नई दिल्ली। जब भी कोई lunar eclipse ग्रहण लगता है तो अक्सर लोगों से कहते सुना होगा। इस दौरान कुछ भी नहीं खाना चाहिए। फिर चाहे वह चंद्र ग्रहण हो या सूर्य ग्रहण। इस वर्ष का आखिरी चंद्र ग्रहण 19 नवंबर को पड़ रहा है। तो आइए हम भी आपको बताते हैं कि आखिर ऐसा क्यों कहा जाता है। क्या है इसके पीछे का धार्मिक व वैज्ञानिक कारण।
क्या कहता है शास्त्र
धर्म शास्त्र की मानें तो इसके पीछे एक खास कारण है। चंद्र ग्रहण को परिवर्तन का अग्रदूत तो माना ही जाता है। साथ ही साथ इसे एक अपशकुन के समय के रूप में भी देखा जाता है। शायद यही वजह है कि इस दौरान कुछ सावधानिया रखने की सलाह दी जाती है। ग्रहण के समय चंद्रमा की जो किरणें निकलती हैं उन्हें विषाक्त माना जाता है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि जब इस दौरान ऐसी मान्यता है कि इस दौरान कुछ भी खाने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता हैं। यही कारण है कि इस दौरान गर्भवती महिलाओं को भी संभलकर रहने और ग्रहण में बाहर निकलने के लिए मना किया जाता है। को इस दौरान खास तौर पर कहा जाता है कि वो किसी भी नुकसान पहुंचाने वाली चीज से दूर रहे।
ऐसा माना जाता है मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा के चक्र हमारे शरीर पर वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालते हैं ये हमारे ऊर्जा चक्रों पर भी असर डालता हैं। ग्रहण के दौरान खास तौर पर कच्चे फल या सलाद खाने से परहेज करना चाहिए। कहते हैं चंद्रमा की किरणें इसके गुणों को नष्ट कर सकती हैं। ऐसी किसी भी चीज को खाने से मना किया जाता हैं। यह पाचन में परेशानी डाल सकता है। इसके साथ ही उदर विाकर होने की संभावना बनी रहती है।
चंद्र ग्रहण के दौरान शक्ति में बदलाव होता हैं। ये आपकी सेहत पर असर डालता हैं। एल्ट्रा वायलेट किरणों की वजह से पका हुआ भोजन भी पर्यावरण में बदलाव की वजह से खराब हो जाता है। पके हुए भोजन में इन किरणों के पड़ने के कारण दूषित हो जाता हैं। शास्त्र की मानें तो चंद्र ग्रहण सूक्ष्मजीवों की मृत्यु का कारण बनता है। यही वजह है कि इस दौरान खाने या स्नान करने से मना किया जाता हैं।
तुलसी से भोजन होगा सुरक्षित —
हमारे धर्म शास्त्रों में किसी भी ग्रहण के दौरान सभी खाद्य पदार्थों में तुलसी पत्र डालने की परंपरा है। इससे वह पदार्थ शुद्ध हो जाता है। माना जाता है कि ये विकिरण को दूर करता है। साथ ही भोजन को जहर में बदलने से बचाता है। ग्रहण के दौरान तुलसी मिले हुए दूध का सेवन करना अच्छा माना गया हैं।