भोपाल। मध्य प्रदेश के सबसे वयोवृद्ध नेता लक्ष्मीनारायण गुप्ता (Laxminarayan Gupta) का आज 104 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। लोग उन्हें प्यार से ‘नन्नाजी’ भी कहते थे। आप उनके व्यक्तित्व का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल प्रवास के दौरान उनसे आशीर्वाद लिया था।
सार्वजनिक जीवन की शुरूआत
उनका जन्म 6 जून 1918 को मध्य प्रदेश के वर्तमान में ओशोकनगर जिले के ईसागढ़ में हुआ था। उनके पिता का नाम पन्नालाल गुप्ता था। नन्नाजी ग्वालियर राज्य में वकील थे। हालांकि, 1944 में उन्होंने वकालत छोड़कर सार्वजनिक जीवन में आने का फैसला किया और वे हिन्दूमहासभा से जुड़ गए। 1947 में उन्हें हिंदू महासभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह मिली। उन्हें तत्कालीन हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्यामाप्रसाद मुखर्जी का बेहद करीबी माना जाता था।
गांधी जी की हत्या मामले में गिरफ्तार हुए
1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की निर्मम हत्या में जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया था, उसमें से एक लक्ष्मीनारायण गुप्ता भी थे। हालांकि एक महीने बाद ही इन्हें रिहा कर दिया गया था। साल 1949 में नन्नाजी सहकारी बैंक के डायरेक्टर बने। पहली बार उन्होंने साल 1952 में पिछोर उत्तर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और 700 वोटों से निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद वे लगातार 1957, 1962 और 1967 में इस सीट से विजयी रहे। माना जाता है कि पिछोर में लक्ष्मीनारायण गुप्ता इतने लोकप्रिय थे कि 1944 से लेकर 1972 तक यहां कांग्रेस का झंडा लगाने वाला भी नहीं मिलता था। हालांकि बाद में कांग्रेस ने इस सीट को अपना गढ़ बना लिया।
कांग्रेस ने इस सीट को बनाया अपना गढ़
1972 के बाद 1977 और 1990 के विधानसभा चुनाव को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी चुनावों में कांग्रेस ने इस सीट पर बाजी मारी। 1993 से लेकर 2018 तक कांग्रेस का इस सीट पर एकतरफा कब्जा रहा है। केपी सिंह (कक्काजू) ने इस सीट से सबसे ज्यादा बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बनाया है। उन्होंने साल 1993 से लेकर 2018 तक कुल 6 बार इस सीट पर कब्जा जमाया है।
सादगी के लिए जाना जाएगा
1967 के बाद नन्नाजी 1990 में एक बार फिर BJP की टिकट पर चुनाव जीतने में सफल रहे थे। वे साल 1967 में गोविंद नारायण सिंह और 1990 में सुंदरलाल पटवा की सरकार में राजस्व मंत्री भी रहे थे। नन्नाजी को हमेशा उनकी सादगी के लिए जाना जाएगा। ताउम्र वे भाजपा में रहे, 1980 में उन्हें माघव राव सिंधिया ने कांग्रेस में आने का न्योता भी दिया था। लेकिन उन्होंने सामने से इंकार कर दिया। इस बात से तब सिंधिया नाराज भी हो गए थे।