवान शिव का विशेष स्नेह प्राप्त है। अग्नि पुराण में चंद्रमा के जन्म का उल्लेख है। आइए जानते हैं साल 2021 के आखिरी चंद्र ग्रहण के बारे में.

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इस बार पूर्णिमा को लगेगा चंद्र ग्रहण
इस वर्ष का आखिरी चंद्र ग्रहण 19 नवंबर 2021 को Lunar Eclipse 2021 शुक्रवार के दिन लगेगा। इस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है। इस बार कार्तिक पूर्णिमा की तिथि को चंद्र ग्रहण लग रहा है। ज्योतिष शास्त्र में इस घटना को महत्वपूर्ण माना गया है।

ग्रहण को मानते हैं अशुभ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्र और सूर्य ग्रहण को अशुभ घटना के रूप में देखा जाता है। इस दौरान शुभ व मांगलिक कार्य नहीं किए जाते। ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ की भी मनाही होती है। मंदिरों में भगवान के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। देवी-देवताओं की मूर्ति या प्रतिमा को स्पर्श नहीं किया जाता है।

कब से कब तक है 
हिन्दु पंचांग के अनुसार 19 नबंवर को लगभग 11 बजकर 30 मिनट पर चंद्र ग्रहण how long is it लगेगा। जो शाम 05 बजकर 33 मिनट पर ग्रहण समाप्त हो जाएगा।

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नहीं होगा सूतक के नियम का पालन
19 नबंवर 2021 को लगने वाले इस चंद्र ग्रहण को उपछाया ग्रहण माना जा रहा है। उपछाया चंद्र ग्रहण में सूतक के नियमों का पालन नहीं किया जाएगा। इसका पालन केवल पूर्ण ग्रहण की स्थिति में होता है।

कहां दिखेगा साल का आखिरी चंद्र ग्रहण
साल का आखिरी चंद्र ग्रहण भारत, उत्तरी यूरोप, पूर्वी एशिया, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र में दिखाई देखा।

ये है पौराणिक कथा
समुद्र मंथन के दौरान स्वर्भानु नामक दैत्य ने छल से अमृत पान की कोशिश की थी। तब चंद्रमा और सूर्य की इस पर नजर पड़ी। जिसके बाद चंद्रमा और सूर्य ने दैत्य की इस हरकत के बारे में भगवान विष्णु को बताया। तब भगवान विष्णु ने अपने सुर्दशन चक्र से इस दैत्य का सिर धड़ से अलग कर दिया। अमृत की कुछ बूंद गले से नीचे उतरने के कारण ये दो दैत्य बन कर वे अमर हो गए। सिर वाला हिस्सा राहु और धड़ केतु के नाम से जाना गया।

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बदला लेते हैं राहु—केतू
माना जाता है कि राहु और केतु इसी बात का बदला लेने के लिए समय-समय पर चंद्रमा और सूर्य का ग्रहण करते हैं। जब ये दोनों क्रूर ग्रह चंद्रमा और सूर्य को जकड़ लेते है तो ग्रहण लगता है। इस दौरान नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। दोनों ग्रहों के कमजोर पड़ जाने के कारण ग्रहण के दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है।

नोट :( इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं। बंसल इनकी पुष्टि नहीं करता है। अत: किसी भी जानकारी पर अमल करने से पहले विशेषज्ञों से जानकारी प्राप्त कर लें।)

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