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JP Narayan: घृणा और असमानता से मुक्त समाज चाहते थे जेपी, लोकनायक जयप्रकाश नारायण के योगदान पर भोपाल में विचार गोष्ठी

लोकनायक जयप्रकाश नारायण जयंती पर भोपाल के गांधी भवन में वैचारिक संवाद कार्यक्रम “सप्तक्रांति से सम्पूर्ण क्रांति” का आयोजन हुआ। जिसमें शिवदयाल की नई पुस्तक ‘जयप्रकाश: परिवर्तन की वैचारिकी’ का विमोचन किया गया।

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Vikram Jain
JP Narayan: घृणा और असमानता से मुक्त समाज चाहते थे जेपी, लोकनायक जयप्रकाश नारायण के योगदान पर भोपाल में विचार गोष्ठी

Loknayak Jaiprakash Narayan Jayanti Gandhi Bhavan Program: सम्पूर्ण क्रान्ति के प्रणेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती के अवसर पर भोपाल के गांधी भवन में शनिवार को वैचारिक गोष्ठी ‘सप्तक्रांति से सम्पूर्ण क्रांति’ का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम समता ट्रस्ट और गांधी भवन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया, जिसमें देश के प्रमुख समाजवादी चिंतक और पत्रकार शामिल हुए।

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कार्यक्रम के विशेष अतिथि के रूप में माधवराव सप्रे समाचारपत्र संग्रहालय के संस्थापक और पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर उपस्थित रहे। इस अवसर पर पटना से पधारे लेखक शिवदयाल द्वारा लिखित पुस्तक ‘जयप्रकाश: परिवर्तन की वैचारिकी’ का विमोचन भी किया गया। लेखक ने अपने संबोधन में जेपी नारायण की विचारधारा, जीवन संघर्ष और सम्पूर्ण क्रांति के दर्शन पर विस्तार से प्रकाश डाला।

‘सप्तक्रांति से सम्पूर्ण क्रांति’ पर वैचारिक विमर्श

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रख्यात समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के योगदान को याद किया और उनकी वैचारिक गहराई को रेखांकित किया। साथ ही जेपी की क्रांति को नैतिक और मानवतावादी दृष्टिकोण से समझाया।

उन्होंने कहा, "जेपी समाज में केवल बाहरी नहीं, बल्कि मानसिक और नैतिक परिवर्तन में विश्वास रखते थे। वे क्रांति को एक नैतिक और शाश्वत प्रक्रिया मानते थे, जो व्यक्ति और समाज दोनों को भीतर से बदलती है। यदि उन्हें थोड़ा और समय मिलता, तो वे निश्चय ही उस 'सम्पूर्ण क्रांति' के अगले चरण की ओर बढ़ते, जिसे डॉ. राममनोहर लोहिया ने 'सप्तक्रांति' कहा था।"

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जेपी ऐसे समाज के पक्षधर थे जहां न घृणा

रघु ठाकुर ने आपातकाल, सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन और जेपी के दर्शन पर अपने विचार रखते हुए कहा कि जयप्रकाश नारायण एक ऐसे समाज की परिकल्पना करते थे, जिसमें नफरत और असमानता के लिए कोई स्थान न हो।

उन्होंने आगे कहा, "जेपी का अध्ययन गहराई तक था और वे संभवतः देश के सर्वश्रेष्ठ मार्क्सवाद के जानकारों में से एक थे। लेकिन उन्होंने स्वयं स्वीकार किया था कि पूरी मार्क्सवादी विचारधारा में इंसान को बेहतर बनाने की बात एक भी पंक्ति में नहीं मिलती।"

जेपी के लिए क्रांति केवल आर्थिक या राजनीतिक बदलाव नहीं, बल्कि मनुष्य की चेतना और चरित्र को ऊंचा उठाने का माध्यम थी। रघु ठाकुर के अनुसार, यही सोच उन्हें बाकी विचारधाराओं से अलग करती थी।

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जेपी की क्रांति लोकचेतना और संगठन की प्रेरणा थी

कार्यक्रम में समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने लेखक शिवदयाल के परिवार का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके तीन परिजन आपातकाल के दौरान जेल में बंद रहे थे। उन्होंने मंच पर लगे बैनर को ऐतिहासिक बताते हुए कहा, “इस बैनर पर गांधीजी, लोहिया, विनोबा और जेपी एक साथ हैं – जो भारतीय राजनीति की वैचारिक रीढ़ रहे हैं।”

रघु ठाकुर ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति को "लोकचेतना और लोकसंगठन की जीवंत प्रेरणा" बताया। उन्होंने कहा, “सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन जरूरी है कि लोगों का मन बड़ा हो, सोच विस्तृत हो यही असली क्रांति है।”

उन्होंने जेपी से जुड़ा एक संस्मरण भी साझा किया। रघु जी ने बताया कि आपातकाल से ठीक पहले जबलपुर में जब युवाओं की भारी भीड़ इकट्ठा हुई थी, तो जयप्रकाश नारायण ने मंच से कहा था, “सागर में रघु ठाकुर पानी के अधिकार को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, आप सभी को वहां होना चाहिए।”

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रघु ठाकुर ने स्पष्ट किया कि जेपी ने कभी आरएसएस को कोई प्रमाणपत्र नहीं दिया था और इस संबंध में फैलाई जा रही भ्रांतियां पूरी तरह गलत हैं। उन्होंने यह भी अफसोस जताया कि आपातकाल के दौरान जेपी को अकेले जेल में रखा गया, जबकि अंग्रेजों के शासन में भी लोहिया को उनके साथ रखा गया था।

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गायब हो रही लोकतंत्र से नैतिकता

लेखक शिवदयाल ने अपनी पुस्तक 'जयप्रकाश: परिवर्तन की वैचारिकी' को रघु ठाकुर को समर्पित करते हुए कहा कि वे भारतीय राजनीति में रचनात्मक विपक्ष के प्रतीक हैं। उन्होंने जोर दिया कि सत्ताविरक्त नेताओं को ईमानदारी से याद करना होगा, क्योंकि आज लोकतंत्र से नैतिकता गायब हो रही है। लोकतंत्र तभी जनोन्मुखी होगा जब उसमें नैतिक मूल्यों की वापसी होगी।

जेपी ने प्रेम को माना राजनीति का श्रेष्ठ मार्ग

पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने अनेक राजनीतिक विकल्पों में प्रेम को सर्वोच्च माना। इसी के चलते चंबल के 405 दस्युओं ने उनके आग्रह पर आत्मसमर्पण किया। जेपी ने डकैतों को भरोसा दिलाया कि उन्हें फांसी नहीं होगी, सिर्फ तय सजा ही भुगतनी होगी। उनकी बातों में ऐसा नैतिक बल था कि बिना लिखित संदेश के भी वे विनोबा भावे के इरादे को समझ गए।

विजयदत्त श्रीधर ने अफसोस जताया कि आज की राजनीति में जेपी जैसी करुणा और नैतिकता लुप्त होती जा रही है, जो कभी नेतृत्व की पहचान हुआ करती थी। उन्होंने कहा कि रघु ठाकुर में वही विचारशीलता और नैतिक प्रतिबद्धता दिखती है, जो जेपी में थी। राजनीति को नैतिक दिशा देने का उनका प्रयास दुस्साहसिक जरूर है, लेकिन अत्यंत जरूरी भी।

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जेपी के करुणामय पक्ष को समझना जरूरी

अध्यक्षीय उद्बोधन में गांधी भवन के सचिव दयाराम नामदेव ने कहा जेपी के करुणामय पक्ष को समझना जरूरी है। चंबल के बागियों के आत्मसमर्पण के लिए दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में जेपी ने जो पहली बैठक बुलाई उसमें वे स्वयं मौजूद थे। बिहार में अकाल पड़ने पर भी उन्होंने राहत कोष बनाया था जिसमें रामचंद्र भार्गव, हरिश्चंद्र आदि थे। आज जरूरत है कि जेपी जिस समाजवाद को लाना चाहते थे वह हम सामान्य जन को समझाएं।

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लोकनायक जयप्रकाश नारायण को किया याद

लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर केंद्रित इस आयोजन में आयोजन की अध्यक्षता गांधी भवन के सचिव दयाराम नामदेव ने की। कार्यक्रम का संचालन महेश सक्सेना ने किया और धन्यवाद ज्ञापन समता ट्रस्ट के अध्यक्ष मदन जैन ने दिया। मंच पर आभा सिन्हा, नामदेव और डॉ. शिवा श्रीवास्तव भी मौजूद थे, जिन्होंने शिवदयाल का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया। अतिथियों का स्वागत गांधी भवन के अंकित मिश्रा ने किया।

कार्यक्रम में जयंत तोमर, पांडे पूर्व श्रमायुक्त, मुकेश चंद्रा, जावेद उस्मानी, निसार कुरैशी, शिवकुमार कक्का, बहादुर सिंह, विजय नेमा सहित बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता और सार्वजनिक जीवन से जुड़े कई लोग मौजूद थे।

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